Shreemad Bhagwat geeta chapter 2 | श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 2: सांख्य योग

byRuchika Pandey

Bhagwat Geeta

नमस्ते, प्रिय पाठकों

आपका स्वागत है भगवद गीता के दूसरे अध्याय में, जिसमें हम श्लोक 1 से 72 तक का अध्ययन करेंगे। पहले अध्याय में अर्जुन का मानसिक संघर्ष और द्वंद्व स्पष्ट हुआ था, जब वह युद्ध के लिए तैयार अपने परिवार, गुरुजनों और मित्रों को देख कर विचलित हो गया था। अब, दूसरे अध्याय में, श्रीकृष्ण अर्जुन को संपूर्ण ज्ञान देने की प्रक्रिया शुरू करते हैं।

इस अध्याय में श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन, धर्म और कर्म के महत्व को समझाते हैं। वे उसे बताते हैं कि आत्मा अजर-अमर है और उसका शरीर नश्वर है, इसलिए उसे अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं होना चाहिए। अर्जुन के द्वंद्व को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण उसे कर्मयोग, ज्ञानयोग, और भक्ति योग के सिद्धांतों से परिचित कराते हैं, जिससे वह सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होता है।

आइए, इस अध्याय के माध्यम से हम अर्जुन की समस्या का समाधान और श्रीकृष्ण के उपदेशों को समझने का प्रयास करें।

धन्यवाद!

Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: अध्याय 2 के श्लोक 1-10 को हिंदी में व्याख्य

Bhagwat Geeta

श्लोक: 1

सञ्जय उवाच |
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् |
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः || 2.1 ||

अर्थ:
सञ्जय बोले: करुणा से भरे हुए और अश्रुपूर्ण नेत्रों वाले अर्जुन को देखकर, जो अत्यंत व्याकुल था, मधुसूदन श्रीकृष्ण ने उसे यह वचन कहा।

व्याख्या:
इस श्लोक में अर्जुन की स्थिति का वर्णन किया गया है। अर्जुन करुणा और दया के कारण युद्ध के प्रति असमर्थता महसूस कर रहा है। इस स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण उसे सांत्वना देने के लिए संवाद शुरू करते हैं।

Explanation in Hindi:
यहाँ अर्जुन को करुणा से भरा और युद्ध के लिए व्याकुल दिखाया गया है। यह अर्जुन के मानवीय स्वभाव और दया भाव को प्रकट करता है। भगवान श्रीकृष्ण, जो मार्गदर्शन के प्रतीक हैं, उसे प्रेरित करने के लिए तैयार हैं।

Explanation in English:
Here, Arjuna is depicted as overwhelmed with compassion and sorrow, unwilling to proceed with the battle. Lord Krishna, symbolizing wisdom and guidance, is about to console and motivate him.

श्लोक: 2

श्रीभगवानुवाच |
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् |
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन || 2.2 ||

अर्थ:
श्रीभगवान बोले: हे अर्जुन! यह मोह तुम्हें इस महत्वपूर्ण समय में कैसे आ गया? यह न तो आर्य पुरुषों के योग्य है, न स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाला, और न ही यश देने वाला है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन की कायरता पर प्रश्न करते हैं और उसे अपने कर्तव्य का स्मरण कराते हैं। वे उसे बताते हैं कि यह स्थिति उसके जैसे वीर योद्धा के लिए अनुचित है और उसे धर्म के मार्ग पर चलने का निर्देश देते हैं।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण अर्जुन को उसके कर्तव्य की याद दिलाते हैं और कहते हैं कि मोह और निराशा उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाएगी। वे उसे धर्म और कर्तव्य पालन की ओर प्रेरित करते हैं।

Explanation in English:
Lord Krishna questions Arjuna’s despondency at such a crucial moment, emphasizing that this behavior is unworthy of a noble warrior and detrimental to his honor. He urges Arjuna to follow the path of righteousness and duty.

श्लोक: 3

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते |
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप || 2.3 ||

अर्थ:
हे पार्थ! कायरता को प्राप्त मत हो। यह तुम्हारे लिए उचित नहीं है। छोटे हृदय का दुर्बलता त्यागकर, उठो, हे शत्रुओं को संताप देने वाले!

व्याख्या:
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को प्रेरित करते हैं कि वह अपनी दुर्बलता और संकोच को त्यागे। वे उसे अपनी शक्ति और जिम्मेदारी का स्मरण कराते हैं।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण अर्जुन को उसके भीतर छिपी शक्ति और वीरता को याद दिलाते हैं। वे कहते हैं कि आत्मबल के साथ उठो और अपने कर्तव्यों को निभाओ।

Explanation in English:
Lord Krishna inspires Arjuna to discard his weakness and hesitation. He reminds Arjuna of his inner strength and encourages him to rise and fulfill his duties.

श्लोक: 4

अर्जुन उवाच |
कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन |
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन || 2.4 ||

अर्थ:
अर्जुन बोले: हे मधुसूदन! हे अरिसूदन! मैं युद्ध में भीष्म और द्रोण जैसे पूजनीय व्यक्तियों पर बाण कैसे चला सकता हूँ?

व्याख्या:
इस श्लोक में अर्जुन अपनी असमर्थता व्यक्त करता है। वह भीष्म और द्रोण को अपने आदर्श और गुरु मानता है, और उनके विरुद्ध युद्ध करने की कल्पना भी उसके लिए असंभव प्रतीत होती है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन अपनी दुविधा प्रकट करता है कि जिन व्यक्तियों को वह पूजनीय मानता है, उन पर बाण चलाना उसके लिए धर्म और नैतिकता के विरुद्ध है।

Explanation in English:
Arjuna expresses his dilemma, stating that it is against his moral and ethical principles to fight against revered individuals like Bhishma and Drona.

श्लोक: 5

गुरूनहत्वा हि महानुभावान्
श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके |
हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव
भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् || 2.5 ||

अर्थ:
ऐसे महानुभाव गुरुजनों को मारने की अपेक्षा, मैं इस संसार में भिक्षा मांगकर जीवनयापन करना बेहतर समझता हूँ। उन्हें मारकर तो मुझे केवल रक्त से सने भोग ही प्राप्त होंगे।

व्याख्या:
अर्जुन का यह विचार है कि अपने पूज्य गुरुजनों को मारकर प्राप्त की गई विजय, धन, और भोग, सभी पापमय होंगे। इसके स्थान पर वह एक साधारण और शांतिपूर्ण जीवन को प्राथमिकता देता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन को लगता है कि गुरुजनों को मारकर प्राप्त की गई कोई भी सफलता धर्म के विरुद्ध होगी। इसलिए वह साधारण जीवन को अधिक उचित मानता है।

Explanation in English:
Arjuna believes that achieving victory and wealth by killing his revered teachers would be sinful. He prefers a simple, peaceful life over such success.

श्लोक: 6

न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः |
यानेव हत्वा न जिजीविषामः
तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः || 2.6 ||

अर्थ:
हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए क्या बेहतर है – उन्हें जीतना या उनसे हार जाना। जिनको मारने के बाद हम जीने की इच्छा भी नहीं रखते, वे हमारे सामने खड़े हैं।

व्याख्या:
अर्जुन अपने विचारों और निर्णयों में असमंजस की स्थिति में है। वह अपने प्रियजनों और संबंधियों के विरुद्ध युद्ध करने के नतीजों को लेकर अनिश्चित है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन अपने रिश्तेदारों और गुरुजनों के विरुद्ध युद्ध की नैतिकता पर सवाल उठाता है। वह यह तय नहीं कर पा रहा कि जीतना या हारना, दोनों में से कौन सा सही है।

Explanation in English:
Arjuna questions the morality of fighting against his relatives and mentors. He is unsure whether victory or defeat would be better in such a situation.

श्लोक: 7

कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
प्रच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः |
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् || 2.7 ||

अर्थ:
मैं कायरता से दबे हुए स्वभाव का हो गया हूँ और धर्म के विषय में भ्रमित हो गया हूँ। इसलिए, मैं आपसे पूछता हूँ कि मेरे लिए क्या श्रेयस्कर है। मैं आपका शिष्य हूँ और आपकी शरण में हूँ। कृपया मुझे उपदेश दें।

व्याख्या:
यहाँ अर्जुन अपनी असमर्थता और दुविधा को स्वीकार करता है और भगवान श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन की प्रार्थना करता है। वह स्वयं को उनके शिष्य के रूप में प्रस्तुत करता है और उनके निर्देश को स्वीकार करने के लिए तैयार है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने अपनी दुर्बलता को स्वीकार किया और श्रीकृष्ण से अपनी दुविधा को सुलझाने और धर्म का मार्ग दिखाने का निवेदन किया। यह उनकी गुरु-शिष्य संबंध की शुरुआत को दर्शाता है।

Explanation in English:
Arjuna admits his weakness and confusion about his duty. He surrenders himself to Lord Krishna as a disciple, seeking guidance to resolve his dilemma and follow the righteous path.

