भगवान श्री कृष्ण के उद्धरण, उनके दिव्य जीवन और उपदेशों से प्रेरित, सदियों से मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं। उनका हर वचन, चाहे वह भगवद् गीता से हो या उनके जीवन के अन्य पहलुओं से, हमें जीवन को सही दिशा में ले जाने का मार्ग दिखाता है। इस लेख में हम भगवान श्री कृष्ण के उद्धरणों की महत्ता को समझेंगे और जानेंगे कि कैसे ये उद्धरण हमारे जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
अवधारणा और महत्व
भगवान श्री कृष्ण कौन हैं?
भगवान श्री कृष्ण हिंदू धर्म के आठवें अवतार माने जाते हैं, जो महाभारत के महाकाव्य में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। उनका जन्म मथुरा में हुआ और गोकुल तथा वृंदावन में उनका बचपन बीता। उनकी शिक्षाएँ भगवद गीता में संकलित हैं, जो हमें कर्मयोग, भक्ति, और ज्ञान का सही अर्थ समझाती हैं।
क्यों महत्वपूर्ण हैं श्री कृष्ण के उद्धरण?
श्री कृष्ण के उद्धरण हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन दृष्टि प्रदान करते हैं। चाहे वह कर्म का महत्व हो, आत्मा की अमरता हो, या निःस्वार्थ सेवा का महत्त्व, उनके उद्धरण हमें सदैव प्रेरित करते हैं और एक सही मार्ग पर चलने का साहस प्रदान करते हैं।
100+ Lord Krishna Quotes in Hindi: भगवान श्री कृष्ण के अनमोल वचन हिंदी में
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
(तुम्हारा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं।)
Lord Krishna Quotes In Hindi
“मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।”
मेरा स्मरण करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो।
“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।”
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है।
“स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।”
अपने धर्म में मरना भी श्रेयस्कर है, दूसरे के धर्म का आचरण करना भयावह है।
“अविनाशी तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्।”
जो सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त है, वह आत्मा अविनाशी है।
“संयमेन युक्ते योगो भवति दुःखहा।”
संयमित मनुष्य योग के द्वारा दुःखों का अंत कर सकता है।
भगवद गीता के प्रमुख उद्धरण
1. कर्मयोग: कर्म करने का महत्त्व
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।”
इस उद्धरण का अर्थ है कि आपका अधिकार केवल कर्म करने में है, फल की इच्छा में नहीं। इसलिए कर्म करते रहें, क्योंकि कर्म ही जीवन का सार है।
2. आत्मा का अमरत्व
“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।”
शरीर वस्त्रों की भांति हैं, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर त्यागकर नए शरीर धारण करती है।
3. निःस्वार्थ सेवा
“यद् यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।”
श्रेष्ठ व्यक्ति जो आचरण करता है, समाज उसी का अनुसरण करता है। इसलिए निःस्वार्थ सेवा करें और समाज को सही मार्ग पर चलने का उदाहरण प्रस्तुत करें।
“अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।”
हे अर्जुन, मैं सभी जीवों के हृदय में निवास करने वाला आत्मा हूँ।
Lord Krishna Quotes In Hindi
“न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।”
इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं है।
“योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।”
योगस्थ होकर कर्म करो, मोह को त्यागकर।
“अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।”
तुम शोक नहीं करने योग्य का शोक कर रहे हो और ज्ञानी पुरुषों की भाँति बातें कर रहे हो।
“मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय:।”
हे पार्थ, जो भी मेरी शरण में आते हैं, चाहे वे पापी भी हों, वे मेरी कृपा से उध्दार हो जाते हैं।
“सर्वभूतानां शान्तिरुभयोऽपि न चैतयो:।”
जो सभी प्राणियों में समभाव रखते हैं, उन्हें दोनों लोकों में शांति मिलती है।
“न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।”
कोई भी क्षणभर के लिए भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता।
“कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।”
कर्म ब्रह्म से उत्पन्न हुआ है और ब्रह्म अक्षर से उत्पन्न हुआ है।
“सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।”
सुख-दुःख, लाभ-हानि और जय-पराजय को समान मानकर कर्म करो।
“श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।”
अपने धर्म में कमियों के बावजूद पालन करना दूसरे धर्म का पालन करने से श्रेष्ठ है।
Lord Krishna Quotes In Hindi
भगवान श्री कृष्ण की जीवन की शिक्षाएं
1. धर्म और अधर्म की पहचान: Lord Krishna Quotes In Hindi
