Bhagwat Geeta Chapter 6: ध्यान योग Explain in HIndi And English |

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Bhagwat Geeta

नमस्ते, प्रिय पाठकों!

आपका स्वागत है भगवद गीता के छठे अध्याय में, जिसे “ध्यान योग” के नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्म-संयम, ध्यान और मन की स्थिरता का महत्व समझाते हैं।

श्रीकृष्ण बताते हैं कि ध्यानयोग का अभ्यास करने वाला व्यक्ति सच्चे संन्यासी और कर्मयोगी होता है। वे समझाते हैं कि मनुष्य को अपनी इंद्रियों और मन पर नियंत्रण रखना चाहिए और आत्मा के ज्ञान के माध्यम से आत्मिक शांति प्राप्त करनी चाहिए। ध्यान की विधि और इसके माध्यम से ईश्वर से जुड़ने का मार्ग भी इस अध्याय में स्पष्ट किया गया है।

यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि कैसे मन की शांति और आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है, और क्यों ध्यान योग आत्मा की उन्नति के लिए एक प्रभावी साधन है।

आइए, इस अध्याय के माध्यम से हम ध्यान योग के महत्व को समझें और इसे अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करें।

धन्यवाद!

इसे भी पढ़े :- Bhagwat Geeta Chapter 5

Bhagwat Geeta Chapter 6: ध्यान योग | श्लोक 1 – 10

Bhagwat Geeta

श्लोक 1

अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः |
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः || 6.1 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति कर्म के फल का आश्रय न लेते हुए अपने कर्तव्य का पालन करता है, वही सच्चा संन्यासी और योगी है, न कि जो बिना अग्नि के है (यज्ञ न करता) या क्रिया-शून्य है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यहाँ स्पष्ट करते हैं कि सच्चा योगी वह है जो बिना किसी फल की अपेक्षा के अपने कर्तव्य का पालन करता है। केवल क्रियाहीन रहना या बाह्य साधन का त्याग करना योग का सही मार्ग नहीं है।

Explanation in Hindi:
सच्चा योगी वह है जो अपने कर्मों को निष्ठा से करता है, लेकिन उनसे किसी भी प्रकार का फल प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखता।

Explanation in English:
A true yogi is one who performs duties without attachment to the fruits of actions. Simply renouncing external activities or rituals does not make one a yogi.

श्लोक 2

यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव |
न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन || 6.2 ||

अर्थ:
हे पाण्डव! जिसे संन्यास कहा जाता है, उसे योग ही जानो, क्योंकि संकल्प का त्याग किए बिना कोई योगी नहीं हो सकता।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यहाँ योग और संन्यास की समानता को स्पष्ट करते हैं। सच्चा योगी वही होता है जो अपने सभी संकल्पों और इच्छाओं का त्याग करता है।

Explanation in Hindi:
योग और संन्यास एक-दूसरे के पूरक हैं। संकल्पों का त्याग ही योग की सच्ची परिभाषा है।

Explanation in English:
Renunciation and yoga are interconnected. One cannot become a yogi without giving up personal desires and resolutions. Bhagwat Geeta

श्लोक 3

आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते |
योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते || 6.3 ||

अर्थ:
योग में आरंभ करने वाले मुनि के लिए कर्म (कर्तव्य) साधन है, और जो योग में स्थित हो चुका है, उसके लिए शांति साधन है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि योग साधना के आरंभ में कर्म आवश्यक है, लेकिन योग की ऊँचाई प्राप्त करने पर मन की शांति और ध्यान आवश्यक हो जाता है।

Explanation in Hindi:
योग की शुरुआत कर्म से होती है, लेकिन जब व्यक्ति योग में स्थिर हो जाता है, तब शांति और ध्यान ही उसका मुख्य उद्देश्य बन जाता है।

Explanation in English:
For one who is beginning yoga, action is the means, but for one who is advanced in yoga, serenity becomes the means.

श्लोक 4

यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते |
सर्वसङ्कल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते || 6.4 ||

अर्थ:
जब व्यक्ति इंद्रियों के विषयों और कर्मों में आसक्ति नहीं रखता और सभी संकल्पों का त्याग कर देता है, तब उसे योगारूढ़ कहा जाता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण योग की परिपक्व अवस्था का वर्णन करते हैं। जब मनुष्य बाहरी विषयों और संकल्पों से मुक्त हो जाता है, तब वह योग के उच्चतम स्तर पर पहुँचता है।

Explanation in Hindi:
योग की सर्वोच्च अवस्था तब प्राप्त होती है जब व्यक्ति कर्मों और इंद्रियों के विषयों से मुक्त होकर सभी इच्छाओं का त्याग कर देता है।

Explanation in English:
The highest stage of yoga is reached when a person is free from attachment to sense objects and actions and has renounced all desires.

श्लोक 5

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् |
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः || 6.5 ||

अर्थ:
व्यक्ति को स्वयं अपने द्वारा ऊपर उठाना चाहिए और स्वयं को नीचे गिरने नहीं देना चाहिए, क्योंकि आत्मा ही उसका मित्र है और आत्मा ही उसका शत्रु हो सकती है।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्मनिर्भरता और आत्मसंयम का महत्व बताता है। व्यक्ति का सबसे बड़ा मित्र या शत्रु स्वयं उसका मन और आत्मा होती है।

Explanation in Hindi:
मनुष्य को अपने प्रयासों से स्वयं को ऊँचाई पर ले जाना चाहिए। आत्म-संयम के अभाव में आत्मा स्वयं के लिए शत्रु बन जाती है।

Explanation in English:
A person must elevate themselves through their own efforts and not degrade themselves. The mind can be one’s best friend or worst enemy depending on one’s control over it. Bhagwat Geeta

श्लोक 6

बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः |
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत् || 6.6 ||

अर्थ:
जिस व्यक्ति ने अपने मन और आत्मा को वश में कर लिया है, उसके लिए आत्मा उसका मित्र है। लेकिन जिसने ऐसा नहीं किया, उसके लिए आत्मा शत्रु के समान है।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्मसंयम और आत्मज्ञान का महत्व बताता है। यदि व्यक्ति अपने मन को काबू में नहीं रखता, तो वही मन उसके लिए बाधा बन जाता है।

Explanation in Hindi:
अपने मन और आत्मा को नियंत्रण में रखना आत्मविकास के लिए आवश्यक है। जो ऐसा करने में असफल होता है, वह स्वयं के ही कारण कष्ट में रहता है।

Explanation in English:
Controlling one’s mind and self is essential for spiritual growth. Failure to do so makes the mind a hindrance and an enemy.

श्लोक 7

जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः |
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः || 6.7 ||

अर्थ:
जिसने अपने मन को जीत लिया है और शांति प्राप्त कर ली है, वह परमात्मा को प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति शीत-उष्ण, सुख-दुःख, मान-अपमान में समभाव रखता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मसंयम और शांति प्राप्त करने वाला व्यक्ति परिस्थितियों से अप्रभावित रहता है और परमात्मा के साथ एकत्व अनुभव करता है।

Explanation in Hindi:
जो व्यक्ति अपने मन को वश में करता है और शांति में रहता है, वह हर परिस्थिति में समभाव रखता है। यही उसे परमात्मा के निकट लाता है।

Explanation in English:
A person who has mastered their mind and remains calm is unaffected by external conditions and attains unity with the Supreme Soul.

श्लोक 8

ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः |
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चनः || 6.8 ||

अर्थ:
जिसका आत्मा ज्ञान और विज्ञान से तृप्त है, जो स्थिर और इंद्रियों को जीत चुका है, वह योगी है। ऐसा व्यक्ति मिट्टी, पत्थर और सोने को समान मानता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यहाँ कहते हैं कि सच्चा योगी वह है जो बाहरी भौतिक वस्तुओं में भेद नहीं करता और अपने ज्ञान और आत्मा में संतुष्ट रहता है।

Explanation in Hindi:
योगी बाहरी वस्तुओं से अप्रभावित रहता है और ज्ञान के आधार पर समभाव रखता है। यही उसे आत्म-साक्षात्कार तक ले जाता है।

Explanation in English:
A true yogi is unaffected by material possessions and maintains equanimity due to their deep knowledge and self-realization. Bhagwat Geeta

श्लोक 9

सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु |
साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते || 6.9 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति मित्र, शत्रु, तटस्थ, मध्यस्थ, द्वेषपूर्ण, बंधु, सज्जन और पापी सभी के प्रति समान दृष्टि रखता है, वह श्रेष्ठ है।

व्याख्या:
यह श्लोक सिखाता है कि योगी सभी प्राणियों के प्रति समभाव रखता है। वह दूसरों की प्रवृत्तियों से प्रभावित नहीं होता और अपने मन की शांति बनाए रखता है।

Explanation in Hindi:
योगी की बुद्धि समान होती है। वह मित्र या शत्रु, अच्छे या बुरे सभी के प्रति एक जैसा व्यवहार करता है।

Explanation in English:
A yogi treats everyone equally, whether they are friends, enemies, or strangers, and remains unaffected by their actions.

श्लोक 10

योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः |
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः || 6.10 ||

अर्थ:
योगी को एकांत में स्थिर होकर, आत्मा को निरंतर साधना में लगाना चाहिए। उसे अकेला, संयमी, निराशा और परिग्रह (संपत्ति की लालसा) से मुक्त होना चाहिए।

व्याख्या:
यह श्लोक ध्यान योग की प्रक्रिया का वर्णन करता है। योगी को एकांत में रहकर ध्यान लगाना चाहिए और बाहरी वस्तुओं से अपनी आसक्ति को खत्म करना चाहिए।

Explanation in Hindi:
ध्यान की साधना के लिए एकांत आवश्यक है। योगी को अपनी इच्छाओं और आसक्तियों को छोड़कर आत्मा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

Explanation in English:
Meditation requires solitude. A yogi should detach from worldly possessions and desires and focus entirely on the self. Bhagwat Geeta

Bhagwat Geeta Chapter 6: ध्यान योग | श्लोक 11 – 20

श्लोक 11

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः |
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् || 6.11 ||

अर्थ:
शुद्ध स्थान में, जो न बहुत ऊँचा हो और न बहुत नीचा, कुशा, मृगचर्म और वस्त्र से युक्त आसन पर स्थिर होकर बैठना चाहिए।

व्याख्या:
ध्यान योग के लिए स्थान और आसन का महत्व है। श्रीकृष्ण ध्यान साधना के लिए शुद्ध और शांतिपूर्ण स्थान चुनने और उचित आसन पर बैठने का निर्देश देते हैं।

Explanation in Hindi:
ध्यान के लिए शुद्ध वातावरण और संतुलित आसन आवश्यक है। यह ध्यान में स्थिरता लाने में मदद करता है।

Explanation in English:
A pure and peaceful environment and a balanced seat are essential for meditation to ensure stability and focus.

श्लोक 12

तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः |
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये || 6.12 ||

अर्थ:
उस आसन पर बैठकर मन को एकाग्र करके, चित्त और इंद्रियों को वश में रखकर योग का अभ्यास करना चाहिए, जिससे आत्मा की शुद्धि हो।

व्याख्या:
यह श्लोक ध्यान साधना के मुख्य उद्देश्यों में से एक, आत्मा की शुद्धि, को बताता है। मन और इंद्रियों पर नियंत्रण योग का मुख्य साधन है।

Explanation in Hindi:
योग का अभ्यास मन की एकाग्रता और आत्मा की शुद्धि के लिए किया जाता है। यह व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है।

Explanation in English:
The practice of yoga is aimed at purifying the soul through concentration of the mind and control over the senses.

श्लोक 13

समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः |
सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् || 6.13 ||

अर्थ:
शरीर, सिर और गर्दन को सीधा और स्थिर रखते हुए, अपनी दृष्टि को नासिका के अग्रभाग पर केंद्रित करें और चारों दिशाओं को न देखें।

व्याख्या:
ध्यान के दौरान उचित मुद्रा और एकाग्रता आवश्यक है। यह श्लोक साधक को शरीर की स्थिरता और दृष्टि की एकाग्रता पर ध्यान देने का निर्देश देता है।

Explanation in Hindi:
ध्यान में शारीरिक स्थिरता और दृष्टि का नियंत्रण महत्वपूर्ण है। इससे मन का भटकाव कम होता है।

Explanation in English:
Physical stability and focus of vision are crucial in meditation. They help reduce distractions of the mind. Bhagwat Geeta

श्लोक 14

प्रशान्तात्मा विगतभीः ब्रह्मचारिव्रते स्थितः |
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः || 6.14 ||

अर्थ:
शांत मन और भय से मुक्त होकर, ब्रह्मचर्य व्रत में स्थित होकर, मन को नियंत्रित करते हुए, मेरा ध्यान करते हुए साधक योग में स्थिर हो।

व्याख्या:
यह श्लोक ध्यान योग के लिए मानसिक और शारीरिक शुद्धता पर जोर देता है। साधक को भय और भटकाव से मुक्त होकर भगवान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

Explanation in Hindi:
ध्यान योग के लिए मन की शांति, भय का त्याग और भगवान पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।

Explanation in English:
For meditation, one must have a calm mind, be free from fear, and focus entirely on the Supreme Lord. Bhagwat Geeta

श्लोक 15

युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः |
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति || 6.15 ||

अर्थ:
इस प्रकार साधना करते हुए, संयमित मन वाला योगी मेरी शरण में स्थित होकर परम शांति और निर्वाण प्राप्त करता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण कहते हैं कि योगी को नियमित ध्यान और मन को नियंत्रित करते हुए मोक्ष की ओर बढ़ना चाहिए। भगवान की शरण में स्थित होकर शाश्वत शांति संभव है।

Explanation in Hindi:
योग साधना से साधक परम शांति और भगवान के साथ एकत्व को प्राप्त करता है। यह मोक्ष का मार्ग है।

Explanation in English:
Through yoga practice, the aspirant attains supreme peace and unity with the Supreme Lord, leading to liberation.

श्लोक 16

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः |
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन || 6.16 ||

अर्थ:
हे अर्जुन! योग न तो अधिक खाने वाले, न ही बिल्कुल न खाने वाले, न ही अधिक सोने वाले और न ही बहुत जागने वाले व्यक्ति के लिए संभव है।

व्याख्या:
योग का अभ्यास संतुलित जीवनशैली पर निर्भर करता है। श्रीकृष्ण यहाँ बताते हैं कि अति या न्यूनता से योग में बाधा आती है।

Explanation in Hindi:
संतुलित आहार, नींद और दिनचर्या योग की सफलता के लिए आवश्यक है।

Explanation in English:
A balanced diet, sleep, and routine are essential for the successful practice of yoga.

श्लोक 17

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु |
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा || 6.17 ||

अर्थ:
जिसका आहार-विहार, कर्मों में चेष्टा, और सोने-जागने का क्रम संतुलित है, उसका योग सभी दुःखों का नाश करता है।

व्याख्या:
योग साधना में संतुलन का महत्व अत्यधिक है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि शरीर और मन के संतुलन से ही साधक अपने जीवन के कष्टों को समाप्त कर सकता है।

Explanation in Hindi:
संतुलित जीवनशैली अपनाने से साधक योग के माध्यम से अपने दुःखों को दूर कर सकता है।

Explanation in English:
By maintaining a balanced lifestyle, the practitioner can overcome sorrows through the practice of yoga.

श्लोक 18

यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते |
निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा || 6.18 ||

अर्थ:
जब मन पूरी तरह से नियंत्रण में होकर आत्मा में स्थित हो जाता है और सभी कामनाओं से मुक्त हो जाता है, तभी उसे योगी कहा जाता है।

व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि योगी वह है, जो अपने चित्त को नियंत्रित कर अपनी आत्मा में स्थिर करता है और सांसारिक इच्छाओं से परे होता है।

Explanation in Hindi:
योगी का लक्ष्य मन को नियंत्रित करना और आत्मा के साथ एकत्व स्थापित करना है। सांसारिक इच्छाओं से विरक्त रहना योग का प्रमुख उद्देश्य है।

Explanation in English:
The aim of a yogi is to control the mind and establish unity with the soul, remaining detached from worldly desires.

श्लोक 19

यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता |
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः || 6.19 ||

अर्थ:
जैसे हवा रहित स्थान में दीपक की लौ नहीं डगमगाती, वैसे ही योग में स्थित और मन को नियंत्रित करने वाले योगी की अवस्था होती है।

व्याख्या:
यह श्लोक ध्यान योगी के मन की स्थिरता का वर्णन करता है। स्थिर मन का योगी शांत और अविचल रहता है, जैसे हवा से अछूता दीपक।

Explanation in Hindi:
ध्यान योगी का मन एक दीपक की तरह स्थिर होता है, जो किसी भी बाहरी बाधा से प्रभावित नहीं होता।

Explanation in English:
A meditative yogi’s mind remains stable like a lamp in a windless place, unaffected by external disturbances.

श्लोक 20

यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया |
यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति || 6.20 ||

अर्थ:
जहाँ योग अभ्यास से नियंत्रित चित्त शांत हो जाता है और आत्मा में आत्मा को देखकर आनंदित होता है, वही योग है।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्म-साक्षात्कार के आनंद का वर्णन करता है। योग साधना से मन शांत होता है, और साधक आत्मा में अपनी पूर्णता को अनुभव करता है।

Explanation in Hindi:
योग साधना का चरम लक्ष्य आत्मा की अनुभूति और उसमे आनंद प्राप्त करना है।

Explanation in English:
The ultimate goal of yoga practice is self-realization and finding bliss in the soul.

Bhagwat Geeta Chapter 6: ध्यान योग | श्लोक 21 – 30

श्लोक 21

सुखमात्यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम् |
वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वतः || 6.21 ||

अर्थ:
जो सुख अत्यंत है, जिसे बुद्धि द्वारा अनुभव किया जा सकता है लेकिन इंद्रियों से नहीं, जहाँ स्थित साधक कभी विचलित नहीं होता, वही योग का सुख है।

व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि आत्मा का सुख इंद्रियों से परे है। यह दिव्य सुख योग साधक को पूर्णता का अनुभव कराता है।

Explanation in Hindi:
योग साधक आत्मा के सुख को प्राप्त करता है, जो इंद्रियों की सीमा से परे है और स्थायी है।

Explanation in English:
A yogi attains the bliss of the soul, which transcends sensory experience and is eternal.

श्लोक 22

यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः |
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते || 6.22 ||

अर्थ:
जिस लाभ को प्राप्त करके साधक यह मानता है कि इससे बड़ा कोई अन्य लाभ नहीं है, और जिसमें स्थित होकर वह बड़े से बड़े दुःख से भी विचलित नहीं होता, वही परम लाभ है।

व्याख्या:
यह श्लोक परम आत्मज्ञान की स्थिति का वर्णन करता है। जब साधक आत्मा में स्थित हो जाता है, तो वह सांसारिक कष्टों से मुक्त हो जाता है और उसे पूर्णता का अनुभव होता है।

Explanation in Hindi:
परम आत्मज्ञान से प्राप्त सुख ऐसा है कि साधक को उससे बड़ा कोई अन्य लाभ नहीं दिखता और वह हर प्रकार के कष्ट से मुक्त हो जाता है।

Explanation in English:
The bliss of ultimate self-realization is so profound that the seeker perceives no greater gain, and it frees them from all sorrows.

श्लोक 23

तं विद्याद्दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम् |
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा || 6.23 ||

अर्थ:
यह समझो कि दुःखों से संयोग का वियोग ही योग है। इसे दृढ़ संकल्प और निराशा रहित मन से साधना चाहिए।

व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि योग का उद्देश्य सांसारिक दुःखों से मुक्ति है। साधक को दृढ़ता और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ योग का अभ्यास करना चाहिए।

Explanation in Hindi:
योग साधना से साधक अपने मन को स्थिर करता है और दुःखों से परे जाकर आत्मिक शांति प्राप्त करता है।

Explanation in English:
Through yoga, the practitioner stabilizes the mind and transcends worldly sorrows to attain inner peace.

श्लोक 24

सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः |
मनसैविन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः || 6.24 ||

अर्थ:
सभी इच्छाओं को, जो संकल्प से उत्पन्न होती हैं, पूरी तरह से त्याग कर और मन द्वारा इंद्रियों को सभी दिशाओं से नियंत्रित कर योग का अभ्यास करना चाहिए।

व्याख्या:
यह श्लोक साधक को अपने मन और इंद्रियों पर नियंत्रण स्थापित करने और सांसारिक इच्छाओं का त्याग करने का निर्देश देता है।

Explanation in Hindi:
योग के लिए इच्छाओं का त्याग और मन व इंद्रियों का संयम अत्यंत आवश्यक है।

Explanation in English:
Renouncing desires and controlling the mind and senses are crucial for practicing yoga effectively.

श्लोक 25

शनैः शनैरुपरमेद्बुद्ध्या धृतिगृहीतया |
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत् || 6.25 ||

अर्थ:
धीरे-धीरे धैर्य और बुद्धि के सहारे चित्त को आत्मा में स्थिर करते हुए अन्य किसी भी विषय में विचार नहीं करना चाहिए।

व्याख्या:
यह श्लोक ध्यान योग की प्रक्रिया को समझाता है। साधक को धीरे-धीरे अपने मन को आत्मा में स्थिर करने का अभ्यास करना चाहिए।

Explanation in Hindi:
ध्यान योग में मन को आत्मा में स्थिर करना और बाहरी विषयों से विचलित न होना आवश्यक है।

Explanation in English:
In meditation, it is essential to stabilize the mind in the soul and avoid distractions from external matters.

श्लोक 26

यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम् |
ततः ततोनियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् || 6.26 ||

अर्थ:
जहाँ-जहाँ यह चंचल और अस्थिर मन भटकता है, वहाँ-वहाँ से इसे नियंत्रित कर आत्मा के अधीन करना चाहिए।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यहाँ मन को नियंत्रित करने के महत्व को बताते हैं। ध्यान योग में मन को आत्मा में बार-बार वापस लाना साधना का हिस्सा है।

Explanation in Hindi:
ध्यान योग में मन को बार-बार आत्मा में स्थिर करना साधक के लिए आवश्यक है। यह अभ्यास सफलता की कुंजी है।

Explanation in English:
In meditation, repeatedly bringing the mind back to the soul is essential for success. This practice leads to mastery over the mind.

श्लोक 27

प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम् |
उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् || 6.27 ||

अर्थ:
शांत और नियंत्रित मन वाला योगी, जिसकी रजोगुण से शुद्धि हो चुकी है, ब्रह्म-स्थिति में स्थित होकर परम सुख को प्राप्त करता है।

व्याख्या:
यह श्लोक योग साधना के परिणामस्वरूप मिलने वाली आत्मिक शांति और परम सुख की स्थिति को वर्णित करता है। जब योगी अपने मन को शांत और पवित्र कर लेता है, तो वह ब्रह्म से एकाकार होकर दिव्य आनंद प्राप्त करता है।

Explanation in Hindi:
योग साधक को शांत मन और शुद्ध अंतःकरण के माध्यम से ब्रह्म-स्थिति का अनुभव होता है, जहाँ उसे परम आनंद की प्राप्ति होती है।

Explanation in English:
Through a calm mind and purified consciousness, the yogi attains the state of Brahman and experiences supreme bliss.

श्लोक 28

युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः |
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते || 6.28 ||

अर्थ:
इस प्रकार आत्मा को योग में लगाकर, पापों से मुक्त योगी ब्रह्म से संपर्क करके परमानंद को प्राप्त करता है।

व्याख्या:
यह श्लोक ब्रह्मानुभूति की आनंदमयी स्थिति को दर्शाता है। योग साधना द्वारा पवित्र हृदय और एकाग्र चित्त से योगी ब्रह्म से साक्षात्कार करता है और पूर्ण सुख का अनुभव करता है।

Explanation in Hindi:
योगी ब्रह्म से संपर्क स्थापित कर परमानंद की अवस्था को सहजता से प्राप्त करता है। यह स्थिति योग साधना का चरम लक्ष्य है।

Explanation in English:
The yogi, by connecting with Brahman through disciplined practice, attains the ultimate state of bliss, which is the highest goal of yoga.

श्लोक 29

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि |
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः || 6.29 ||

अर्थ:
योग के द्वारा एकत्व की भावना विकसित कर, योगी सभी जीवों में अपनी आत्मा और अपनी आत्मा में सभी जीवों को देखता है।

व्याख्या:
यह श्लोक समदृष्टि और अद्वैत भाव को प्रकट करता है। जब योगी ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर लेता है, तो वह सभी जीवों को समान दृष्टि से देखने लगता है और उनमें ईश्वर की उपस्थिति को अनुभव करता है।

Explanation in Hindi:
योग साधना से प्राप्त ज्ञान के कारण, साधक सभी प्राणियों में समानता और ईश्वर की अनुभूति करता है।

Explanation in English:
Through yoga, the practitioner perceives equality among all beings and experiences the presence of the divine within them.

श्लोक 30

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति |
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति || 6.30 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति हर जगह मुझे देखता है और सभी चीजों को मुझमें देखता है, मैं उससे कभी अलग नहीं होता, और वह मुझसे कभी दूर नहीं होता।

व्याख्या:
यह श्लोक अद्वैत सिद्धांत की पुष्टि करता है। जब साधक हर जगह भगवान की उपस्थिति को अनुभव करता है, तो वह भगवान से जुड़ा रहता है और भगवान उससे।

Explanation in Hindi:
भगवान हर जगह हैं, और जब साधक यह समझ लेता है, तो वह ईश्वर से कभी अलग नहीं होता।

Explanation in English:
The Lord is omnipresent, and when the seeker realizes this, they remain eternally connected to the divine.

Bhagwat Geeta Chapter 6: ध्यान योग | श्लोक 31 – 40

श्लोक 31

सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः |
सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते || 6.31 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति सभी प्राणियों में स्थित मुझको भजता है, वह एकत्व को प्राप्त कर, चाहे जैसा भी जीवन जीता हो, मुझमें स्थित रहता है।

व्याख्या:
यह श्लोक भक्ति के महत्व और योगी के एकत्व के भाव को दर्शाता है। जब योगी भगवान की उपस्थिति को सभी में अनुभव करता है और उनकी आराधना करता है, तो वह भगवान के समीप रहता है।

Explanation in Hindi:
सभी प्राणियों में भगवान को देखने वाला साधक भगवान के समीप रहता है और सच्चा योगी कहलाता है।

Explanation in English:
The seeker who sees the divine in all beings remains close to the Lord and is considered a true yogi.

श्लोक 32

आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन |
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः || 6.32 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति आत्मा के समान दृष्टि से हर जगह सभी को देखता है, चाहे वह सुख हो या दुःख, वह उत्तम योगी माना जाता है।

व्याख्या:
यह श्लोक सच्चे योगी की पहचान कराता है। जो साधक सभी प्राणियों को अपने समान मानता है और उनके सुख-दुःख में समान भाव रखता है, वही परम योगी है।

Explanation in Hindi:
जो साधक दूसरों के सुख-दुःख को अपने सुख-दुःख के समान समझता है, वह समभाव रखने वाला श्रेष्ठ योगी है।

Explanation in English:
The yogi who perceives the happiness and sorrow of others as their own, maintaining equality, is regarded as the supreme yogi.

श्लोक 33

अर्जुन उवाच |
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन |
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् || 6.33 ||

अर्थ:
अर्जुन ने कहा: मधुसूदन! आपने जो समानता का यह योग बताया है, उसकी स्थिरता मैं चंचलता के कारण प्राप्त नहीं कर सकता।

व्याख्या:
अर्जुन यहाँ अपनी चिंता प्रकट करते हैं कि मन की चंचलता के कारण उन्हें इस योग की सिद्धि असंभव लगती है। यह साधकों की सामान्य कठिनाई को उजागर करता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन को लगता है कि मन की चंचल प्रकृति के कारण ध्यान योग की सिद्धि करना कठिन है।

Explanation in English:
Arjuna expresses his concern that the restless nature of the mind makes achieving this state of yoga seem impossible.

श्लोक 34

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् |
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् || 6.34 ||

अर्थ:
हे कृष्ण! मन तो अत्यंत चंचल, उद्दंड, बलवान और दृढ़ है। इसे वश में करना वायु को रोकने के समान कठिन है।

व्याख्या:
यह श्लोक मन की प्रकृति को स्पष्ट करता है। अर्जुन बताते हैं कि मन को नियंत्रित करना कितना कठिन कार्य है, और इसके लिए अपार प्रयास की आवश्यकता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन मन की चंचलता को नियंत्रित करने की कठिनाई बताते हैं, इसे वायु को रोकने जैसा कठिन कार्य मानते हैं।

Explanation in English:
Arjuna describes the difficulty of controlling the restless mind, comparing it to the challenge of restraining the wind.

श्लोक 35

श्रीभगवानुवाच |
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् |
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते || 6.35 ||

अर्थ:
श्री भगवान ने कहा: हे महाबाहो! निःसंदेह, मन को वश में करना कठिन है, परंतु अभ्यास और वैराग्य के द्वारा इसे वश में किया जा सकता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि मन को नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन नियमित अभ्यास और सांसारिक वस्तुओं के प्रति वैराग्य से इसे साधा जा सकता है।

Explanation in Hindi:
मन को वश में करना कठिन है, परंतु निरंतर अभ्यास और वैराग्य द्वारा इसे नियंत्रण में लाया जा सकता है।

Explanation in English:
Controlling the mind is challenging, but with consistent practice and detachment, it can be mastered.

श्लोक 36

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः |
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः || 6.36 ||

अर्थ:
मेरे मत में, संयमहीन व्यक्ति के लिए योग प्राप्त करना कठिन है, लेकिन जिसने अपने मन को वश में कर लिया है, उसके लिए यह संभव है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यहाँ स्पष्ट करते हैं कि योग की सिद्धि के लिए मन और आत्मा पर संयम रखना आवश्यक है। बिना आत्म-नियंत्रण के, योग को प्राप्त करना असंभव है।

Explanation in Hindi:
योग का अभ्यास केवल उन्हीं के लिए संभव है जिन्होंने अपने मन और आत्मा पर संयम स्थापित कर लिया है।

Explanation in English:
The practice of yoga is attainable only for those who have established self-control over their mind and soul.

श्लोक 37

अर्जुन उवाच |
अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः |
अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति || 6.37 ||

अर्थ:
अर्जुन ने पूछा: हे कृष्ण! जो श्रद्धा से युक्त हो, परंतु मन स्थिर न रख पाए और योग की सिद्धि को प्राप्त न कर सके, उसका क्या होता है?

व्याख्या:
यहाँ अर्जुन एक सामान्य साधक की स्थिति के बारे में पूछते हैं, जो योग की साधना में सफल नहीं हो पाता। उनका प्रश्न है कि ऐसे व्यक्ति का क्या भविष्य होता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन उन साधकों की स्थिति जानना चाहते हैं जो योग के मार्ग में विफल हो जाते हैं।

Explanation in English:
Arjuna seeks to understand the fate of practitioners who fail to achieve perfection in yoga.

श्लोक 38

कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति |
अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि || 6.38 ||

अर्थ:
हे महाबाहो! क्या ऐसा व्यक्ति, दोनों मार्गों से भटककर, टूटे हुए बादल की तरह नष्ट हो जाता है और ब्रह्म के मार्ग में स्थिर नहीं हो पाता?

व्याख्या:
अर्जुन का यह प्रश्न मानव जीवन की अनिश्चितता और योग में असफलता की चिंता को प्रकट करता है। वह जानना चाहते हैं कि ऐसा साधक क्या अपने प्रयासों का फल खो देता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन योग साधना में विफल साधकों की चिंता व्यक्त करते हैं और उनके भविष्य के बारे में पूछते हैं।

Explanation in English:
Arjuna expresses concern about practitioners who fail in yoga and asks about their fate.

श्लोक 39

एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः |
त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते || 6.39 ||

अर्थ:
हे कृष्ण! कृपया मेरे इस संदेह को पूरी तरह से दूर करें। आप ही ऐसे व्यक्ति हैं जो इस संदेह को दूर कर सकते हैं।

व्याख्या:
यहाँ अर्जुन भगवान से अपनी जिज्ञासा का समाधान चाहते हैं। वह मानते हैं कि केवल श्रीकृष्ण ही उनकी शंका का निवारण कर सकते हैं।

Explanation in Hindi:
अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हैं कि वे उनके संदेह को पूरी तरह से समाप्त करें।

Explanation in English:
Arjuna requests Lord Krishna to completely resolve his doubts, as he believes only Krishna can clarify them.

श्लोक 40

श्रीभगवानुवाच |
पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते |
न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति || 6.40 ||

अर्थ:
श्री भगवान ने कहा: हे पार्थ! ऐसा व्यक्ति न तो इस लोक में और न परलोक में नष्ट होता है। जो शुभ कर्म करता है, वह कभी दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अर्जुन को आश्वस्त करते हैं कि योग साधना में प्रयास करने वाला व्यक्ति कभी व्यर्थ नहीं होता। उसके शुभ कर्म उसे सदैव उन्नति की ओर ले जाते हैं।

Explanation in Hindi:
योग के मार्ग में असफल व्यक्ति भी शुभ कर्मों के कारण अच्छे भविष्य की ओर बढ़ता है।

Explanation in English:
A person who strives on the path of yoga never faces destruction, as their virtuous efforts always lead to a better future.

Bhagwat Geeta Chapter 6: ध्यान योग | श्लोक 41 – 47

श्लोक 41

प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः |
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते || 6.41 ||

अर्थ:
योग में असफल व्यक्ति पुण्यात्माओं के लोकों में जाकर, वहाँ कई वर्षों तक निवास करता है और फिर पवित्र तथा धनवान परिवार में जन्म लेता है।

व्याख्या:
यह श्लोक योग साधना के प्रयासों की महत्ता को दर्शाता है। यदि साधक वर्तमान जीवन में सफल नहीं होता, तो उसे अगले जन्म में श्रेष्ठ परिवार और परिस्थितियाँ प्राप्त होती हैं।

Explanation in Hindi:
योग में विफल होने पर भी साधक अगले जन्म में उत्तम और पवित्र परिवार में जन्म लेता है।

Explanation in English:
Even if one fails in yoga, they are born into a virtuous and affluent family in their next life, continuing their spiritual journey.

श्लोक 42

अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् |
एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् || 6.42 ||

अर्थ:
या फिर वह योगियों के ज्ञानयुक्त कुल में जन्म लेता है। ऐसा जन्म इस संसार में अत्यंत दुर्लभ है।

व्याख्या:
यहाँ श्रीकृष्ण बताते हैं कि यदि कोई साधक योग में असफल रहता है, तो अगले जन्म में वह ज्ञान और ध्यान से युक्त योगियों के परिवार में जन्म लेकर अपनी साधना को पुनः आरंभ करता है।

Explanation in Hindi:
योग में विफल साधक का जन्म या तो पवित्र और धनी परिवार में होता है, या फिर सीधे योगियों के परिवार में होता है, जो जीवन में उच्चतम आध्यात्मिक लाभ के लिए अनुकूल है।

Explanation in English:
A yogi who fails in this life is either born into a virtuous and wealthy family or directly into a family of wise yogis, providing them with a perfect environment to resume their spiritual journey.

श्लोक 43

तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् |
यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन || 6.43 ||

अर्थ:
वहाँ वह अपने पूर्व जन्म के ज्ञान और बुद्धि को प्राप्त करता है और पुनः सिद्धि प्राप्त करने के लिए प्रयास करता है।

व्याख्या:
साधक के प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाते। अपने पिछले जन्म के कर्मों और योगाभ्यास के प्रभाव से वह जन्मजात आध्यात्मिक प्रवृत्तियाँ लेकर आता है और उन्हें आगे बढ़ाता है।

Explanation in Hindi:
पिछले जन्म के अभ्यास के कारण, साधक को स्वाभाविक रूप से ध्यान और योग के प्रति आकर्षण होता है और वह अपनी साधना को पुनः आरंभ करता है।

Explanation in English:
Due to the efforts of their past life, a yogi naturally inclines toward spirituality and resumes their practice with renewed vigor.

श्लोक 44

पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः |
जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते || 6.44 ||

अर्थ:
पूर्व जन्म के अभ्यास के प्रभाव से, वह व्यक्ति चाहे अनचाहे, योग की ओर आकर्षित होता है और शास्त्रों के शब्दों को पार कर जाता है।

व्याख्या:
पूर्व जन्म के संस्कारों और अभ्यासों के कारण, व्यक्ति योग और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होता है। इस प्रेरणा से वह शास्त्रों की सीमाओं से भी आगे बढ़ता है।

Explanation in Hindi:
पिछले जन्म के अभ्यास के कारण व्यक्ति सहज रूप से योग की ओर आकर्षित होता है और गहन आध्यात्मिक अनुभवों को प्राप्त करता है।

Explanation in English:
The impressions of past practices lead one toward yoga naturally, allowing them to transcend even the scriptural knowledge and attain profound spiritual experiences.

श्लोक 45

प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः |
अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् || 6.45 ||

अर्थ:
परिश्रम करते हुए, और पापों से शुद्ध होकर, अनेक जन्मों की साधना के पश्चात, वह योगी परम गति को प्राप्त होता है।

व्याख्या:
यह श्लोक दर्शाता है कि योग साधना में सतत प्रयास और तपस्या से साधक अपने समस्त दोषों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।

Explanation in Hindi:
लगातार अभ्यास और प्रयास के माध्यम से, साधक अंततः मोक्ष प्राप्त करता है और परम सत्य में विलीन हो जाता है।

Explanation in English:
Through consistent effort and spiritual discipline, the yogi ultimately attains liberation and merges with the Supreme Truth.

श्लोक 46

तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः |
कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन || 6.46 ||

अर्थ:
योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है, ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ है, और कर्मयोगियों से भी श्रेष्ठ है। इसलिए, हे अर्जुन! तुम योगी बनो।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यहाँ योग को सर्वोच्च साधना बताते हैं। योगी को तपस्वियों, ज्ञानियों और कर्मयोगियों से भी उच्च स्थान दिया गया है क्योंकि वह आध्यात्मिक साधना के सभी पहलुओं को समाहित करता है।

Explanation in Hindi:
योगी वह है जो ध्यान, ज्ञान और कर्म के बीच संतुलन स्थापित करता है। इसलिए, योगी बनना ही श्रेष्ठ मार्ग है।

Explanation in English:
The yogi transcends ascetics, scholars, and performers of rituals, embodying the essence of all paths. Therefore, being a yogi is the highest pursuit.

श्लोक 47

योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना |
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || 6.47 ||

अर्थ:
सभी योगियों में, जो श्रद्धा से मुझमें लीन होकर मुझे भजते हैं, वह मेरे मत में सर्वश्रेष्ठ योगी है।

व्याख्या:
यह श्लोक भक्ति योग की महत्ता को दर्शाता है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो योगी अपने मन और आत्मा को भगवान में अर्पित कर देता है और पूर्ण विश्वास के साथ उनकी उपासना करता है, वह सबसे श्रेष्ठ है।

Explanation in Hindi:
सच्चा योगी वह है जो भगवान श्रीकृष्ण में पूर्ण रूप से समर्पित होकर श्रद्धा और भक्ति के साथ उनकी उपासना करता है।

Explanation in English:
The true yogi is one who wholeheartedly surrenders to Lord Krishna with devotion and unwavering faith, making them the most exalted among yogis.

निष्कर्ष

ध्यान योग अध्याय में श्रीकृष्ण ने ध्यान, संयम, और आत्म-संयम के महत्व को विस्तार से बताया है। इस अध्याय में यह समझाया गया है कि योग साधक का लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार और परमात्मा से एकत्व प्राप्त करना है। ध्यान के माध्यम से साधक अपने मन को नियंत्रित करता है, समस्त पापों से शुद्ध होता है, और जीवन के परम सत्य की ओर अग्रसर होता है। श्रीकृष्ण ने यह भी बताया कि सभी साधनों में, वह योगी सबसे श्रेष्ठ है जो पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान में लीन होकर उनकी उपासना करता है।

FAQs

1. प्रश्न: ध्यान योग का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर: ध्यान योग का मुख्य उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार करना और भगवान से एकत्व प्राप्त करना है। इसके माध्यम से साधक अपने मन को नियंत्रित करता है और समस्त पापों से शुद्ध होता है।

2. प्रश्न: श्रीकृष्ण ने सबसे श्रेष्ठ योगी किसे कहा है?

उत्तर: श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो योगी श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान में लीन होकर उनकी उपासना करता है, वह सबसे श्रेष्ठ योगी है।

3. प्रश्न: ध्यान योग साधना के लिए क्या आवश्यक है?

उत्तर: ध्यान योग के लिए मन का स्थिर होना, एकांत स्थान, साधना में निरंतरता, और आत्म-नियंत्रण आवश्यक है। साधक को अपने मन को विषयों से हटाकर भगवान पर केंद्रित करना होता है।

4. प्रश्न: असफल योगी के लिए श्रीकृष्ण ने क्या कहा है?

उत्तर: श्रीकृष्ण ने बताया है कि असफल योगी अपने अगले जन्म में पुण्यवान परिवार या योगियों के घर में जन्म लेता है। अपने पूर्व जन्म के अभ्यास के कारण वह पुनः साधना को आरंभ करता है और मोक्ष प्राप्त करता है।

5. प्रश्न: ध्यान योग में सफलता पाने के लिए क्या करना चाहिए?

उत्तर: ध्यान योग में सफलता के लिए साधक को निरंतर अभ्यास करना चाहिए, मन को नियंत्रित रखना चाहिए, और ईश्वर के प्रति समर्पण भाव रखना चाहिए। साथ ही, संयम और शुद्ध आचरण को अपनाना चाहिए।

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