Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi:- जब कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध होने वाला था, तो अर्जुन युद्ध के लिए तैयार नहीं थे। उस समय भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया और जो उपदेश उन्हें दिया, वही आज “गीता श्लोक” के नाम से जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने इस उपदेश को 18 अध्यायों में बाँटा, और इसमें 700 श्लोक सम्मिलित हैं। गीता के श्लोक को महात्मा गांधी, अल्बर्ट आइंस्टीन, और स्वामी विवेकानंद जैसे महान लोग भी मानते आए हैं।
ये गीता श्लोक करीब 5700 साल पहले कहे गए थे, लेकिन आज भी उनका महत्व उतना ही है जितना महाभारत युद्ध के समय था। कहा जाता है कि गीता श्लोक का ज्ञान भगवान विष्णु ने भगवान सूर्य को भी सुनाया था, परंतु जब श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध के समय अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया, तभी ये पूरी दुनिया में प्रचलित हुआ।
गीता श्लोक में श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन के कई महत्वपूर्ण रहस्यों से अवगत कराया। इन श्लोकों को पढ़ने या सुनने से जीवन और मृत्यु का भय कम हो जाता है, और इंसान निस्वार्थ भाव से कर्म करने के लिए प्रेरित होता है। गीता हमें सिखाती है कि कर्म करना हमारे हाथ में है, लेकिन उसके परिणाम हमारे नियंत्रण में नहीं हैं। इसलिए, जो हमारे हाथ में है, वो हमें पूरी निष्ठा से करना चाहिए, और जो हमारे हाथ में नहीं है, उसे भगवान पर छोड़ देना चाहिए।
गीता के श्लोक न केवल हिंदू समुदाय के लोगों के लिए बल्कि हर इंसान के लिए मार्गदर्शक हैं। “Bhagwat Geeta Shlok with meaning in Hindi” पढ़ना हर व्यक्ति के जीवन को नई दिशा दे सकता है। भारत को विश्व का पहला सनातन धर्म वाला देश कहा जाता है, और यहाँ के धर्मगुरु पूरे विश्व में आदर पाते हैं। इस देश को “विश्व गुरु” का दर्जा भी प्राप्त है, और यहाँ समय-समय पर ऐसे चमत्कार होते हैं, जो दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए भी एक पहेली बन जाते हैं।
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महाभारत के युद्ध के दौरान स्वयं भगवान श्री कृष्ण, जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। इस अद्भुत संवाद को संजय ने दिव्य दृष्टि से देखा और महाराज धृतराष्ट्र को सुनाया।
Geeta Shlok: Shrimad Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi, English, and Sanskrit | गीता के श्लोक हिंदी में
भगवद गीता 9.29
संस्कृत:
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः। ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्॥
अनुवाद:
मैं सभी जीवों के प्रति समान हूँ। मेरे लिए कोई प्रिय या अप्रिय नहीं है। लेकिन जो लोग भक्ति से मेरा प्रेम करते हैं, मैं उनके साथ विशेष रूप से जुड़ा रहता हूँ।
Explanation in Hindi:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि प्रेम में समानता और निष्कपटता होनी चाहिए। यह प्रेम को निःस्वार्थ और विशुद्ध रूप में देखने की शिक्षा देता है।
Explanation in English:
Lord Krishna says that He is impartial to all, but He is close to those who love Him. This verse teaches that love should be selfless and pure.
भगवद गीता 10.10
संस्कृत:
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्। ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते॥
अनुवाद:
जो मेरे प्रति प्रेम और भक्ति से जुड़े रहते हैं, मैं उन्हें वह बुद्धि प्रदान करता हूँ जिससे वे मुझे प्राप्त करते हैं।
Explanation in Hindi:
भगवान कहते हैं कि प्रेम और भक्ति से जुड़ने वालों को सही दिशा और समझ मिलती है। यह हमें प्रेम के महत्व को समझने और सच्चे प्रेम में जुड़ने की प्रेरणा देता है।
Explanation in English:
Lord Krishna explains that those who remain devoted with love receive wisdom to be united with Him. This highlights the power of love in guiding one to the right path.
Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
भगवद गीता 12.13
संस्कृत:
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च। निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी॥
अनुवाद:
जो सभी प्राणियों से द्वेष नहीं करता, जो मैत्रीपूर्ण, करुणावान, अहंकाररहित और क्षमाशील है, वही सच्चा प्रेमी है।
Explanation in Hindi:
भगवान श्रीकृष्ण यहाँ प्रेम के गुणों को बताते हैं – यह बिना द्वेष के होना चाहिए और सच्चे प्रेम में करुणा और मित्रता होनी चाहिए।
Explanation in English:
Lord Krishna describes the qualities of a true lover – one who is free from malice, kind, and forgiving. This teaches that true love is compassionate and selfless.
भगवद गीता 5.18
संस्कृत:
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि। शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः॥
अनुवाद:
जो ज्ञानवान होते हैं, वे ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ते और चांडाल में भी समान दृष्टि से प्रेम करते हैं।
Explanation in Hindi:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि सच्चा प्रेम सभी जीवों के प्रति समान दृष्टि से देखता है। यह प्रेम में भेदभाव न करने की शिक्षा देता है।
Explanation in English:
Lord Krishna says that true knowledge brings love and equality towards all beings. This promotes the idea of love without discrimination.
भगवद गीता 9.26
संस्कृत:
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥
अनुवाद:
जो मुझे प्रेम से पत्ता, फूल, फल या पानी अर्पित करता है, मैं उसे प्रेमपूर्वक ग्रहण करता हूँ।
Explanation in Hindi:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि प्रेम में छोटी-छोटी चीजें भी बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। प्रेम का मूल्य भावना में है, वस्तु में नहीं।
Explanation in English:
Lord Krishna says that even a simple offering is valuable if given with love. This shows that love is about emotions, not material things.
भगवद गीता 3.30
संस्कृत:
मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा। निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः॥
अनुवाद:
सभी कर्म मुझमें अर्पित करके, ममता और फल की आशा त्याग कर कार्य करो।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक सिखाता है कि प्रेम में भी त्याग की भावना होनी चाहिए। सच्चा प्रेम बिना किसी स्वार्थ के होता है।
Explanation in English:
This shloka teaches that love, like actions, should be selfless, without attachment or desire for reward.
भगवद गीता 13.27
संस्कृत:
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्। विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति॥
अनुवाद:
जो सभी जीवों में परमात्मा को समान रूप से देखता है, वही सच्चे प्रेम को समझता है।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक प्रेम में समानता और एकत्व को दर्शाता है। सच्चा प्रेम वह है जो सबमें समान दृष्टि देखता है।
Explanation in English:
This verse speaks about equality and unity in love, where true love sees everyone as equa
Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
भगवद गीता 12.15
संस्कृत:
यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्। नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥
अनुवाद:
जो सभी जगह निष्कपट और निःस्वार्थ है, वही सच्चे प्रेम को समझता है। उसे न तो किसी से द्वेष होता है और न ही किसी से आसक्ति।
Explanation in Hindi:
भगवान श्रीकृष्ण प्रेम में निष्कपटता की बात करते हैं। यह सिखाता है कि सच्चा प्रेम बिना किसी मोह और द्वेष के होता है।
Explanation in English:
Lord Krishna talks about selfless love that is free from attachment and hatred. This shows that true love is pure and without conditions.
भगवद गीता 18.61
संस्कृत:
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति। भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया॥
अनुवाद:
ईश्वर सभी जीवों के हृदय में स्थित हैं और सभी को अपनी माया से संचालित करते हैं।
Explanation in Hindi:
भगवान कहते हैं कि सभी के हृदय में प्रेम रूप में भगवान विद्यमान हैं। सच्चा प्रेम वही है जो सभी के प्रति एक जैसा हो।
Explanation in English:
Lord Krishna explains that God resides in everyone’s heart as love. True love is, therefore, universal and impartial.
भगवद गीता 6.30
संस्कृत:
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति। तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥
अनुवाद:
जो मुझे सभी में देखता है और सभी को मुझमें देखता है, वह मुझसे कभी दूर नहीं होता और मैं उससे कभी दूर नहीं होता।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक प्रेम के एकत्व को दर्शाता है। जो सभी में भगवान को देखता है, उसका प्रेम सच्चा और अखंड होता है।
Explanation in English:
This verse speaks of the oneness in love, where true love sees God in everyone and stays connected forever.
Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
Bhagwat Geeta Shlok (Bhagavad Gita Quotes) | भगवत गीता श्लोक हिंदी
भगवद गीता 2.47
संस्कृत:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म को करते रहो और निष्क्रियता की ओर मत झुको।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्यों पर ध्यान देना चाहिए, न कि उनके परिणामों पर। इससे प्रेरणा मिलती है कि बिना परिणाम की चिंता किए कड़ी मेहनत करें।
Explanation in English:
This verse teaches us to focus on our duties and not on the outcomes. It inspires us to work hard without worrying about the results. Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
भगवद गीता 3.21
संस्कृत:
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
अनुवाद:
जो श्रेष्ठ व्यक्ति करता है, अन्य लोग उसी का अनुसरण करते हैं। वह जो मानक स्थापित करता है, लोग उसे ही मानते हैं।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक हमें बताता है कि हमारे कार्यों का दूसरों पर प्रभाव पड़ता है। इससे हमें अच्छे कार्य करने की प्रेरणा मिलती है, जिससे हम दूसरों के लिए एक उदाहरण बन सकें।
Explanation in English:
This verse tells us that our actions influence others. It encourages us to act responsibly and set a positive example for others. Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
भगवद गीता 6.5
संस्कृत:
उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
अनुवाद:
व्यक्ति को अपने ही द्वारा ऊपर उठना चाहिए और खुद को गिराना नहीं चाहिए, क्योंकि वह स्वयं ही अपना मित्र और शत्रु है।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक आत्म-संयम और आत्म-निर्भरता की शिक्षा देता है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम अपनी उन्नति के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं।
Explanation in English:
This verse teaches self-discipline and self-reliance, inspiring us to take responsibility for our own progress.