श्री कृष्ण ने अपने जीवन में धर्म और अधर्म का स्पष्ट विभाजन बताया। उन्होंने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को धर्म का साथ देने के लिए प्रेरित किया और बताया कि धर्म की रक्षा करना ही सबसे बड़ा कर्तव्य है।
2. प्रेम और भक्ति का महत्व
श्री कृष्ण का राधा के साथ प्रेम और गोपियों के साथ उनकी लीलाएं भक्ति का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण हैं। उनका कहना था कि प्रेम और भक्ति ही ईश्वर तक पहुँचने का सच्चा मार्ग है।
3. जीवन में संतुलन
श्री कृष्ण ने हमेशा जीवन में संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया। उनके अनुसार, कर्म, भक्ति, और ज्ञान तीनों का संतुलन हमें जीवन में सफलता दिला सकता है।
“अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते।”
जो मुझे अनन्य भाव से सोचते हैं और मेरी पूजा करते हैं, मैं उनकी सुरक्षा करता हूँ।
“न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।”
इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं है।
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।”
सभी धर्मों का परित्याग कर मेरी शरण में आओ।
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।”
अपने द्वारा ही अपने को उठाओ, अपने को नीचे मत गिराओ।
“न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।”
कर्मों का आरंभ किए बिना पुरुष नैष्कर्म्य को प्राप्त नहीं कर सकता।
“न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।”
हे पार्थ, तीनों लोकों में मेरा कोई कर्तव्य शेष नहीं है।
“मायाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम्।”
मेरी अध्यक्षता में प्रकृति चराचर जगत को उत्पन्न करती है।
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।”
मनुष्य को अपने द्वारा ही अपने को ऊपर उठाना चाहिए, अपने को नीचे गिराना नहीं चाहिए।
“मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।”
मेरे सभी कर्मों को अध्यात्म की भावना से समर्पित करो।
श्री कृष्ण के संदेश: जीवन में अनुपालन
1. आत्म-साक्षात्कार
श्री कृष्ण का संदेश है कि हमें अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होना चाहिए। आत्म-साक्षात्कार से हम जीवन के सभी भ्रमों से मुक्त हो सकते हैं।
2. अहंकार का त्याग
उन्होंने अहंकार को त्यागने की आवश्यकता पर बल दिया। उनका कहना था कि अहंकार हमें हमारे वास्तविक स्वरूप से दूर करता है और असल आनंद से वंचित रखता है।
3. परोपकार और दया
श्री कृष्ण ने हमें परोपकार और दया का महत्व बताया। दूसरों की सहायता करना और उनके दुःखों को कम करना ही सच्ची मानवता है।
“न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूय:।”
आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है, न कभी उत्पन्न होती है, न ही फिर उत्पन्न होगी।
Lord Krishna Quotes In Hindi
“न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपा:।”
न मैं कभी था, न तुम थे, न ही ये राजा थे और न हम सभी न कभी भविष्य में होंगे।
“तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।”
इसलिए सभी समय में मेरा स्मरण करो और युद्ध करो।
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।”
हे भारत, जब-जब धर्म की हानि होती है।
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।”
साधुओं की रक्षा और दुष्कृत्यों के विनाश के लिए।
“धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।”
धर्म की स्थापना के लिए मैं युग-युग में अवतार लेता हूँ।
“न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपा:।”
न मैं कभी न था, न तुम, न ही ये राजा और न हम सभी न भविष्य में होंगे।
“न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।”
हे पार्थ, तीनों लोकों में मेरा कोई कर्तव्य शेष नहीं है।
“कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।”
कर्म ब्रह्म से उत्पन्न हुआ है और ब्रह्म अक्षर से उत्पन्न हुआ है।
“अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते।”
जो मुझे अनन्य भाव से सोचते हैं और मेरी पूजा करते हैं, मैं उनकी सुरक्षा करता हूँ।
श्री कृष्ण की शिक्षाओं का जीवन में अनुपालन
1. धर्म और अधर्म की पहचान
महाभारत के युद्ध के समय, श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म का साथ देने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि धर्म की रक्षा करना ही सबसे बड़ा कर्तव्य है और अधर्म का साथ देना जीवन की सबसे बड़ी भूल।
2. प्रेम और भक्ति का महत्त्व
श्री कृष्ण का राधा के साथ प्रेम और गोपियों के साथ उनकी लीलाएं भक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। उन्होंने बताया कि प्रेम और भक्ति से ही ईश्वर तक पहुँचा जा सकता है और यह मार्ग सबसे आसान है।