श्लोक: 8

न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्
यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् |
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं
राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् || 2.8 ||

अर्थ:
मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं दिखाई देता, जो मेरी इंद्रियों को सुखा देने वाले इस शोक को दूर कर सके, चाहे मुझे इस पृथ्वी पर बिना शत्रु वाला समृद्ध राज्य ही क्यों न मिल जाए, या स्वर्ग के देवताओं का राज्य ही क्यों न मिल जाए।

व्याख्या:
अर्जुन यह स्पष्ट करता है कि युद्ध से उत्पन्न हुई यह पीड़ा और शोक इतनी गहरी है कि इसे सांसारिक सुखों और ऐश्वर्य से भी मिटाया नहीं जा सकता।

Explanation in Hindi:
अर्जुन कहता है कि चाहे उसे पृथ्वी का समृद्ध राज्य या स्वर्ग का शासन भी प्राप्त हो जाए, फिर भी उसकी व्यथा और शोक को दूर नहीं किया जा सकता। यह उसके मानसिक द्वंद्व की गहराई को दर्शाता है।

Explanation in English:
Arjuna conveys that even attaining the most prosperous kingdom on Earth or the dominion of the heavens cannot alleviate his grief and anguish. This reflects the depth of his inner conflict.

श्लोक: 9

सञ्जय उवाच |
एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप |
न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह || 2.9 ||

अर्थ:
सञ्जय ने कहा: इस प्रकार गुडाकेश (अर्जुन) ने हृषीकेश (श्रीकृष्ण) से कहा, “मैं युद्ध नहीं करूंगा।” ऐसा कहकर वह चुप हो गया।

व्याख्या:
अर्जुन ने अपनी असमर्थता को व्यक्त कर दिया और शांत हो गया। अब वह श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन की प्रतीक्षा करता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने अपनी स्थिति को स्पष्ट कर दिया कि वह युद्ध करने के लिए तैयार नहीं है। इसके बाद वह श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन पाने की प्रतीक्षा करने लगा।

Explanation in English:
Arjuna declared his unwillingness to fight and became silent, awaiting Lord Krishna’s guidance to resolve his dilemma.

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श्लोक: 10

तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत |
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः || 2.10 ||

अर्थ:
हे भारत (धृतराष्ट्र)! सेनाओं के बीच विषाद में डूबे अर्जुन से हृषीकेश (श्रीकृष्ण) ने मंद मुस्कान के साथ यह वचन कहा।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण ने अर्जुन की दुविधा और विषाद को समझते हुए, उसे कर्तव्यपथ पर लाने के लिए ज्ञान का उपदेश देना प्रारंभ किया। उनकी मुस्कान यह दर्शाती है कि वे अर्जुन के मोह और भ्रम को दूर करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण ने अपनी मुस्कान के साथ अर्जुन को संबोधित किया, जो यह दिखाता है कि वे अर्जुन की समस्या को हल करने के लिए शांत और धैर्यवान हैं। अब वे उसे आत्मज्ञान और कर्तव्य का पाठ पढ़ाने जा रहे हैं।

Explanation in English:
Lord Krishna, with a gentle smile, addressed Arjuna, who was overwhelmed with sorrow. This signifies Krishna’s readiness to guide Arjuna by imparting the knowledge of duty and self-realization.

Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: अध्याय 2 के श्लोक 11-20 को हिंदी में व्याख्य

श्लोक: 11

श्रीभगवानुवाच |
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः || 2.11 ||

अर्थ:
भगवान श्रीकृष्ण बोले: जिनके लिए शोक करना उचित नहीं है, उनके लिए तुम शोक कर रहे हो और ज्ञान की बातें कर रहे हो। परंतु पंडितजन न मरे हुए लोगों के लिए शोक करते हैं और न ही जीवित लोगों के लिए।

व्याख्या:
यह श्लोक श्रीकृष्ण के उपदेश की शुरुआत है। वे अर्जुन को समझाते हैं कि आत्मा अमर है, और ज्ञानियों के लिए शरीर की मृत्यु पर शोक करना उचित नहीं है। यह श्लोक आत्मा के शाश्वत स्वरूप की ओर इशारा करता है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि वह जिन बातों पर शोक कर रहा है, वे ज्ञानियों के दृष्टिकोण से तुच्छ हैं। आत्मा अमर है, और केवल शरीर नश्वर है।

Explanation in English:
Lord Krishna begins his teaching by explaining that Arjuna’s sorrow is misplaced. The soul is eternal, and wise individuals do not grieve for the living or the dead.

श्लोक: 12

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः |
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् || 2.12 ||

अर्थ:
न तो कभी ऐसा समय था जब मैं नहीं था, न तुम थे, न ये राजा; और न ही ऐसा होगा कि हम सब आगे कभी नहीं रहेंगे।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्मा की शाश्वतता का सिद्धांत प्रस्तुत करता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा न कभी उत्पन्न हुई है और न ही उसका कभी अंत होगा। यह शाश्वत, अनादि और अनंत है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि आत्मा हमेशा से है और हमेशा रहेगी। जन्म और मृत्यु केवल शरीर के स्तर पर होते हैं, आत्मा अजर-अमर है।

Explanation in English:
Lord Krishna emphasizes the eternal nature of the soul. He explains that the soul has neither a beginning nor an end; it is eternal and indestructible.

श्लोक: 13

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा |
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति || 2.13 ||

अर्थ:
जिस प्रकार इस शरीर में जीवात्मा बाल्यावस्था, यौवन और बुढ़ापे को प्राप्त करता है, उसी प्रकार मृत्यु के बाद यह दूसरे शरीर को प्राप्त करता है। ज्ञानी व्यक्ति इस पर शोक नहीं करता।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण आत्मा के स्वाभाविक परिवर्तन को समझाते हैं। जैसे शरीर में अवस्थाएं बदलती हैं, वैसे ही मृत्यु के बाद आत्मा दूसरे शरीर को धारण करती है। इसलिए इसे स्वाभाविक मानकर शोक नहीं करना चाहिए।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि आत्मा का यह गुण है कि वह शरीर की अवस्थाओं को बदलते हुए अंत में नए शरीर को प्राप्त करती है। इसे जानने वाला व्यक्ति शोक नहीं करता।

Explanation in English:
Lord Krishna explains that the soul naturally transitions through different stages within a body and eventually moves to a new body after death. Knowing this, wise individuals do not grieve.

श्लोक: 14

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः |
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत || 2.14 ||

अर्थ:
हे कौन्तेय! इंद्रियों का संयोग सर्दी-गर्मी, सुख-दुःख को उत्पन्न करता है। ये क्षणिक हैं, आते-जाते रहते हैं। हे भारत, इन्हें सहन करो।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण कहते हैं कि इंद्रियों का संसार से संपर्क हमें सुख-दुःख का अनुभव कराता है। यह अस्थायी है और केवल धैर्य से सहन किया जा सकता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक सिखाता है कि सुख और दुःख, जैसे अनुभव, अस्थायी हैं और धैर्य से इन पर विजय पाई जा सकती है। इन्हें स्थायी मानकर दुःखी होना अनुचित है।

Explanation in English:
This verse teaches that sensations of pleasure and pain are temporary, arising from the contact of the senses with their objects. With patience and tolerance, one can transcend them.

श्लोक: 15

यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ |
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते || 2.15 ||

अर्थ:
हे पुरुषों में श्रेष्ठ! जिसे सुख-दुःख समान रूप से प्रभावित नहीं करते और जो धैर्यवान है, वही अमृतत्व (मोक्ष) के योग्य है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि वह व्यक्ति, जो सुख और दुःख में समान रहता है और विचलित नहीं होता, आत्मा के अमृत स्वरूप को प्राप्त करने के योग्य होता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक सिखाता है कि जो व्यक्ति जीवन के हर अनुभव को समान भाव से स्वीकार करता है, वही आध्यात्मिकता और मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है।

Explanation in English:
This verse emphasizes that one who remains unaffected by joy and sorrow and is steadfast becomes eligible for spiritual liberation and immortality.

श्लोक: 16

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः |
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः || 2.16 ||

अर्थ:
असत्य (अस्थाई) का अस्तित्व नहीं है, और सत्य (स्थाई) का अभाव नहीं हो सकता। तत्त्वदर्शी इस सत्य को जानते हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक स्थाई और अस्थाई के भेद को समझाता है। आत्मा शाश्वत है और सत्य है, जबकि शरीर और भौतिक जगत अस्थाई और मिथ्या हैं। ज्ञानीजन इस सत्य को अनुभव करते हैं।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि केवल आत्मा ही वास्तविक है और शाश्वत है। संसार के भौतिक रूप क्षणिक हैं और उनका वास्तविक अस्तित्व नहीं है।

Explanation in English:
Lord Krishna explains that only the soul is eternal and real, while the material world is temporary and unreal. Wise individuals understand this fundamental truth.

श्लोक: 17

अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् |
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति || 2.17 ||

अर्थ:
जो सम्पूर्ण जगत में व्याप्त है, उसे जानो कि वह अविनाशी है। उस अविनाशी आत्मा का विनाश कोई नहीं कर सकता।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि आत्मा सर्वव्यापी और अविनाशी है। भौतिक वस्तुएं नष्ट हो सकती हैं, लेकिन आत्मा को कोई नष्ट नहीं कर सकता।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक आत्मा की अमरता और सर्वव्यापकता पर जोर देता है। आत्मा को नष्ट करना असंभव है, क्योंकि यह शाश्वत और अव्यय है।

Explanation in English:
This verse highlights the immortality and omnipresence of the soul. It cannot be destroyed, as it is eternal and unchanging.

श्लोक: 18

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ता: शरीरिण: |
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत || 2.18 ||

अर्थ:
शरीर विनाशी है, लेकिन आत्मा अमर, असीम और अविनाशी है। इसलिए, हे भारत! युद्ध करो।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि शरीर केवल आत्मा का बाहरी आवरण है और इसका विनाश निश्चित है। आत्मा को कोई नहीं मार सकता, इसलिए अर्जुन को अपने धर्म का पालन करना चाहिए।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण अर्जुन को शरीर और आत्मा के अंतर को समझाते हैं। वे कहते हैं कि शरीर नाशवान है, लेकिन आत्मा अमर है। इसलिए धर्म के अनुसार कर्तव्य करना चाहिए।

Explanation in English:
Lord Krishna explains the distinction between the body and the soul. While the body is perishable, the soul is eternal. Hence, Arjuna must perform his duty without hesitation.

श्लोक: 19

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् |
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते || 2.19 ||

अर्थ:
जो आत्मा को हत्यारा मानता है और जो इसे मारा हुआ मानता है, वे दोनों ही अज्ञानी हैं। आत्मा न किसी को मारती है और न ही इसे मारा जा सकता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा अकर्ता है और इसे किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं किया जा सकता। यह जन्म और मृत्यु से परे है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक आत्मा की अकर्ता और अजेय प्रकृति को स्पष्ट करता है। आत्मा शाश्वत है और किसी भी प्रकार के कर्म से अछूती रहती है।

Explanation in English:
This verse clarifies that the soul is non-doer and indestructible. It is beyond birth and death and cannot be affected by any actions.

श्लोक: 20

न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः |
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे || 2.20 ||

अर्थ:
आत्मा न कभी जन्म लेती है और न ही कभी मरती है। न यह उत्पन्न हुई है, न यह फिर से उत्पन्न होगी। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नष्ट होने पर भी यह नष्ट नहीं होती।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता का उपदेश देते हैं। वे बताते हैं कि आत्मा किसी भी भौतिक परिवर्तन से प्रभावित नहीं होती। आत्मा का न तो जन्म होता है और न ही मृत्यु।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक आत्मा की नित्य और अविनाशी प्रकृति का वर्णन करता है। शरीर विनाशी है, लेकिन आत्मा शाश्वत है और इसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता।

Explanation in English:
This verse describes the eternal and indestructible nature of the soul. While the body is perishable, the soul remains eternal and unaffected by physical destruction

Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: अध्याय 2 के श्लोक 21-30 को हिंदी में व्याख्य

श्लोक: 21

वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् |
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् || 2.21 ||

अर्थ:
हे पार्थ! जो इस आत्मा को अविनाशी, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह कैसे किसी को मार सकता है या मरवा सकता है?

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि आत्मा को समझने वाला व्यक्ति हिंसा या हत्या के विचार से ऊपर उठ जाता है, क्योंकि आत्मा को कोई मार नहीं सकता।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण यह सिखाते हैं कि आत्मा को समझने वाला व्यक्ति आत्मा की अमरता के कारण किसी को मारने या मारे जाने के भय से मुक्त हो जाता है।

Explanation in English:
Lord Krishna explains that one who truly understands the immortality of the soul transcends the concepts of killing or being killed, as the soul can neither slay nor be slain.

श्लोक: 22

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि |
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही || 2.22 ||

अर्थ:
जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नए शरीर को धारण करती है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण आत्मा के अमरत्व और शरीर की अस्थायीत्व को स्पष्ट करते हैं। शरीर आत्मा का आवरण मात्र है, जिसे समय आने पर आत्मा बदल देती है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक सिखाता है कि आत्मा शरीरों को वैसे ही बदलती है जैसे पुराने कपड़ों को त्यागकर नए कपड़े पहन लिए जाते हैं।

Explanation in English:
This verse illustrates that the soul changes bodies just as a person discards old garments and dons new ones, emphasizing the soul’s eternal nature.

श्लोक: 23

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः |
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः || 2.23 ||

अर्थ:
न इसे शस्त्र काट सकते हैं, न इसे अग्नि जला सकती है, न इसे जल भिगो सकता है और न ही वायु सुखा सकती है।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्मा की अजेयता और अचलता का वर्णन करता है। आत्मा पर कोई भी बाहरी तत्व प्रभाव नहीं डाल सकता, क्योंकि यह भौतिक तत्वों से परे है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण आत्मा की अजेयता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि आत्मा को नष्ट करने का कोई भी साधन काम नहीं करता। यह शाश्वत और अद्वितीय है।

Explanation in English:
Lord Krishna describes the invulnerability of the soul, explaining that no weapon, fire, water, or wind can harm it, as it is beyond the realm of material elements.

श्लोक: 24

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च |
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः || 2.24 ||

अर्थ:
यह आत्मा न काटी जा सकती है, न जलाई जा सकती है, न इसे भिगोया जा सकता है और न सुखाया जा सकता है। यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, स्थिर, अचल और सनातन है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण इस श्लोक में आत्मा की दिव्यता और शाश्वतता का वर्णन करते हैं। आत्मा को किसी भी प्रकार से नष्ट या बदला नहीं जा सकता। यह सर्वव्यापी और अटल है।

Explanation in Hindi:
आत्मा का स्वभाव शाश्वत और अजेय है। यह शरीर के नाश के बाद भी वैसी ही रहती है और इसे किसी भी भौतिक उपाय से नष्ट नहीं किया जा सकता।

Explanation in English:
The soul is described as eternal, invincible, and unalterable. It cannot be harmed, modified, or destroyed by any material means.

श्लोक: 25

अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते |
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि || 2.25 ||

अर्थ:
यह आत्मा अव्यक्त, अचिंत्य और अपरिवर्तनीय है। अतः इसे समझकर तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्मा के गुणों का गहन वर्णन करता है। आत्मा को अनुभव किया जा सकता है लेकिन इसे इंद्रियों द्वारा देखा या समझा नहीं जा सकता। इसे जानने वाले शोक से मुक्त हो जाते हैं।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि आत्मा को मस्तिष्क से समझा नहीं जा सकता। यह केवल अनुभव और विश्वास का विषय है। इसे जानने के बाद शोक करने का कोई कारण नहीं है।

Explanation in English:
Lord Krishna explains that the soul is imperceptible, beyond thought, and unchanging. Understanding its true nature frees one from grief.

श्लोक: 26

अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् |
तथापि त्वं महाबाहो नैनं शोचितुमर्हसि || 2.26 ||

अर्थ:
यदि तुम इसे (आत्मा को) नित्य जन्म लेने वाला या नित्य मरने वाला मानते हो, तब भी हे महाबाहु! तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण तर्क देते हैं कि चाहे आत्मा को अमर माना जाए या इसे बार-बार जन्म-मरण वाला समझा जाए, किसी भी स्थिति में शोक करने का कोई औचित्य नहीं है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक बताता है कि आत्मा की प्रकृति के बारे में चाहे जो भी धारणाएं हों, कर्तव्य के पालन में यह शोक का कारण नहीं बन सकती।

Explanation in English:
This verse argues that regardless of whether the soul is considered eternal or subject to repeated birth and death, there is no justification for grieving.

श्लोक: 27

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च |
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि || 2.27 ||

अर्थ:
जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है, और जो मरता है उसका पुनर्जन्म निश्चित है। इसलिए, अपरिहार्य (अनिवार्य) विषय पर तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण जीवन और मृत्यु को प्राकृतिक नियम बताते हैं। हर जीव जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधा है। इसे स्वाभाविक मानकर शोक करना व्यर्थ है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक जीवन और मृत्यु की अनिवार्यता को स्पष्ट करता है। इन्हें स्वाभाविक मानकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

Explanation in English:
This verse explains the inevitability of life and death. Understanding their natural order helps one focus on performing their duties without despair.

श्लोक: 28

अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत |
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना || 2.28 ||

अर्थ:
हे भारत (अर्जुन), सभी प्राणी अव्यक्त रूप से उत्पन्न होते हैं, मध्य में व्यक्त रूप में रहते हैं और अंत में फिर अव्यक्त हो जाते हैं। ऐसे में शोक किस बात का?

व्याख्या:
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि आत्मा अनश्वर है और यह जीवन-मृत्यु का चक्र प्राकृतिक है। सभी जीव अव्यक्त (अदृश्य) अवस्था से प्रकट होते हैं और अंत में उसी अवस्था में विलीन हो जाते हैं। इसलिए शोक करना अनुचित है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक जीवन के अनित्य स्वरूप को स्पष्ट करता है। श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि जन्म और मृत्यु के बीच की अवस्था केवल एक यात्रा है। आत्मा शाश्वत और अविनाशी है, इसलिए हमें किसी के मरने का शोक नहीं करना चाहिए।

Explanation in English:
This verse explains the transient nature of life. Lord Krishna tells Arjuna that all beings are unmanifested before birth and return to the unmanifested state after death. Therefore, grieving over this natural cycle is unnecessary.

श्लोक: 29

आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनम् आश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः |
आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् || 2.29 ||

अर्थ:
कोई आत्मा को आश्चर्य से देखता है, कोई इसे आश्चर्य के रूप में वर्णित करता है, कोई इसे आश्चर्य के रूप में सुनता है, और कोई इसे सुनकर भी समझ नहीं पाता।

व्याख्या:
इस श्लोक में आत्मा की गूढ़ता और अनोखेपन को दर्शाया गया है। आत्मा को समझना कठिन है क्योंकि यह भौतिक इंद्रियों से परे है। केवल आध्यात्मिक ज्ञान और अनुभव से ही इसे जाना जा सकता है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण यहां आत्मा के दिव्य और अनोखे स्वरूप को बताते हैं। इसे देखना, समझना और अनुभव करना आम व्यक्ति के लिए अत्यंत कठिन है। यह केवल उन लोगों को समझ में आता है जो ध्यान और आत्मज्ञान में लीन रहते हैं।

Explanation in English:
Lord Krishna emphasizes the uniqueness and profundity of the soul. It is beyond physical perception and can only be truly understood through spiritual practice and self-realization.

श्लोक: 30

देही नित्यं अवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत |
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि || 2.30 ||

अर्थ:
हे भारत (अर्जुन), यह आत्मा देह में नित्य अवध्य (मारने योग्य नहीं) है। इसलिए तुम सभी प्राणियों के लिए शोक करने के योग्य नहीं हो।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण आत्मा की अमरता का सिद्धांत समझा रहे हैं। आत्मा को किसी भी प्रकार से नष्ट नहीं किया जा सकता। अर्जुन को यह निर्देश दिया गया है कि उन्हें अपने कर्मों को आत्मा के ज्ञान के आधार पर निभाना चाहिए और शोक से दूर रहना चाहिए।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक आत्मा की अमरता को दर्शाता है। आत्मा अविनाशी और अजर है, इसे न तो मारा जा सकता है और न ही कोई इसे नष्ट कर सकता है। अर्जुन को यह सिखाया जा रहा है कि उन्हें अपने कर्मों का पालन निर्भय होकर करना चाहिए।

Explanation in English:
This verse highlights the immortality of the soul. The soul cannot be destroyed or harmed. Arjuna is being advised to fulfill his duties without any fear or sorrow.

Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: अध्याय 2 के श्लोक 31-40 को हिंदी में व्याख्य

श्लोक: 31

स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि |
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते || 2.31 ||

अर्थ:
अपने स्वधर्म (क्षत्रिय धर्म) को ध्यान में रखते हुए तुम्हें कर्तव्य पालन से विचलित नहीं होना चाहिए। क्षत्रिय के लिए धर्म के अनुसार युद्ध से बढ़कर कुछ भी श्रेष्ठ नहीं है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को उनके क्षत्रिय धर्म की याद दिलाते हैं। एक योद्धा के लिए धर्मानुसार युद्ध करना सबसे बड़ा कर्तव्य है। यदि अर्जुन युद्ध से पीछे हटते हैं, तो यह उनके धर्म का उल्लंघन होगा।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक क्षत्रिय धर्म की महिमा को दर्शाता है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि युद्ध करना, जब यह धर्म और सत्य के लिए हो, एक क्षत्रिय का सबसे पवित्र कार्य है।

Explanation in English:
This verse emphasizes the importance of performing one’s duty. Krishna reminds Arjuna that for a Kshatriya, fighting a righteous war is the most honorable and sacred duty.

श्लोक: 32

यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् |
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् || 2.32 ||

अर्थ:
हे पार्थ (अर्जुन), ऐसे स्वर्ग के द्वार खोलने वाले युद्ध को क्षत्रिय सौभाग्यशाली समझते हैं।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यह कहते हैं कि धर्म और सत्य के लिए युद्ध करना दुर्लभ और विशेष अवसर है। इसे भाग्यशाली योद्धाओं को ही मिलता है। ऐसे युद्ध से आत्मसम्मान और स्वर्ग प्राप्त होता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक धर्मयुद्ध की पवित्रता और महत्ता को उजागर करता है। श्रीकृष्ण समझाते हैं कि ऐसा युद्ध, जो धर्म और सत्य की रक्षा के लिए हो, योद्धाओं के लिए स्वर्ग का द्वार खोलता है।

Explanation in English:
This verse highlights the sanctity of a righteous war. Krishna explains that such a battle, fought for truth and justice, is an opportunity that opens the doors to heaven for warriors.

श्लोक: 33

अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि |
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि || 2.33 ||

अर्थ:
यदि तुम इस धर्मयुक्त युद्ध में भाग नहीं लेते, तो अपने कर्तव्य और कीर्ति दोनों को खोकर पाप अर्जित करोगे।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को उनके धर्म से विमुख होने के परिणामों के बारे में चेतावनी देते हैं। युद्ध से पलायन करना न केवल कर्तव्यच्युत होना है, बल्कि यह अपयश और अधर्म का कारण भी बनेगा।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि यदि वह अपने धर्म से विमुख होकर युद्ध से भागते हैं, तो उन्हें न केवल बदनामी मिलेगी, बल्कि यह कर्म उनके लिए पाप का कारण बनेगा।

Explanation in English:
Krishna warns Arjuna that abandoning his righteous duty of fighting will not only result in the loss of honor but also lead to sin and disgrace.

श्लोक: 34

अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् |
सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते || 2.34 ||

अर्थ:
लोग तुम्हारी अमर निंदा करेंगे, और सम्मानित व्यक्ति के लिए अपकीर्ति मृत्यु से भी अधिक कष्टप्रद होती है।

व्याख्या:
यह श्लोक अर्जुन के आत्मसम्मान को जागृत करने के उद्देश्य से है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि सम्मानित व्यक्ति के लिए बदनामी का बोझ सबसे बड़ा दंड है, जो मृत्यु से भी अधिक पीड़ादायक है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण समझाते हैं कि एक योद्धा के लिए सम्मान का स्थान सबसे ऊँचा होता है। अपकीर्ति केवल समाज में नहीं, बल्कि आत्मा को भी कष्ट देती है।

Explanation in English:
Krishna explains that for an honorable warrior, disgrace is more painful than death. Losing one’s reputation is the greatest suffering one can endure.

श्लोक: 35

भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः |
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् || 2.35 ||

अर्थ:
महारथी (महान योद्धा) सोचेंगे कि तुम भय के कारण युद्ध से पीछे हट गए। जिनका तुमने आदर प्राप्त किया है, वे भी तुम्हें तुच्छ समझेंगे।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि यदि वह युद्ध से पीछे हटते हैं, तो उनके सम्मान की हानि होगी। जो योद्धा पहले उनका आदर करते थे, वे अब उन्हें कायर समझेंगे।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण अर्जुन को उनके युद्ध से पीछे हटने के संभावित परिणामों के बारे में चेताते हैं। उनका कहना है कि ऐसा करने से अर्जुन का सम्मान खो जाएगा और वे समाज में कायर के रूप में जाने जाएंगे।

Explanation in English:
Krishna warns Arjuna that if he retreats from the battle, the great warriors will think he fled out of fear, and he will lose the respect and honor he once commanded.

श्लोक: 36

अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिताः |
निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम् || 2.36 ||

अर्थ:
तुम्हारे शत्रु अनेक अपमानजनक बातें कहेंगे और तुम्हारे पराक्रम की निंदा करेंगे। इससे बढ़कर तुम्हारे लिए और क्या कष्ट हो सकता है?

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यह समझा रहे हैं कि युद्ध से पीछे हटने पर न केवल अर्जुन को अपने मित्रों और समर्थकों का आदर खोना पड़ेगा, बल्कि उनके शत्रु भी उनका मजाक उड़ाएंगे। यह कष्ट मृत्यु से भी अधिक होगा।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक दिखाता है कि समाज में अपमान और निंदा एक योद्धा के लिए सबसे बड़ा कष्ट है। श्रीकृष्ण अर्जुन को उनके कर्तव्य के प्रति प्रेरित कर रहे हैं।

Explanation in English:
This verse illustrates that dishonor and ridicule are the greatest suffering for a warrior. Krishna motivates Arjuna to perform his duty with courage and conviction.

श्लोक: 37

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् |
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः || 2.37 ||

अर्थ:
यदि तुम मारे जाते हो, तो स्वर्ग प्राप्त करोगे, और यदि तुम जीत जाते हो, तो पृथ्वी का राज्य भोगोगे। इसलिए, हे कौन्तेय, युद्ध के लिए दृढ़ निश्चय के साथ खड़े हो जाओ।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि इस युद्ध में अर्जुन का दोनों ही स्थितियों में लाभ है। या तो वह स्वर्ग का सुख पाएंगे, या विजय प्राप्त कर पृथ्वी का सुख भोगेंगे। इसलिए उन्हें युद्ध में संकोच नहीं करना चाहिए।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक अर्जुन को प्रेरित करता है कि वह युद्ध में अपने कर्तव्यों का पालन करें। जीतने पर उन्हें पृथ्वी का राज्य मिलेगा, और हारने पर स्वर्ग का।

Explanation in English:
This verse inspires Arjuna by showing that he stands to gain in either case—victory will grant him the kingdom, and death will lead him to heavenly bliss.

श्लोक: 38

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ |
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि || 2.38 ||

अर्थ:
सुख-दुःख, लाभ-हानि, और विजय-पराजय को समान समझकर युद्ध के लिए तत्पर हो जाओ। ऐसा करने से तुम पाप में नहीं पड़ोगे।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखा रहे हैं कि निष्काम भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करें। परिणाम की चिंता किए बिना अपने कर्मों को निभाना ही सच्चा धर्म है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक कर्मयोग का मूल सिद्धांत सिखाता है। सुख-दुःख और विजय-पराजय को समान समझकर, निष्काम भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

Explanation in English:
This verse teaches the essence of karma yoga. Krishna advises Arjuna to perform his duty without attachment to the outcomes, treating success and failure alike.

श्लोक: 39

एषा तेऽभिहिता सांख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु |
बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि || 2.39 ||

अर्थ:
हे पार्थ! अब तक मैंने तुम्हें सांख्ययोग की बुद्धि समझाई है। अब योग के दृष्टिकोण से समझाता हूँ, जिससे इस बुद्धि के द्वारा तुम कर्म के बंधनों से मुक्त हो सको।

व्याख्या:
इस श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन को सांख्य (ज्ञान योग) की शिक्षा के बाद कर्म योग के महत्व को समझाने की तैयारी कर रहे हैं। वे बताते हैं कि योग के मार्ग पर चलने से कर्म के बंधनों से मुक्ति प्राप्त हो सकती है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण यह स्पष्ट करते हैं कि ज्ञान और कर्म का मेल जीवन की बाधाओं को दूर कर सकता है। योग के मार्ग पर चलने से मनुष्य अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी बंधनों से मुक्त हो सकता है।

Explanation in English:
Krishna explains that combining knowledge with action leads to liberation. By practicing yoga, one can perform duties without being bound by their outcomes.

श्लोक: 40

नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते |
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् || 2.40 ||

अर्थ:
इस योग में न तो प्रयत्न व्यर्थ जाता है और न ही विपरीत परिणाम होता है। इस धर्म का थोड़ा सा भी अभ्यास बड़े भय से बचा सकता है।

व्याख्या:
यह श्लोक कर्म योग के महत्व को दर्शाता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि योग का अभ्यास कभी भी व्यर्थ नहीं जाता और इसका थोड़ा सा भी अभ्यास व्यक्ति को महान संकटों से बचा सकता है।

Explanation in Hindi:
कर्म योग का अभ्यास न केवल आत्मा की उन्नति करता है, बल्कि यह जीवन के बड़े भय और संकटों से भी रक्षा करता है। इसमें किया गया हर प्रयास फलदायी होता है।

Explanation in English:
Krishna emphasizes that no effort in practicing yoga is ever wasted, and even a little practice can protect one from great dangers and fears in life.

Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: अध्याय 2 के श्लोक 41-50 को हिंदी में व्याख्य

श्लोक: 41

व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन |
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् || 2.41 ||

अर्थ:
हे कुरुनन्दन (अर्जुन), इस मार्ग में निश्चयात्मक बुद्धि ही एकमात्र लक्ष्य है। किंतु जिनकी बुद्धि अनिश्चित होती है, उनके विचार असंख्य दिशाओं में बिखर जाते हैं।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को यह बताते हैं कि कर्म योग के मार्ग पर एकाग्रता और निश्चय आवश्यक है। जिनका मन अस्थिर और अनिश्चित होता है, वे अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में निश्चयात्मक बुद्धि के महत्व को बताया गया है। श्रीकृष्ण समझाते हैं कि योग के मार्ग पर चलने के लिए एकाग्रता और दृढ़ संकल्प आवश्यक हैं।

Explanation in English:
This verse highlights the importance of focused intellect in the path of yoga. Krishna explains that determination and concentration are essential for success in this journey.

श्लोक: 42

यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः |
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः || 2.42 ||

अर्थ:
जो मूढ़ (अज्ञानी) लोग वेदों की पुष्पित वाणी से मोहग्रस्त हैं, वे यह मानते हैं कि इससे परे कुछ भी नहीं है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यह बताते हैं कि कुछ लोग वेदों के कर्मकांड और आडंबरों में उलझे रहते हैं। वे केवल स्वर्ग और सांसारिक सुखों की ओर ध्यान देते हैं, जिससे उन्हें योग का वास्तविक अर्थ समझ में नहीं आता।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक बताता है कि कर्मकांडों में फँसने वाले लोग सत्य से दूर रहते हैं। वेदों का उद्देश्य आत्मा की उन्नति है, न कि केवल सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति।

Explanation in English:
This verse criticizes those who are overly attached to the flowery words of the Vedas, focusing only on rituals and material gains, missing the deeper spiritual purpose.

श्लोक: 43

कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् |
क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति || 2.43 ||

अर्थ:
ऐसे लोग, जो केवल इच्छाओं और स्वर्ग की कामना में फँसे रहते हैं, वेदों के कर्मकांडों को जीवन का मुख्य लक्ष्य मान लेते हैं।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझा रहे हैं कि वेदों में उल्लिखित कर्मकांड और स्वर्ग की कामना का उद्देश्य आत्मा की उन्नति नहीं है। इसे अपने जीवन का लक्ष्य मानना एक भूल है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक दर्शाता है कि स्वर्ग और इच्छाओं में उलझे लोग आध्यात्मिक उन्नति से दूर रह जाते हैं। कर्मकांड को ही अंतिम सत्य मानने से आत्मा का उद्धार संभव नहीं है।

Explanation in English:
This verse explains that those who are trapped in desires and the pursuit of heaven fail to understand the true purpose of the Vedas, which is spiritual elevation.

श्लोक: 44

भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् |
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते || 2.44 ||

अर्थ:
जो लोग भोग और ऐश्वर्य में आसक्त हैं, उनकी बुद्धि मोहित हो जाती है, और वे समाधि (आत्म-साक्षात्कार) की एकाग्रता को प्राप्त नहीं कर पाते।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यह समझाते हैं कि भौतिक सुख और संपत्ति के प्रति आसक्ति व्यक्ति को आध्यात्मिक पथ से दूर ले जाती है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपने मन और बुद्धि को स्थिर नहीं रख सकता।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक बताता है कि भोग-विलास और ऐश्वर्य के प्रति मोह व्यक्ति को आत्मज्ञान और समाधि की अवस्था से वंचित कर देता है। आध्यात्मिक उन्नति के लिए इनसे मुक्ति आवश्यक है।

Explanation in English:
This verse explains that attachment to material pleasures and wealth distracts individuals, preventing them from achieving spiritual focus and self-realization.

श्लोक: 45

त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् || 2.45 ||

अर्थ:
वेद त्रिगुणों (सत्व, रज, तम) से संबंधित हैं। हे अर्जुन, इन त्रिगुणों से परे जाओ, द्वन्द्व (सुख-दुःख) से मुक्त रहो, सत्व में स्थिर रहो और योगक्षेम (संपत्ति और सुरक्षा) की चिंता छोड़ो।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को यह निर्देश देते हैं कि वे वेदों के कर्मकांड से परे जाकर आत्मा की शुद्धता और स्थिरता को प्राप्त करें। द्वन्द्व और सांसारिक चिंता से परे रहकर व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक दर्शाता है कि आत्मा की सच्ची उन्नति तभी संभव है, जब व्यक्ति त्रिगुणों से परे जाकर शुद्ध आत्मा के साथ जीवन जीता है। सांसारिक मोह-माया से मुक्त होकर ही सत्य की प्राप्ति होती है।

Explanation in English:
This verse advises Arjuna to rise above the three gunas (modes of nature), remain free from dualities, and focus on the stability of the soul, leaving behind material worries.

श्लोक: 46

यावानर्थ उदपाने सर्वतः संप्लुतोदके |
तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः || 2.46 ||

अर्थ:
जैसे एक जलाशय में सब ओर का जल उपलब्ध हो, वैसे ही वेदों का समस्त ज्ञान उस ब्राह्मण के लिए पूर्ण है, जो आत्मा को जान चुका है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार कर लेता है, उसके लिए वेदों का सारा ज्ञान केवल साधन बन जाता है, न कि लक्ष्य। उसे सत्य का सार वेदों के बाहर भी अनुभव होता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक आत्मज्ञान की महिमा को दर्शाता है। आत्मज्ञानी व्यक्ति को वेदों के समस्त ज्ञान की गहराई समझ में आती है, और वह अपनी आत्मा के भीतर सत्य को पहचानता है।

Explanation in English:
This verse glorifies self-realization, emphasizing that for a person who has realized the soul, the knowledge of the Vedas becomes a tool rather than a goal.

श्लोक: 47

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि || 2.47 ||

अर्थ:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल पर नहीं। इसलिए, कर्म के फल की आसक्ति मत रखो और न ही अकर्मण्यता (कर्म न करने) में रुचि लो।

व्याख्या:
यह श्लोक कर्मयोग का सार प्रस्तुत करता है। श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि कर्तव्य का पालन करना ही मुख्य उद्देश्य है, फल की चिंता छोड़कर। कर्म करना धर्म है, और निष्काम भाव से किया गया कर्म व्यक्ति को मुक्त करता है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण का यह उपदेश जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है। हमें अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और उनके परिणामों के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए।

Explanation in English:
Krishna’s teaching emphasizes focusing on one’s duties without being attached to the outcomes. It underscores the essence of selfless action and freedom from the bondage of results.

श्लोक: 48

योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनञ्जय |
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते || 2.48 ||

अर्थ:
हे धनञ्जय (अर्जुन), योग में स्थिर होकर, आसक्ति को त्यागकर कर्म करो। सफलता और असफलता में समान भाव रखो, क्योंकि यही समत्व योग कहलाता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को निष्काम कर्म का महत्व समझाते हैं। वे कहते हैं कि कर्म करते समय अपने मन को संतुलित रखना चाहिए और फल की चिंता से मुक्त रहना चाहिए। समत्व का यह भाव ही सच्चा योग है।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में श्रीकृष्ण यह सिखाते हैं कि सफलता और असफलता के प्रति समान भाव रखना चाहिए। केवल कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करना और आसक्ति से मुक्त रहना ही योग का सार है।

Explanation in English:
Krishna explains that true yoga is maintaining equanimity in success and failure. By performing duties without attachment, one achieves balance and spiritual growth.

श्लोक: 49

दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय |
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः || 2.49 ||

अर्थ:
हे धनञ्जय (अर्जुन), बुद्धियोग से कर्म बहुत नीचे है। अपनी बुद्धि का सहारा लो, क्योंकि फल की कामना करने वाले कृपण (छुद्र) होते हैं।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण समझाते हैं कि बुद्धि से प्रेरित कर्म, जो कि निष्काम भाव से किया जाता है, साधारण कर्म से श्रेष्ठ है। जो व्यक्ति केवल फल की कामना से कर्म करता है, वह अपने जीवन का सच्चा उद्देश्य नहीं समझ पाता।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक बताता है कि बुद्धियोग, यानी विवेकपूर्ण और निष्काम कर्म करना, साधारण कर्म से श्रेष्ठ है। फल की लालसा केवल मानसिक कष्ट का कारण बनती है।

Explanation in English:
This verse highlights that actions driven by intellect and devoid of attachment to results are superior to ordinary actions. Those who act solely for rewards are considered short-sighted.

श्लोक: 50

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते |
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् || 2.50 ||

अर्थ:
बुद्धियोग से युक्त व्यक्ति इस संसार में अच्छे और बुरे कर्मों के फल को त्याग देता है। इसलिए योग में स्थिर हो जाओ, क्योंकि योग ही कर्मों की कुशलता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि योग के अभ्यास से व्यक्ति शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के कर्मों के बंधनों से मुक्त हो जाता है। योग के माध्यम से कर्तव्य में कुशलता और मन की शांति प्राप्त होती है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक सिखाता है कि योग जीवन में संतुलन और कुशलता लाता है। योग का अभ्यास करने से व्यक्ति अपने कर्मों के बंधन से मुक्त हो सकता है।

Explanation in English:
This verse teaches that yoga leads to balance and skill in action. By practicing yoga, one becomes free from the bondage of both good and bad deeds.

Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: अध्याय 2 के श्लोक 51-60 को हिंदी में व्याख्य

श्लोक: 51

कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः |
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् || 2.51 ||

अर्थ:
बुद्धि के साथ कर्म करने वाले ज्ञानी लोग कर्म के फल को त्याग देते हैं और जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर परम आनंद को प्राप्त करते हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक उन ज्ञानी व्यक्तियों के बारे में बताता है जो बुद्धियोग का अनुसरण करते हैं। वे कर्मफल की आसक्ति को त्यागकर जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं और परमात्मा के दिव्य धाम में पहुँचते हैं।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि बुद्धियोग का पालन करने वाले ज्ञानी व्यक्ति आत्मा की शांति और मुक्ति प्राप्त करते हैं। फल की कामना को त्यागने से जीवन का वास्तविक उद्देश्य पूर्ण होता है।

Explanation in English:
Krishna explains that wise individuals who follow the path of buddhi yoga achieve liberation from the cycle of birth and death and attain eternal bliss by renouncing attachment to the fruits of action.

श्लोक: 52

यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति |
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च || 2.52 ||

अर्थ:
जब तुम्हारी बुद्धि अज्ञान (मोह) के दलदल को पार कर जाएगी, तब तुम सुनने योग्य और सुने हुए सभी विषयों के प्रति उदासीन हो जाओगे।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्मज्ञान की अवस्था को दर्शाता है। जब व्यक्ति अज्ञान के भ्रम से बाहर निकलता है, तब उसे सांसारिक ज्ञान और विषयों में रुचि नहीं रहती। वह आत्मा के परम सत्य में स्थिर हो जाता है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण समझाते हैं कि आत्मज्ञान प्राप्त होने पर सांसारिक विषयों के प्रति मोह समाप्त हो जाता है। व्यक्ति केवल आत्मा और परम सत्य में स्थिर हो जाता है।

Explanation in English:
Krishna explains that once one overcomes the delusion of ignorance, they lose interest in worldly knowledge and remain focused on the ultimate truth of the soul.

श्लोक: 53

श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला |
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि || 2.53 ||

अर्थ:
जब तुम्हारी बुद्धि वेदों की विपरीत धारणाओं से विचलित हुए बिना स्थिर और अचल हो जाएगी, तब तुम समाधि की अवस्था प्राप्त करोगे।

व्याख्या:
यह श्लोक दर्शाता है कि व्यक्ति को वेदों के विविध मतों और कर्मकांडों के भ्रम से ऊपर उठकर आत्मा के सत्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जब बुद्धि पूर्णतः स्थिर हो जाती है, तब योग और आत्मज्ञान प्राप्त होता है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि योग और समाधि की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को वेदों की बाहरी व्याख्याओं से ऊपर उठकर आत्मा के गहरे अर्थ को समझना चाहिए। स्थिर बुद्धि ही मुक्ति का मार्ग है।

Explanation in English:
Krishna emphasizes that achieving yoga and self-realization requires rising above the external interpretations of the scriptures and focusing on the essence of the soul. A steady mind leads to liberation.

श्लोक: 54

अर्जुन उवाच |
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव |
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् || 2.54 ||

अर्थ:
अर्जुन ने पूछा: हे केशव, स्थिर बुद्धि वाले और समाधि में स्थित व्यक्ति की क्या पहचान है? वह कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है?

व्याख्या:
इस श्लोक में अर्जुन स्थिर बुद्धि (स्थितप्रज्ञ) और आत्म-साक्षात्कार की अवस्था के लक्षणों को समझने की जिज्ञासा व्यक्त करते हैं। यह प्रश्न योग और आत्मज्ञान की गहराई को समझने की दिशा में अर्जुन का पहला कदम है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन पूछते हैं कि आत्मज्ञानी व्यक्ति के बाहरी और आंतरिक लक्षण क्या होते हैं। उनका यह प्रश्न आत्मज्ञान के व्यवहारिक पक्ष को समझने के लिए है।

Explanation in English:
Arjuna asks about the characteristics of a person with steady wisdom and self-realization, seeking to understand the practical aspects of enlightenment.

श्लोक: 55

श्रीभगवानुवाच |
प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् |
आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते || 2.55 ||

अर्थ:
श्रीभगवान ने कहा: हे पार्थ, जब कोई व्यक्ति मन में उठने वाले सभी इच्छाओं का त्याग कर देता है और आत्मा में आत्मा के द्वारा संतुष्ट रहता है, तब उसे स्थितप्रज्ञ कहा जाता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण समझाते हैं कि स्थितप्रज्ञ व्यक्ति वह है जो सांसारिक इच्छाओं से मुक्त होकर आत्मा में पूर्ण रूप से स्थिर रहता है। ऐसी अवस्था में बाहरी सुख की आवश्यकता समाप्त हो जाती है, और आंतरिक शांति का अनुभव होता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक दर्शाता है कि स्थिर बुद्धि का व्यक्ति अपनी आत्मा में संतुष्ट रहता है और भौतिक इच्छाओं से परे होता है। यह आत्म-साक्षात्कार की अवस्था का प्रतीक है।

Explanation in English:
This verse describes a steady-minded person who is free from material desires and finds complete satisfaction within the self. It represents the state of self-realization.

श्लोक: 56

दुःखेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृहः |
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते || 2.56 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति दुःख में विचलित नहीं होता, सुख में आसक्त नहीं होता, और राग, भय और क्रोध से मुक्त होता है, उसे स्थितधी मुनि कहा जाता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि स्थितप्रज्ञ व्यक्ति का मन स्थिर रहता है। वह न तो सुख की कामना करता है और न ही दुःख से परेशान होता है। वह अपने मन को भय, क्रोध और आसक्ति से मुक्त रखता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक स्थितप्रज्ञ व्यक्ति की मानसिक शांति और स्थिरता को व्यक्त करता है। वह हर परिस्थिति में समान रहता है और आंतरिक शांति को बनाए रखता है।

Explanation in English:
This verse highlights the mental stability of a steady-minded person who remains unaffected by sorrow or happiness and is free from attachment, fear, and anger.

श्लोक: 57

यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् |
नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 2.57 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति हर जगह आसक्ति से रहित है और शुभ-अशुभ प्राप्त होने पर न तो प्रसन्न होता है और न ही द्वेष करता है, उसकी प्रज्ञा स्थिर होती है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण समझाते हैं कि स्थितप्रज्ञ व्यक्ति अपने जीवन में हर घटना को समान रूप से स्वीकार करता है। वह न तो अच्छे परिणाम पर गर्व करता है और न ही बुरे परिणाम से दुःखी होता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक स्थितप्रज्ञ व्यक्ति की मानसिक संतुलन और निष्काम भाव को दर्शाता है। वह जीवन के हर पक्ष को समभाव से देखता है।

Explanation in English:
This verse illustrates the equanimity of a steady-minded person who accepts both favorable and unfavorable outcomes with neutrality.

श्लोक: 58

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः |
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 2.58 ||

अर्थ:
जब कोई व्यक्ति अपने इंद्रियों को इंद्रियों के विषयों से ऐसे हटा लेता है जैसे कछुआ अपने अंगों को अंदर समेट लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर मानी जाती है।

व्याख्या:
यह श्लोक इंद्रिय-नियंत्रण की महत्ता को समझाता है। जो व्यक्ति अपने इंद्रियों को उनके विषयों से दूर रखने में सक्षम होता है, वह अपनी आत्मा में स्थिर हो सकता है। यह योग का एक महत्वपूर्ण पक्ष है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण यह सिखाते हैं कि इंद्रिय-निग्रह आत्म-साक्षात्कार के लिए आवश्यक है। जैसे कछुआ अपनी सुरक्षा के लिए अपने अंगों को समेट लेता है, वैसे ही साधक को इंद्रियों को विषयों से दूर रखना चाहिए।

Explanation in English:
Krishna teaches that self-restraint is essential for self-realization. Just as a turtle withdraws its limbs for protection, a seeker must withdraw their senses from worldly objects to maintain steadiness.

श्लोक: 59

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः |
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते || 2.59 ||

अर्थ:
भौतिक विषय तो इंद्रियों से दूर हो सकते हैं, लेकिन उनका स्वाद (आकर्षण) तब तक बना रहता है जब तक व्यक्ति परब्रह्म का अनुभव नहीं कर लेता।

व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि भौतिक विषयों का त्याग केवल बाहरी रूप से करना पर्याप्त नहीं है। जब तक आत्मा परब्रह्म के आनंद का अनुभव नहीं करती, तब तक आकर्षण बना रहता है। परंतु ब्रह्मज्ञान प्राप्त होने पर यह आकर्षण भी समाप्त हो जाता है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण यह समझाते हैं कि स्थायी वैराग्य केवल ब्रह्मज्ञान के माध्यम से ही संभव है। जब आत्मा उच्चतर सत्य को अनुभव करती है, तब भौतिक सुख का आकर्षण समाप्त हो जाता है।

Explanation in English:
Krishna explains that true detachment is only possible through the realization of the supreme. Once the soul experiences the higher truth, worldly pleasures lose their appeal.

श्लोक: 60

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः |
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः || 2.60 ||

अर्थ:
हे कौन्तेय (अर्जुन), यहाँ तक कि एक बुद्धिमान और प्रयासरत व्यक्ति के मन को भी विचलित करने के लिए इंद्रियां अत्यधिक शक्तिशाली और चंचल होती हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक चेतावनी देता है कि इंद्रियों पर नियंत्रण बनाए रखना कितना कठिन है। इंद्रियां अत्यधिक चंचल होती हैं और मन को आसानी से भटका सकती हैं। इसलिए आत्म-संयम और सतत प्रयास की आवश्यकता है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण समझाते हैं कि इंद्रिय-निग्रह साधना का एक चुनौतीपूर्ण पक्ष है। स्थिरता बनाए रखने के लिए निरंतर अभ्यास और सावधानी आवश्यक है।

Explanation in English:
Krishna warns that controlling the senses is challenging because of their restless nature. Constant effort and vigilance are required to maintain steadiness.

Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: अध्याय 2 के श्लोक 61-72 को हिंदी में व्याख्य

श्लोक: 61

तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः |
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 2.61 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति सभी इंद्रियों को वश में रखकर मुझमें (भगवान में) स्थित होता है, उसकी बुद्धि स्थिर होती है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि इंद्रियों को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा उपाय भगवान में मन लगाना है। जब व्यक्ति अपने चित्त को परमात्मा में स्थिर करता है, तब इंद्रिय-विकार समाप्त हो जाते हैं और बुद्धि स्थिर हो जाती है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक सिखाता है कि ईश्वर के प्रति समर्पण से इंद्रियों का नियंत्रण संभव है। जब मन भगवान में स्थिर होता है, तब आत्मा अपनी सच्ची शांति प्राप्त करती है।

Explanation in English:
This verse teaches that surrendering to God helps control the senses. When the mind is fixed on the Divine, the soul attains true peace and steadiness.

श्लोक: 62

ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते |
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते || 2.62 ||

अर्थ:
विषयों का ध्यान करने से व्यक्ति में उनके प्रति आसक्ति उत्पन्न होती है, आसक्ति से कामना (इच्छा), और कामना पूरी न होने पर क्रोध उत्पन्न होता है।

व्याख्या:
यह श्लोक भोग-वासना की प्रक्रिया को समझाता है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि इंद्रियों के विषयों पर ध्यान देना ही आसक्ति और कामना का कारण बनता है। यह प्रक्रिया अंततः क्रोध और अशांति का जन्म देती है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण यह समझाते हैं कि इंद्रियों के विषयों का ध्यान मनुष्य के पतन का कारण बनता है। भौतिक इच्छाओं से उत्पन्न क्रोध मानसिक संतुलन को नष्ट कर देता है।

Explanation in English:
Krishna explains that dwelling on sensory objects leads to attachment, which gives rise to desire. When desires are unfulfilled, they result in anger, disrupting mental balance.

श्लोक: 63

क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः |
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || 2.63 ||

अर्थ:
क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति का नाश होता है, स्मृति के नष्ट होने से बुद्धि का नाश होता है, और बुद्धि के नाश होने से मनुष्य का विनाश हो जाता है।

व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि कैसे इच्छाओं के पूर्ण न होने पर उत्पन्न क्रोध का परिणाम मानसिक और आध्यात्मिक विनाश होता है। मोह, जो विवेकहीनता का प्रतीक है, स्मृति और बुद्धि को प्रभावित करता है और अंततः जीवन में पतन का कारण बनता है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण समझाते हैं कि क्रोध मनुष्य को भ्रमित करता है और उसकी सोचने-समझने की क्षमता को नष्ट कर देता है। जब बुद्धि नष्ट होती है, तो व्यक्ति अपने धर्म, कर्तव्यों और आत्मा के उद्देश्य से भटक जाता है।

Explanation in English:
Krishna explains that anger clouds judgment and leads to confusion, ultimately destroying wisdom. When wisdom is lost, a person deviates from their duties and spiritual goals, leading to self-destruction.

श्लोक: 64

रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् |
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति || 2.64 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति राग (आसक्ति) और द्वेष (घृणा) से मुक्त होकर इंद्रियों को आत्मा के वश में रखते हुए विषयों में विचरण करता है, वह शांति प्राप्त करता है।

व्याख्या:
यह श्लोक सिखाता है कि आत्मा को इंद्रियों का स्वामी बनाना चाहिए। जब व्यक्ति राग और द्वेष के प्रभाव से मुक्त होकर अपने कर्तव्यों को निष्काम भाव से करता है, तब वह शांति और प्रसन्नता का अनुभव करता है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि आत्म-संयम और समभाव से जीने वाला व्यक्ति ही सच्ची शांति प्राप्त कर सकता है। राग और द्वेष से मुक्त होना जीवन को संतुलित और शांत बनाता है।

Explanation in English:
Krishna explains that a person who controls their senses and is free from attachment and aversion can experience true peace and contentment.

श्लोक: 65

प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते |
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते || 2.65 ||

अर्थ:
शांत चित्त में सभी दुख समाप्त हो जाते हैं, और ऐसा व्यक्ति जल्दी ही स्थिर बुद्धि को प्राप्त करता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि जब मनुष्य का चित्त शांत होता है, तो उसके जीवन से सभी मानसिक और भौतिक कष्ट समाप्त हो जाते हैं। शांति के साथ बुद्धि स्थिर हो जाती है, जो आत्मज्ञान और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।

Explanation in Hindi:
शांत और संतुलित मन वाला व्यक्ति ही जीवन की समस्याओं को दूर कर सकता है। प्रसन्न चित्त से बुद्धि की स्थिरता प्राप्त होती है, जो जीवन को सही दिशा में ले जाती है।

Explanation in English:
A calm and contented mind eliminates all suffering. With serenity, a person attains stable wisdom, paving the way for self-realization and liberation.

श्लोक: 66

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना |
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम् || 2.66 ||

अर्थ:
असंयमी व्यक्ति के पास न तो बुद्धि होती है, न ही ध्यान। बिना ध्यान के शांति नहीं हो सकती, और बिना शांति के सुख संभव नहीं है।

व्याख्या:
यह श्लोक संयम और ध्यान के महत्व को स्पष्ट करता है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि इंद्रियों पर नियंत्रण और ध्यान के बिना मनुष्य न तो शांति प्राप्त कर सकता है और न ही सच्चा सुख। शांति और सुख आत्मा के विकास के लिए आवश्यक हैं।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण समझाते हैं कि असंयमित और ध्यानहीन व्यक्ति मानसिक शांति और सुख प्राप्त नहीं कर सकता। संयम और ध्यान आत्मा की स्थिरता और प्रसन्नता के लिए आवश्यक हैं।

Explanation in English:
Krishna explains that an undisciplined and inattentive person cannot achieve peace or happiness. Self-control and meditation are essential for the stability and joy of the soul.

श्लोक: 67

इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते |
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि || 2.67 ||

अर्थ:
जिन इंद्रियों का मन अनुसरण करता है, वे व्यक्ति की बुद्धि को ऐसे नष्ट कर देती हैं जैसे पानी में नाव को बहा देने वाली हवा।

व्याख्या:
यह श्लोक चेतावनी देता है कि अनियंत्रित इंद्रियां व्यक्ति के मन और बुद्धि को भ्रमित कर सकती हैं। बिना आत्म-नियंत्रण के, मनुष्य का जीवन दिशाहीन हो जाता है, जैसे बेमंजिल की नाव।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि इंद्रियों का अनुशासन आवश्यक है। यदि मन इंद्रियों के पीछे भागे, तो बुद्धि और विवेक नष्ट हो जाते हैं, जिससे जीवन में अराजकता आ जाती है।

Explanation in English:
Krishna warns that uncontrolled senses can mislead the mind and destroy wisdom, leaving life aimless, like a rudderless boat in turbulent waters.

श्लोक: 68

तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः |
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 2.68 ||

अर्थ:
हे महाबाहु (अर्जुन), जिस व्यक्ति ने अपनी इंद्रियों को सभी इंद्रिय-विषयों से पूरी तरह से नियंत्रित कर लिया है, उसकी बुद्धि स्थिर रहती है।

व्याख्या:
यह श्लोक इंद्रिय-नियंत्रण के महत्व पर जोर देता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्म-संयम और इंद्रियों पर नियंत्रण से व्यक्ति स्थिर बुद्धि और आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है। इंद्रियों पर नियंत्रण ही सच्ची स्थिरता का मार्ग है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण समझाते हैं कि जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों को विषयों से दूर रखता है और उन्हें नियंत्रित करता है, उसकी बुद्धि स्थिर होती है। यह स्थिरता उसे जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति में मदद करती है।

Explanation in English:
Krishna emphasizes that a person who controls their senses and keeps them away from distractions achieves stable wisdom. This stability guides them toward life’s true purpose.

श्लोक: 69

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी |
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः || 2.69 ||

अर्थ:
जो रात सभी प्राणियों के लिए होती है, उसमें संयमी व्यक्ति जागता है; और जिसमें सब प्राणी जागते हैं, वह मुनि के लिए रात होती है।

व्याख्या:
यह श्लोक एक गहरी आध्यात्मिक दृष्टि प्रस्तुत करता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो सांसारिक भोगों में लिप्त लोग समझ नहीं पाते, वह आत्म-ज्ञान में स्थिर मुनि के लिए जागृति का कारण बनता है। मुनि के लिए सांसारिक विषय असार हैं।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण यह समझाते हैं कि सांसारिक लोग जो भौतिक सुखों में मग्न रहते हैं, वही ज्ञानवान व्यक्ति के लिए व्यर्थ है। आत्म-साक्षात्कार का पथ संसार से परे है।

Explanation in English:
Krishna explains that what ordinary people consider important, a sage perceives as insignificant. The path of self-realization transcends worldly concerns.

श्लोक: 70

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् |
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी || 2.70 ||

अर्थ:
जिस प्रकार नदियाँ भर जाने पर भी समुद्र को विचलित नहीं कर सकतीं, उसी प्रकार जो व्यक्ति कामनाओं के प्रवाह में स्थिर रहता है, वही शांति प्राप्त करता है; कामनाओं के पीछे भागने वाला नहीं।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्म-संयम की महत्ता को बताता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करता है और उनकी पूर्ति की लालसा नहीं करता, वह सच्ची शांति प्राप्त करता है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण समझाते हैं कि इच्छाओं को पूरा करने की होड़ शांति को भंग करती है। इच्छाओं से मुक्त और आत्मनियंत्रित व्यक्ति ही सच्ची शांति का अनुभव करता है।

Explanation in English:
Krishna explains that the pursuit of desires disrupts peace. Only a self-controlled person, free from cravings, can experience true tranquility.

श्लोक: 71

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः |
निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति || 2.71 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति सभी इच्छाओं को त्यागकर, आसक्ति और अहंकार से रहित होकर जीवन व्यतीत करता है, वही शांति प्राप्त करता है।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्मा की स्वतंत्रता और शांति के लिए इच्छाओं और अहंकार का त्याग करने की आवश्यकता पर बल देता है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि इच्छाओं और आसक्ति का परित्याग ही आत्म-साक्षात्कार का मार्ग है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण समझाते हैं कि जो व्यक्ति इच्छाओं और स्वामित्व की भावना से मुक्त होता है, वह ही सच्ची शांति का अनुभव करता है। यह आंतरिक स्वतंत्रता आत्मज्ञान का आधार है।

Explanation in English:
Krishna explains that a person who renounces desires and the sense of ownership achieves true peace. This inner freedom is the foundation of self-realization.

श्लोक: 72

एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति |
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति || 2.72 ||

अर्थ:
हे पार्थ, यह ब्रह्म की स्थिति है। इसे प्राप्त करने वाला व्यक्ति कभी भ्रमित नहीं होता और अंत समय में ब्रह्म-निर्वाण को प्राप्त करता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण इस श्लोक में ब्रह्म की स्थिति का वर्णन करते हैं, जो स्थिर बुद्धि और आत्म-ज्ञान की चरम अवस्था है। इस स्थिति को प्राप्त करने वाला व्यक्ति मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक ब्रह्म की स्थिति की व्याख्या करता है, जिसमें व्यक्ति भ्रम और मोह से मुक्त हो जाता है। यह स्थिति मृत्यु के समय मोक्ष की ओर ले जाती है।

Explanation in English:
This verse describes the state of Brahman, where a person is free from delusion and ignorance. Attaining this state leads to liberation at the time of death.

Conclusion

अध्याय 2, जिसे “सांख्य योग” भी कहा जाता है, में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन के गहरे आध्यात्मिक सिद्धांतों को समझाया। इस अध्याय में कृष्ण ने अर्जुन को कर्म, योग, और आत्म-ज्ञान के महत्व को बताया। अर्जुन के मानसिक भ्रम और कर्तव्य के प्रति संकोच को दूर करते हुए, श्री कृष्ण ने उसे न केवल युद्ध की आवश्यकता और महत्व को समझाया, बल्कि आत्मा की अमरता और सच्चे कर्म का पालन करने का मार्ग भी बताया।

श्री कृष्ण ने अर्जुन को सिखाया कि बिना किसी व्यक्तिगत इच्छाओं के, सिर्फ धर्म का पालन करते हुए कार्य करना ही जीवन का सच्चा उद्देश्य है। इस अध्याय के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि मानसिक संतुलन, आत्म-ज्ञान, और कर्मयोग ही व्यक्ति को शांति और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।

अध्याय 2 के लिए 5 सामान्य प्रश्न (FAQs):

1.श्री कृष्ण ने अर्जुन को किस सिद्धांत को समझाया?

श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग, आत्मा की अमरता, और योग के सिद्धांत को समझाया। उन्होंने अर्जुन से यह भी कहा कि मनुष्य को केवल अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, बिना किसी फल की चिंता किए।

2. “सांख्य योग” का क्या अर्थ है?

“सांख्य योग” का अर्थ है ज्ञान और योग का संयोग। इस अध्याय में श्री कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान (सांख्य) और कर्म (योग) के माध्यम से जीवन के उद्देश्य को समझाया।

3. श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्म के बारे में क्या सिखाया?

श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह सिखाया कि उसे अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, लेकिन बिना किसी फल की आस लगाए। कर्म करना ही मुख्य उद्देश्य है, न कि परिणामों के प्रति आसक्ति।

4. श्री कृष्ण के अनुसार आत्मा क्यों अमर है?

श्री कृष्ण के अनुसार आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है। यह निरंतर रहती है और शरीर बदलने के बाद भी अमर रहती है। आत्मा का कोई नाश नहीं होता, क्योंकि वह परेस्थ है और नश्वर शरीर से अलग है।

5. भगवान श्री कृष्ण के अनुसार शांति प्राप्त करने का क्या तरीका है?

शांति प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अपने इंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए, किसी भी कार्य को बिना किसी व्यक्तिगत लाभ की चाह के निष्काम भाव से करना चाहिए, और अपनी आत्मा को पहचानने के लिए ध्यान और साधना करनी चाहिए।

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