भगवद गीता 4.34
संस्कृत:
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः॥
अनुवाद:
ज्ञान को प्राप्त करने के लिए विनम्रता, सेवा और प्रश्न पूछने की भावना रखें। ज्ञानी व्यक्ति आपको ज्ञान देंगे।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक सिखाता है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए विनम्रता और जिज्ञासा आवश्यक है। यह हमें सीखने और समझने के लिए प्रेरित करता है।
Explanation in English:
This verse teaches that humility and curiosity are essential for gaining knowledge, motivating us to seek learning with an open mind. Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
भगवद गीता 2.19
संस्कृत:
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥
अनुवाद:
जो आत्मा को मारने वाला समझता है या मरा हुआ मानता है, वे दोनों ही अज्ञानी हैं। आत्मा न मारती है न मारी जाती है।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक सिखाता है कि आत्मा अजर-अमर है, और हमें हर स्थिति में निडर और साहसी बने रहना चाहिए।
Explanation in English:
This verse teaches that the soul is immortal, encouraging us to remain fearless and resilient in all situations.
भगवद गीता 3.35
संस्कृत:
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥
अनुवाद:
अपने धर्म में मरना भी अच्छा है, लेकिन दूसरे के धर्म का पालन भयावह है।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक हमें अपने स्वभाव के अनुसार कार्य करने की प्रेरणा देता है। इससे हमें अपनी ताकत और योग्यताओं पर ध्यान देने की शिक्षा मिलती है।
Explanation in English:
This verse encourages us to focus on our strengths and follow our own path, reminding us that true fulfillment lies in pursuing our own purpose.
भगवद गीता 18.16
संस्कृत:
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः। गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते॥
अनुवाद:
जो तत्व को जानता है, वह गुणों और कर्मों में भेद को समझता है, और इस प्रकार उनके प्रति आसक्त नहीं होता।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि सफलता और असफलता में आसक्ति से मुक्त होकर कार्य करना चाहिए। यह हमें धैर्य और संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
Explanation in English:
This verse teaches us to act without attachment to success or failure, inspiring us to remain calm and balanced in all circumstances. Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
भगवद गीता 18.58
संस्कृत:
मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि। अथ चेत्वमहंकारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥
अनुवाद:
यदि तुम मुझमें चित्त लगाओगे, तो मेरी कृपा से सभी संकटों को पार कर लोगे। लेकिन यदि अहंकार से मेरे वचनों को नहीं मानोगे, तो नष्ट हो जाओगे।
Explanation in Hindi:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि उनका ध्यान करके हम सभी संकटों से पार पा सकते हैं। यह श्लोक हमें विश्वास और आत्मबल में वृद्धि करने की प्रेरणा देता है।
Explanation in English:
Lord Krishna says that by focusing on Him, we can overcome all difficulties. This verse inspires us to strengthen our faith and inner strength.
भगवद गीता 2.14
संस्कृत:
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः। आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥
अनुवाद:
हे अर्जुन, सर्दी-गर्मी, सुख-दुख क्षणिक हैं। इन्हें सहन करो, क्योंकि ये अनित्य हैं।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक सिखाता है कि जीवन की कठिनाइयाँ अस्थायी होती हैं, और हमें उन्हें धैर्यपूर्वक सहन करना चाहिए। इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि हर मुश्किल समय के बाद अच्छा समय आता है।
Explanation in English:
This verse teaches us that challenges in life are temporary, and we should endure them patiently. It inspires us to persevere through tough times.
भगवद गीता 18.78
संस्कृत:
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥
अनुवाद:
जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण और धनुर्धर अर्जुन हैं, वहाँ निश्चित रूप से विजय और समृद्धि होती है।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक बताता है कि सच्चा नेतृत्व और परिश्रम हमें सफलता की ओर ले जाते हैं। यह हमें आत्मविश्वास और संकल्प से अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
Explanation in English:
This verse explains that true leadership and hard work lead to success, inspiring us to move toward our goals with confidence and determination. Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
भगवत गीता के लोकप्रिय श्लोक भावार्थ के साथ | Popular Shlokas of Bhagwad Geeta
भगवद गीता 2.47
संस्कृत:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फलों में नहीं। इसलिए फल की चिंता किए बिना अपने कर्म को पूरा करो।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक छात्रों को सिखाता है कि उन्हें परिणाम की चिंता किए बिना, अपनी पढ़ाई और मेहनत पर ध्यान देना चाहिए।
Explanation in English:
This verse teaches students to focus on their efforts in studying without worrying about the results, thus encouraging them to be dedicated to their studies.
भगवद गीता 4.38
संस्कृत:
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते। तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विंदति॥
अनुवाद:
इस संसार में ज्ञान से अधिक पवित्र कुछ भी नहीं है। जो व्यक्ति योग से सिद्ध हो जाता है, वह इसे समय के साथ अपने अंदर पा लेता है।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक ज्ञान के महत्व को समझाता है और छात्रों को प्रेरित करता है कि वे निरंतर अध्ययन और अभ्यास से ज्ञान प्राप्त करें।
Explanation in English:
This verse emphasizes the purity of knowledge and encourages students to keep learning and practicing to gain wisdom over time.
भगवद गीता 6.5
संस्कृत:
उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
अनुवाद:
व्यक्ति को अपने ही द्वारा ऊपर उठना चाहिए और खुद को गिराना नहीं चाहिए, क्योंकि वह स्वयं ही अपना मित्र और शत्रु है।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक छात्रों को आत्म-निर्भरता और आत्म-विश्वास की शिक्षा देता है, जिससे वे स्वयं अपने विकास की ओर बढ़ सकें।
Explanation in English:
This verse teaches self-reliance and self-confidence, encouraging students to take responsibility for their own growth.
भगवद गीता 6.16
संस्कृत:
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः। न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन॥
अनुवाद:
जो बहुत खाता है, या बहुत कम खाता है, जो बहुत सोता है, या बहुत जागता है, उसके लिए योग संभव नहीं है।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक संतुलित जीवन जीने की शिक्षा देता है, जो छात्रों के लिए आवश्यक है ताकि वे स्वास्थ्य और अध्ययन के बीच संतुलन बनाए रख सकें।
Explanation in English:
This verse emphasizes a balanced lifestyle, which is essential for students to maintain their health and focus on studies effectively. Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
भगवद गीता 18.14
संस्कृत:
अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्। विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्॥
अनुवाद:
सभी कार्यों के लिए पाँच कारण होते हैं: स्थान, कर्ता, साधन, प्रयत्न और दैवी सहायता।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक बताता है कि सफलता के लिए केवल प्रयास ही नहीं, बल्कि सही साधन, स्थान, और आशीर्वाद की भी आवश्यकता होती है। छात्रों को सभी पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए।
Explanation in English:
This verse explains that success requires effort, resources, the right environment, and divine support. Students should focus on all these aspects for success.
भगवद गीता 2.41
संस्कृत:
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन। बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्॥
अनुवाद:
जो लोग एकनिष्ठ बुद्धि रखते हैं, उनकी बुद्धि स्थिर होती है। जबकि जो अस्थिर मन वाले होते हैं, उनकी बुद्धि अनेक शाखाओं में बिखर जाती है।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक छात्रों को एकाग्रता की महत्ता समझाता है, कि वे अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें और भटकाव से बचें।
Explanation in English:
This verse highlights the importance of focus, encouraging students to concentrate on their goals without getting distracted.
भगवद गीता 3.8
संस्कृत:
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥
अनुवाद:
तुम्हारे लिए कर्म करना ही उचित है, क्योंकि बिना कर्म के जीवन संभव नहीं है। निष्क्रियता से कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक छात्रों को कर्तव्य पालन की प्रेरणा देता है, कि वे मेहनत से कभी पीछे न हटें।
Explanation in English:
This verse motivates students to fulfill their responsibilities diligently and never shy away from hard work.
भगवद गीता 6.7
संस्कृत:
जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः। शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः॥
अनुवाद:
जिसने अपने मन को जीत लिया है, उसके लिए परमात्मा समान रूप से उपस्थित है। वह व्यक्ति सर्दी-गर्मी, सुख-दुख, और मान-अपमान में शांत रहता है।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक छात्रों को सिखाता है कि उन्हें स्थिर और शांत रहना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।
Explanation in English:
This verse teaches students to remain calm and balanced in all situations, whether favorable or unfavorable.
भगवद गीता 18.9
संस्कृत:
कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन। सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्यागः सात्त्विको मतः॥
अनुवाद:
जो कार्य मात्र कर्तव्य मानकर फल की इच्छा छोड़े बिना किया जाता है, वही सात्त्विक त्याग कहलाता है।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक छात्रों को बताता है कि अपनी पढ़ाई को कर्तव्य समझकर करना चाहिए, न कि केवल परिणाम की आशा में।
Explanation in English:
This verse advises students to study as a duty, without being overly attached to the results.
भगवद गीता 2.37
संस्कृत:
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः॥
अनुवाद:
यदि तुम हारते हो, तो स्वर्ग प्राप्त करोगे और यदि जीतते हो, तो पृथ्वी का आनंद उठाओगे। इसलिए दृढ़ निश्चय के साथ खड़े हो जाओ।
Explanation in Hindi:
यह श्लोक छात्रों को सिखाता है कि चाहे सफलता मिले या असफलता, उन्हें प्रयास में कमी नहीं रखनी चाहिए। हर स्थिति में कुछ न कुछ सीखा जा सकता है।
Explanation in English:
This verse teaches students that, whether they succeed or fail, they should put in their best effort, as every situation provides a valuable lesson.
Motivational Bhagwat Geeta Shlok (Bhagavad Gita Quotes) in Hindi | प्रेरणादायक भगवत गीता श्लोक
भगवद गीता 2.20
संस्कृत:
न जायते म्रियते वा कदाचित् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥
अनुवाद:
आत्मा कभी न जन्म लेती है, न मरती है। वह नित्य, शाश्वत और पुरानी है; शरीर के नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।
Explanation:
यह श्लोक आत्मा की अमरता का वर्णन करता है, जो हमें सिखाता है कि जीवन में किसी भी भौतिक चीज़ को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि आत्मा अमर है। Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
भगवद गीता 2.47
संस्कृत:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फलों में नहीं। इसलिए फल की चिंता किए बिना अपने कर्म को पूरा करो।
Explanation:
यह श्लोक जीवन में निष्काम कर्म की महत्ता बताता है। यह हमें सिखाता है कि हमें फल की चिंता किए बिना कर्तव्य निभाना चाहिए।
भगवद गीता 4.7
संस्कृत:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
अनुवाद:
जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने स्वरूप में अवतार लेता हूँ।
Explanation:
यह श्लोक दर्शाता है कि जब भी दुनिया में असंतुलन होता है, तब ईश्वर अपनी शक्ति से सही मार्ग दिखाने आते हैं। यह विश्वास हमें सही मार्ग पर चलते रहने की प्रेरणा देता है।
भगवद गीता 3.21
संस्कृत:
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
अनुवाद:
जो श्रेष्ठ व्यक्ति करता है, अन्य लोग उसी का अनुसरण करते हैं। वह जो मानक स्थापित करता है, लोग उसे ही मानते हैं।
Explanation:
यह श्लोक बताता है कि हमारे कार्यों का दूसरों पर प्रभाव पड़ता है, इसलिए हमें सदा अच्छे कार्य करने चाहिए।
भगवद गीता 6.6
संस्कृत:
उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
अनुवाद:
व्यक्ति को अपने ही द्वारा ऊपर उठना चाहिए और खुद को गिराना नहीं चाहिए, क्योंकि वह स्वयं ही अपना मित्र और शत्रु है।
Explanation:
यह श्लोक आत्म-संयम और आत्म-निर्भरता की शिक्षा देता है, और बताता है कि हम अपनी प्रगति और पतन के स्वयं उत्तरदायी हैं।
भगवद गीता 18.66
संस्कृत:
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
अनुवाद:
सब धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, इसलिए शोक मत करो।
Explanation:
यह श्लोक ईश्वर पर विश्वास और समर्पण की महत्ता को दर्शाता है। यह हमें सिखाता है कि भगवान पर पूरी तरह विश्वास करने से हमारी सभी चिंताएँ दूर हो जाती हैं।
भगवद गीता 6.5
संस्कृत:
उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
अनुवाद:
व्यक्ति को अपने ही द्वारा ऊपर उठना चाहिए और खुद को गिराना नहीं चाहिए, क्योंकि वह स्वयं ही अपना मित्र और शत्रु है।
Explanation:
यह श्लोक आत्म-नियंत्रण के महत्व को बताता है और हमें यह सिखाता है कि स्वयं पर विश्वास करना और आत्म-निर्भर होना जरूरी है।
भगवद गीता 9.22
संस्कृत:
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥
अनुवाद:
जो अनन्य भाव से मेरा ध्यान करते हैं और मेरी उपासना करते हैं, उनके योग-क्षेम का मैं स्वयं वहन करता हूँ।
Explanation:
यह श्लोक विश्वास और समर्पण की शिक्षा देता है। यह हमें प्रेरित करता है कि जब हम सच्चे मन से भगवान की भक्ति करते हैं, तो वे हमारी सभी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं।
भगवद गीता 10.20
संस्कृत:
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः। अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च॥
अनुवाद:
हे अर्जुन, मैं सभी जीवों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं सभी का आरंभ, मध्य और अंत हूँ।
Explanation:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि ईश्वर हमारे हृदय में निवास करते हैं और वे ही हमारे जीवन के आधार हैं। इससे हमें भगवान के प्रति श्रद्धा और विश्वास बढ़ता है।
भगवद गीता 18.78
संस्कृत:
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥
अनुवाद:
जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण और धनुर्धर अर्जुन हैं, वहाँ निश्चित रूप से विजय और समृद्धि होती है।
Explanation:
यह श्लोक सिखाता है कि सच्चे नेतृत्व और परिश्रम के साथ सफलता निश्चित होती है। यह हमें आत्मविश्वास और सही मार्ग पर चलते रहने की प्रेरणा देता है।
Bhagavad Geeta Shlok in Hindi | भगवद गीता श्लोक हिंदी में
भगवद गीता 9.22
संस्कृत:
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥
अनुवाद:
जो अनन्य भाव से मेरी उपासना करते हैं और मुझमें ध्यान लगाते हैं, मैं उनके योग और क्षेम (उनकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति और सुरक्षा) का भार उठाता हूँ।
Explanation:
यह श्लोक भगवान की कृपा और आशीर्वाद का प्रतीक है। यह हमें विश्वास दिलाता है कि यदि हम निष्ठा से भगवान को स्मरण करते हैं, तो वे हमारी रक्षा करेंगे और हमारा कल्याण करेंगे।
Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
भगवद गीता 18.58
संस्कृत:
मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि। अथ चेत्वमहंकारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥
अनुवाद:
यदि तुम मुझमें चित्त लगाओगे, तो मेरी कृपा से सभी संकटों को पार कर लोगे। लेकिन यदि अहंकार से मेरे वचनों को नहीं मानोगे, तो नष्ट हो जाओगे।
Explanation:
यह श्लोक बताता है कि भगवान की कृपा से हम सभी कठिनाइयों को पार कर सकते हैं। यह उनके आशीर्वाद का प्रतीक है जो हमें साहस और सुरक्षा प्रदान करता है।
भगवद गीता 10.10
संस्कृत:
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्। ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते॥
अनुवाद:
जो मुझमें एकाग्र रहते हैं और प्रेमपूर्वक मेरी भक्ति करते हैं, उन्हें मैं वह बुद्धियोग प्रदान करता हूँ जिसके द्वारा वे मुझे प्राप्त करते हैं।
Explanation:
यह श्लोक भगवान के आशीर्वाद को दर्शाता है कि वे सच्चे भक्तों को सही मार्गदर्शन और दिव्य बुद्धि प्रदान करते हैं जिससे वे मोक्ष की ओर बढ़ सकें।
Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
भगवद गीता 4.11
संस्कृत:
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥
अनुवाद:
जो जैसे मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें वैसे ही प्राप्त होता हूँ। सभी लोग मेरे ही मार्ग पर चलते हैं।
Explanation:
यह श्लोक भगवान के आशीर्वाद का प्रतीक है, जो सभी के प्रति समान करुणा और प्रेम दिखाता है। यह हमें प्रेरित करता है कि जैसे भी हम भगवान का स्मरण करें, वे हमें उसी प्रकार से स्वीकार करते हैं।
भगवद गीता 9.31
संस्कृत:
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति।
अनुवाद:
हे अर्जुन, यह प्रतिज्ञा कर लो कि मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होगा।
Explanation:
यह श्लोक भगवान के आशीर्वाद और सुरक्षा का प्रतीक है, जिससे हमें यह विश्वास मिलता है कि जो भी भगवान का सच्चा भक्त है, वह उनकी कृपा से सुरक्षित रहता है।
Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi
भगवद गीता 7.21
संस्कृत:
यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति। तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्॥
अनुवाद:
जो भी भक्त किसी भी रूप में मुझे श्रद्धा से पूजना चाहता है, मैं उसकी उस श्रद्धा को अचल बनाता हूँ।
Explanation:
यह श्लोक भगवान की दयालुता और आशीर्वाद को दर्शाता है, जो प्रत्येक भक्त की श्रद्धा को स्वीकार करते हैं और उसे बढ़ाते हैं।
भगवद गीता 18.66
संस्कृत:
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
अनुवाद:
सब धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा। चिंता मत करो।
Explanation:
यह श्लोक भगवान के असीम आशीर्वाद का प्रतीक है, जो हमें शरणागत भाव में रहकर सभी समस्याओं से मुक्ति का आश्वासन देते हैं।
भगवद गीता 12.6-7
संस्कृत:
ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः। अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते॥ तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।
अनुवाद:
जो लोग अपने सभी कार्य मुझमें अर्पित कर, मुझमें ध्यान लगाते हैं, मैं उन्हें मृत्यु के इस संसार-सागर से पार कर लेता हूँ।
Explanation:
यह श्लोक भगवान के आशीर्वाद का प्रतीक है, जो हमें इस भौतिक संसार से मुक्त करने का वादा करते हैं, यदि हम अपने कार्यों को उनके प्रति समर्पित करते हैं।
भगवद गीता 15.15
संस्कृत:
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च। वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्॥
अनुवाद:
मैं सभी के हृदय में स्थित हूँ। मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और भूलने की शक्ति आती है। सभी वेदों का उद्देश्य मुझे जानना है।
Explanation:
यह श्लोक भगवान के आशीर्वाद और उनकी सर्वव्यापकता को दर्शाता है, जो सभी को स्मृति, ज्ञान, और आंतरिक प्रेरणा प्रदान करते हैं।
भगवद गीता 10.8
संस्कृत:
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते। इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः॥
अनुवाद:
मैं सभी का उद्गम हूँ, मुझसे सबकुछ उत्पन्न होता है। जो इसे जानते हैं, वे भक्ति भाव से मेरी पूजा करते हैं।
Explanation:
यह श्लोक भगवान के अनंत आशीर्वाद का प्रतीक है, जो समस्त सृष्टि के कारण और संचालक हैं। जो उनकी महानता को समझते हैं, वे उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।
Bhagavad Gita Quotes in Sanskrit | भगवद गीता के श्लोक संस्कृत में
भगवद गीता 2.47
श्लोक: कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
Hindi Anuvad:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म को ही अपना धर्म मानो और फल की चिंता छोड़ दो।
Explanation:
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और उसके परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए। यह दृष्टिकोण हमें मानसिक शांति और कर्म में एकाग्रता बनाए रखने में मदद करता है।
English Explanation:
Lord Krishna tells Arjuna that one has control only over their actions, not the outcomes. This teaching encourages focus on duties without attachment to results, fostering mental peace and dedication to work.
भगवद गीता 3.35
श्लोक: श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥
Hindi Anuvad:
अपने धर्म का पालन करना ही सर्वोत्तम है, भले ही वह दोषपूर्ण क्यों न हो। दूसरों के धर्म का पालन करना भयावह होता है।
Explanation:
यह श्लोक बताता है कि हमें अपने जीवन में अपने ही कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, चाहे वह कितने भी कठिन क्यों न हों। दूसरों के कार्यों को अपनाने से डर और असफलता होती है।
English Explanation:
This verse teaches that following one’s own duty is the best path, even if flawed. Emulating others’ duties can lead to fear and failure.
भगवद गीता 4.7
श्लोक: यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
Hindi Anuvad:
हे भारत, जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का उत्थान होता है, तब-तब मैं अपना अवतार लेता हूँ।
Explanation:
भगवान आश्वासन देते हैं कि जब भी समाज में अधर्म बढ़ेगा और धर्म की आवश्यकता होगी, वे सृष्टि में अपना अवतार लेकर धर्म की रक्षा करेंगे।
English Explanation:
Lord Krishna assures that whenever righteousness declines and unrighteousness rises, He incarnates to restore balance and protect virtue.
भगवद गीता 2.20
श्लोक: न जायते म्रियते वा कदाचिन्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥
Hindi Anuvad:
आत्मा का न कभी जन्म होता है और न मृत्यु। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुराना है। शरीर के नष्ट होने पर भी इसका नाश नहीं होता।
Explanation:
यह श्लोक आत्मा की अमरता को दर्शाता है। आत्मा का कोई जन्म या मृत्यु नहीं होता और यह अनन्तकाल तक बनी रहती है।
English Explanation:
This verse highlights the immortality of the soul, which is eternal, unborn, and never-ending, even though the physical body perishes.
भगवद गीता 18.66
श्लोक: सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
Hindi Anuvad:
सभी धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा। चिंता मत करो।
Explanation:
भगवान सभी पापों और दुखों से मुक्ति का आश्वासन देते हैं यदि हम उन्हें एकमात्र शरण मानकर आत्मसमर्पण करें।
English Explanation:
Krishna assures liberation from all sins if we surrender to Him completely, promising freedom from suffering and fear.
भगवद गीता 10.20
श्लोक: अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च॥
Hindi Anuvad:
हे अर्जुन, मैं सभी प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं ही सभी का आदि, मध्य और अंत हूँ।
Explanation:
भगवान सभी जीवों के हृदय में निवास करते हैं और सृष्टि के आरंभ, मध्य, और अंत के साक्षी हैं।
English Explanation:
Lord Krishna describes Himself as the soul residing in the hearts of all beings, being the beginning, middle, and end of all creation.
भगवद गीता 6.5
श्लोक: उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
Hindi Anuvad:
व्यक्ति को अपने ही द्वारा ऊपर उठना चाहिए और खुद को गिराना नहीं चाहिए, क्योंकि वह स्वयं ही अपना मित्र और शत्रु है।
Explanation:
यह श्लोक बताता है कि स्वयं को सुधारने और आत्म-विकास का दायित्व व्यक्ति पर ही है। हम ही अपने सच्चे मित्र और शत्रु होते हैं।
English Explanation:
This verse emphasizes self-improvement and responsibility, indicating that one is both their best friend and worst enemy.
भगवद गीता 2.13
श्लोक: देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥
Hindi Anuvad:
जैसे इस शरीर में बाल्यावस्था, यौवन और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को प्राप्त करती है। धीर व्यक्ति इसमें भ्रमित नहीं होते।
Explanation:
यह श्लोक आत्मा के शरीर बदलने की प्रक्रिया का वर्णन करता है और समझाता है कि जैसे शरीर बदलता है वैसे ही आत्मा भी एक शरीर से दूसरे शरीर में जाती है।
English Explanation:
This verse explains the process of the soul transitioning from one body to another, encouraging detachment from physical changes.
भगवद गीता 4.18
श्लोक: कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्॥
Hindi Anuvad:
जो कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है, वही मनुष्यों में बुद्धिमान है और समस्त कर्मों को करने वाला है।
Explanation:
यह श्लोक बताता है कि सच्चा ज्ञान वह है जो कर्म और अकर्म का भेद समझ सके। जो इन दोनों में संतुलन देखता है, वह बुद्धिमान है।
English Explanation:
This verse explains that true wisdom lies in understanding the distinction between action and inaction, recognizing both in life’s work.
भगवद गीता 6.16
श्लोक: नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन॥
Hindi Anuvad:
जो बहुत खाता है या बहुत कम खाता है, जो बहुत सोता है या बहुत कम सोता है, उसके लिए योग (आत्म-संयम) संभव नहीं है।
Explanation:
यह श्लोक सिखाता है कि योग में सफलता के लिए संतुलित जीवन का होना जरूरी है, जिसमें भोजन और नींद का संयम आवश्यक है।
English Explanation:
This verse emphasizes a balanced lifestyle, suggesting that success in self-discipline requires moderation in eating and sleeping habits.
निष्कर्ष
भगवद गीता हमें जीवन के सभी पहलुओं पर अद्भुत मार्गदर्शन देती है। यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन के गहरे सवालों का उत्तर, कर्म का महत्व, आत्मा की अमरता, और भक्ति का वास्तविक अर्थ सिखाती है। गीता हमें सिखाती है कि जीवन में कर्म करना आवश्यक है, परंतु फल की चिंता छोड़कर, कर्म को अपना धर्म समझकर ही जीवन में शांति और संतोष प्राप्त किया जा सकता है। यह हमें आत्म-ज्ञान, आत्म-संयम और भगवान पर विश्वास के महत्व को समझाती है। संक्षेप में, गीता हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए मानसिक और आत्मिक बल प्रदान करती है और हमें आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: भगवद गीता का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: गीता का मुख्य संदेश है कि हमें बिना किसी फल की चिंता किए, अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को यह सिखाते हैं कि कर्म करना हमारा धर्म है, और उसके परिणामों का विचार करना भगवान का कार्य है। गीता हमें आत्म-संयम, समर्पण, और निष्काम कर्म का महत्व समझाती है।
प्रश्न 2: भगवद गीता का किसने और क्यों उपदेश दिया?
उत्तर: भगवद गीता का उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था। महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने अपने सगे-संबंधियों के विरुद्ध युद्ध करने से मना कर दिया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे जीवन के गूढ़ रहस्यों और कर्तव्य का उपदेश दिया, जिससे अर्जुन को अपनी जिम्मेदारी का बोध हुआ और उसने अपने कर्तव्य का पालन करने का संकल्प लिया।
प्रश्न 3: भगवद गीता में आत्मा का क्या महत्व है?
उत्तर: गीता में आत्मा को अमर, अविनाशी और शाश्वत बताया गया है। आत्मा का न कोई जन्म होता है और न ही मृत्यु। शरीर नष्ट हो सकता है, परंतु आत्मा सदा के लिए विद्यमान रहती है। आत्मा शरीर बदलती रहती है, ठीक उसी प्रकार जैसे व्यक्ति अपने कपड़े बदलता है। गीता हमें सिखाती है कि सच्चा ज्ञान आत्मा की पहचान में है, जो हमें जीवन-मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर सकती है।
प्रश्न 4: क्या भगवद गीता केवल हिन्दू धर्म के लोगों के लिए है?
उत्तर: नहीं, भगवद गीता किसी विशेष धर्म या जाति तक सीमित नहीं है। यह एक सार्वभौमिक ग्रंथ है जो सभी मनुष्यों के लिए जीवन का मार्गदर्शन करता है। गीता में दिए गए सिद्धांत जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लागू हो सकते हैं और किसी भी व्यक्ति के लिए प्रासंगिक हैं, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो।
प्रश्न 5: क्या गीता हमें आधुनिक जीवन में भी मार्गदर्शन दे सकती है?
उत्तर: हाँ, गीता के सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने महाभारत के समय थे। गीता हमें तनाव, अनिश्चितता और जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद करती है। गीता के द्वारा सिखाया गया कर्मयोग, ध्यान, और संयम आज के व्यस्त जीवन में भी शांति और संतुलन बनाए रखने में सहायक है।