3. संतुलन और संयम का महत्व
श्री कृष्ण ने जीवन में संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि कर्म, भक्ति, और ज्ञान का संतुलन हमें जीवन में सच्ची सफलता दिला सकता है।
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।”
सभी धर्मों का परित्याग कर मेरी शरण में आओ।
“न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।”
कर्मों का आरंभ किए बिना पुरुष नैष्कर्म्य को प्राप्त नहीं कर सकता।
“मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।”
मेरा स्मरण करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो।
“योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।”
योगस्थ होकर कर्म करो, मोह को त्यागकर।
“मायाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम्।”
मेरी अध्यक्षता में प्रकृति चराचर जगत को उत्पन्न करती है।
“क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।”
हे पार्थ, यह कायरता तुममें शोभा नहीं देती।
“न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।”
इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं है।v
“तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।”
इसलिए सभी समय में मेरा स्मरण करो और युद्ध करो।
श्री कृष्ण के उद्धरणों का जीवन पर प्रभाव
1. आत्म-साक्षात्कार
श्री कृष्ण के उद्धरण हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर प्रेरित करते हैं। वे हमें सिखाते हैं कि हमें अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान होना चाहिए। आत्म-साक्षात्कार से हम जीवन के सभी भ्रमों और संघर्षों से मुक्त हो सकते हैं।
2. अहंकार का त्याग
श्री कृष्ण ने अहंकार को त्यागने की आवश्यकता पर बल दिया। उनका कहना था कि अहंकार हमें हमारे वास्तविक स्वरूप से दूर करता है और असल आनंद से वंचित रखता है।
3. परोपकार और दया
उन्होंने परोपकार और दया का महत्व बताया। दूसरों की सहायता करना और उनके दुःखों को कम करना ही सच्ची मानवता है।
व्यक्तिगत कहानियाँ और अनुभव
1. अर्जुन की कहानी
महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन मानसिक द्वंद्व में थे। श्री कृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश देकर धर्म और कर्तव्य का महत्व समझाया। इसने अर्जुन को सही निर्णय लेने में सहायता की और युद्ध में विजय दिलाई।
2. सुदामा की कहानी
सुदामा, श्री कृष्ण के बचपन के मित्र थे। जब सुदामा की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब हो गई, तो उन्होंने श्री कृष्ण से सहायता मांगी। श्री कृष्ण ने उन्हें न केवल आर्थिक सहायता दी, बल्कि उनकी आत्मिक शांति को भी पुनःस्थापित किया।
3. उद्धव का अनुभव
श्री कृष्ण ने उद्धव को भक्ति का वास्तविक अर्थ समझाया और उन्हें गोपियों के प्रेम की महत्ता का ज्ञान कराया। उन्होंने उद्धव को सिखाया कि भक्ति का सबसे शुद्ध रूप निःस्वार्थ प्रेम में है।
निष्कर्ष – Conclusion
भगवान श्री कृष्ण के उद्धरण और उपदेश हमें जीवन के हर पहलू में सही मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उनकी शिक्षाएँ हमें कर्म, भक्ति, और ज्ञान के सही अर्थ को समझने में सहायता करती हैं। इन उद्धरणों को अपने जीवन में अपनाकर हम अपने जीवन को संतुलित, शांतिपूर्ण, और सफल बना सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
श्री कृष्ण के प्रमुख उद्धरण कौन से हैं?
श्री कृष्ण के प्रमुख उद्धरण कर्म, धर्म, आत्मा, और प्रेम पर आधारित हैं, जैसे “कर्मण्येवाधिकारस्ते” और “वासांसि जीर्णानि यथा विहाय”।
श्री कृष्ण के उद्धरणों का क्या महत्व है?
उनके उद्धरण जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूते हैं और हमें सही दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। यह उद्धरण जीवन को संतुलित और सफल बनाने में मदद करते हैं।
श्री कृष्ण के उद्धरणों को जीवन में कैसे लागू करें?
श्री कृष्ण के उद्धरणों को समझकर और उन्हें अपने दैनिक जीवन में अपनाकर, जैसे कि कर्म में निष्ठा रखना और आत्म-साक्षात्कार पर ध्यान केंद्रित करना, हम अपने जीवन को सुधार सकते हैं।
क्या श्री कृष्ण के उद्धरण आधुनिक जीवन में प्रासंगिक हैं?
हाँ, श्री कृष्ण के उद्धरण आज के जीवन में भी प्रासंगिक हैं। उनके उपदेश हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति और आत्मविश्वास प्रदान करते हैं।
श्री कृष्ण के उद्धरणों का प्रमुख संदेश क्या है?
श्री कृष्ण के उद्धरणों का प्रमुख संदेश है कर्म में निष्ठा, धर्म का पालन, आत्म-साक्षात्कार, और निःस्वार्थ भक्ति। यह उद्धरण हमें जीवन में शांति और संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं।