Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: जब हमलोग ‘श्लोक’ शब्द सुनते है, तो मन तुरंत उन संस्कृत छंदों की ओर खिंच जाता है जो हमारी भारतीय संस्कृति और धार्मिक ग्रंथों का गहन हिस्सा हैं। ये श्लोक सिर्फ मंत्र या काव्य पंक्तियां नहीं हैं; ये हमारी आध्यात्मिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
आज के इस article में, हम आपको अध्याय 1 के सभी श्लोक हिंदी में समझाने वाले है। इसमें हम न केवल उन श्लोकों का पाठ करेंगे, बल्कि उनके अर्थ और हमारे दैनिक जीवन में उनके महत्व को भी जानेंगे। हर श्लोक में निहित ज्ञान, भक्ति, और काव्य सौंदर्य ने हमेशा मुझे मोहित किया है। चाहे वह भगवद गीता के ज्ञानवर्धक श्लोक हों, रामायण और महाभारत के गूढ़ छंद, या वेदों और उपनिषदों के मर्मस्पर्शी मंत्र, हर श्लोक अपने आप में अद्वितीय और जीवनोपयोगी है।
Bhagwat Geeta Shlok in Hindi Chapter 01
Shlok 01
धृतराष्ट्र उवाच |
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव: |
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ||1||
राजा धृतराष्ट्र बोले: हे संजय, धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में एकत्र हुए युद्ध की इच्छा रखने वाले मेरे पुत्रों और पांडवों ने क्या किया?
भगवद गीता के इस उद्घाटन श्लोक में कुरु वंश के अंधे राजा धृतराष्ट्र अपने सारथी और सलाहकार संजय से बात करते हैं। यह वार्ता कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि पर हो रही है, जिसे धर्मक्षेत्र भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है एक पवित्र स्थान या कर्तव्य का क्षेत्र।
धृतराष्ट्र युद्ध भूमि पर अपने पुत्रों (कौरवों) और पांडु के पुत्रों (पांडवों) के युद्ध के लिए एकत्र होने पर चिंतित और जिज्ञासु हैं। वह संजय से, जिसे दिव्य दृष्टि प्राप्त है और जो युद्धभूमि की घटनाओं को देख सकता है, से पूछते हैं कि वहां क्या हो रहा है।
धृतराष्ट्र का यह प्रश्न आने वाले युद्ध के परिणाम और दोनों पक्षों के योद्धाओं की क्रियाओं के बारे में उनकी चिंता को दर्शाता है। यह श्लोक उस संवाद की पृष्ठभूमि तैयार करता है जो आगे होता है, जहां संजय अर्जुन और कृष्ण के बीच होने वाली बातचीत का वर्णन करते हैं
Shlok 02
सञ्जय उवाच |
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा |
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत् ||2||
संजय ने कहा: तब पांडवों की सेना को व्यूह में सजी हुई देखकर राजा दुर्योधन अपने आचार्य द्रोणाचार्य के पास गया और उनसे यह वचन कहा।
इस श्लोक में संजय कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर होने वाली घटनाओं का वर्णन करना शुरू करते हैं। वह बताते हैं कि दुर्योधन, जो कौरवों का नेता है, पांडवों की सेना को रणनीतिक रूप से सजी हुई देखकर कैसे प्रतिक्रिया करता है।
दुर्योधन, पांडवों की सेना की तैयारी और ताकत को देखकर, अपने गुरु और सेनापति द्रोणाचार्य के पास जाता है। वह उनसे इस स्थिति पर चर्चा करने के लिए जाता है। यह श्लोक दुर्योधन के भाषण की पृष्ठभूमि तैयार करता है, जिसमें वह विरोधी सेना के बारे में अपनी टिप्पणियां और चिंताएं व्यक्त करेगा।
यह श्लोक दुर्योधन की जागरूकता और युद्ध शुरू होने से पहले अपने गुरु से परामर्श लेने के महत्व को दर्शाता है
Shlok 03
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् |
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ||3||
हे आचार्य, पांडु के पुत्रों की इस विशाल सेना को देखिए, जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य, द्रुपद के पुत्र द्वारा व्यवस्थित किया गया है।
इस श्लोक में दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य से बात कर रहे हैं। वह पांडवों की प्रभावशाली और सुव्यवस्थित सेना की ओर इशारा करते हैं, जिसे रणनीतिक रूप से राजा द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा सजाया गया है। धृष्टद्युम्न भी द्रोणाचार्य के शिष्य हैं, जो इस स्थिति में एक प्रकार का विडंबना और तनाव जोड़ता है।
दुर्योधन के शब्द पांडवों की ताकत और तैयारी की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए हैं, और संभवतः द्रोणाचार्य में चिंता या तात्कालिकता की भावना जगाने के लिए हैं। यह श्लोक दुर्योधन की इस बात को दर्शाता है कि वे एक कठिन विपक्ष का सामना कर रहे हैं और यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि उनकी अपनी सेना भी समान रूप से तैयार हो।
Shlok 04
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि |
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथ: ||4||
यहाँ इस सेना में, भीम और अर्जुन के समान युद्ध करने वाले कई वीर धनुर्धर हैं: युयुधान, विराट और महारथी द्रुपद जैसे महान योद्धा।
इस श्लोक में, दुर्योधन द्रोणाचार्य से पांडवों की सेना के वीर योद्धाओं का वर्णन करना जारी रखते हैं। वह बताते हैं कि पांडवों की सेना में कई वीर और कुशल धनुर्धर शामिल हैं जो युद्ध में भीम और अर्जुन के समान हैं, जो कि दो महान योद्धा माने जाते हैं।
दुर्योधन विशेष रूप से युयुधान (सत्यकि), राजा विराट और द्रुपद का नाम लेते हैं, जिन्हें महारथी माना जाता है, जो अत्यंत कुशल और शक्तिशाली योद्धाओं को दिया गया एक खिताब है। इन योद्धाओं के नाम लेकर, दुर्योधन पांडवों की सेना की ताकत और कौशल पर जोर देते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे एक गंभीर चुनौती पेश करते हैं।
Shlok 05
धृष्टकेतुश्चेकितान: काशिराजश्च वीर्यवान् |
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुंगव: ||5||
धृष्टकेतु, चेकितान, और वीर काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज, और श्रेष्ठ पुरुष शैब्य जैसे महान वीर भी हैं।
इस श्लोक में, दुर्योधन पांडव पक्ष के प्रमुख योद्धाओं की गणना जारी रखते हैं। वह कई और वीर योद्धाओं के नाम लेते हैं, उनके महत्व और वीरता पर जोर देते हैं:
- धृष्टकेतु: चेदि के राजा, जो अपनी वीरता और युद्ध कौशल के लिए प्रसिद्ध हैं।
- चेकितान: वृष्णि वंश के योद्धा, जो अपनी युद्ध क्षमताओं के लिए जाने जाते हैं।
- काशिराज (काशी के राजा): अपनी वीरता और पांडव सेना में महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रसिद्ध।
- पुरुजित: कुन्तिभोज के भाई, पांडवों के महत्वपूर्ण सहयोगी।
- कुन्तिभोज: कुन्ती (पांडवों की माता) के पालक पिता, जो अपनी निष्ठा और युद्ध कौशल के लिए प्रसिद्ध हैं।
- शैब्य: एक और वीर योद्धा, जिन्हें श्रेष्ठ पुरुषों में से एक माना जाता है।
इन योद्धाओं के नाम लेकर, दुर्योधन पांडव सेना की ताकत और वीरता को स्वीकार करते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनकी अपनी सेना को एक गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
Shlok 06
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् |
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथा: ||6||
साहसी युधामन्यु और वीर उत्तमौज, सुभद्रा का पुत्र और द्रौपदी के पुत्र, ये सभी महारथी हैं।
इस श्लोक में, दुर्योधन पांडव सेना के शक्तिशाली योद्धाओं की सूची जारी रखते हुए उनके वीरता और क्षमता पर जोर देते हैं:
- युधामन्यु: एक योद्धा जो अपनी साहस और युद्ध कौशल के लिए जाना जाता है।
- उत्तमौज: एक और वीर योद्धा, जो अपनी बहादुरी के लिए प्रसिद्ध है।
- सौभद्र (अभिमन्यु): सुभद्रा (कृष्ण की बहन) और अर्जुन का पुत्र, जो कम उम्र में भी अपने असाधारण युद्ध कौशल के लिए जाना जाता है।
- द्रौपदेय (द्रौपदी के पुत्र): द्रौपदी के पाँच पुत्र, जिनका जन्म पाँचों पांडवों से हुआ है, सभी कुशल योद्धा हैं।
इन योद्धाओं का नाम लेकर, दुर्योधन पांडवों की सेना में मौजूद उच्च स्तर के युद्ध कौशल और वीरता पर जोर देते हैं। वह स्वीकार करते हैं कि ये सभी “महारथी” हैं, जो रथ से युद्ध करने में कुशल और कई विरोधियों का सामना करने में सक्षम हैं। दुर्योधन की यह गणना पांडव सेना द्वारा प्रस्तुत गंभीर चुनौती को उजागर करती है। Bhagwat Geeta Shlok In Hindi
Shlok 07
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम |
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ||7||
हमारे पक्ष में जो मुख्य योद्धा हैं, उनके नाम को सुनो, हे ब्राह्मणों में श्रेष्ठ। मेरे सेना के नायकों के नाम को जानो, जिन्हें मैं तुम्हें बताता हूँ।
इस श्लोक में, दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य से कुरुक्षेत्र के महायुद्ध की शुरुआत में बात करता है। वह अपनी सेना के प्रमुख योद्धाओं की ओर ध्यान आकर्षित करता है, जो उनकी महत्ता और शक्ति को दर्शाता है। दुर्योधन द्रोणाचार्य को “द्विजोत्तम” (ब्राह्मणों में श्रेष्ठ) कहकर संबोधित करता है, जिससे सम्मान व्यक्त होता है और कौरव सेना के महत्वपूर्ण नायकों की पहचान कराता है। यह श्लोक युद्ध में दुर्योधन की रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाता है, जिसमें वह अपनी सैन्य संरचना में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले योद्धाओं को प्रस्तुत करता है।
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Shlok 08
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जय: |
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ||8||
आप, भीष्म, कर्ण, युद्ध में विजयी कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और सौमदत्त के पुत्र।
इस श्लोक में, दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य के सामने अपनी सेना के महान योद्धाओं का परिचय जारी रखता है। वह उल्लेख करता है:
- भीष्म: कौरवों और पांडवों के पितामह, अपनी अद्वितीय शक्ति और प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं।
- कर्ण: एक महान धनुर्धर और योद्धा, दुर्योधन का घनिष्ठ मित्र, अपनी निष्ठा और कौशल के लिए प्रसिद्ध।
- कृपाचार्य: राजगुरु और एक ऋषि-योद्धा जिन्होंने कई युद्ध लड़े।
- अश्वत्थामा: द्रोणाचार्य के पुत्र, अपनी उग्र लड़ाई की कौशल के लिए जाने जाते हैं।
- विकर्ण: कौरवों में से एक, अपनी धार्मिकता और वीरता के लिए विख्यात।
- सौमदत्ति: सोमदत्त के पुत्र, एक और बहादुर और कुशल योद्धा।
दुर्योधन इन प्रमुख नेताओं की सूची देकर अपनी सेना में मौजूद शक्ति और वीरता पर जोर देता है, आगामी युद्ध में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है। Bhagwat Geeta Shlok In Hindi
Shlok 09
अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता: |
नानाशस्त्रप्रहरणा: सर्वे युद्धविशारदा: ||9||
अन्य कई बहादुर योद्धा हैं जिन्होंने मेरे लिए अपने जीवन का त्याग कर दिया है। वे विभिन्न प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित हैं और सभी युद्ध की कला में निपुण हैं।
इस श्लोक में, दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य को अपनी सेना के योद्धाओं के बारे में बताते हुए आगे कहते हैं कि पूर्व में उल्लेख किए गए महान योद्धाओं के अलावा भी कई अन्य वीर योद्धा हैं जो उसके लिए अपने प्राण त्यागने के लिए तैयार हैं। ये योद्धा न केवल साहसी हैं बल्कि विभिन्न प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित हैं और युद्ध की कला में अत्यंत निपुण हैं। यह कथन कौरव सेना की विशाल और भयावह प्रकृति को रेखांकित करता है, जिसमें समर्पित और कुशल सैनिक भरे हुए हैं।
Shlok 10
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् |
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ||10||
भीष्म द्वारा रक्षित हमारी सेना अपर्याप्त (असीमित) है, जबकि भीम द्वारा रक्षित इन (पांडवों) की सेना पर्याप्त (सीमित) है।
इस श्लोक में, दुर्योधन कौरव सेना की ताकत की तुलना पांडव सेना से करते हैं। वह अपनी सेना की शक्ति में अटूट विश्वास व्यक्त करता है, जो भीष्म जैसे महान योद्धा के संरक्षण में है। दुर्योधन मानते हैं कि उनकी ताकत असीमित है और किसी भी प्रकार से सीमित नहीं हो सकती। Bhagwat Geeta Shlok In Hindi
दूसरी ओर, वह पांडवों की सेना की ताकत को स्वीकार करते हैं, जो भीम के संरक्षण में है। हालांकि, वह इसे अपनी सेना की तुलना में सीमित मानते हैं। यह कथन दुर्योधन की रणनीतिक मूल्यांकन और भीष्म के नेतृत्व के कारण अपनी सेना की श्रेष्ठता में उसके आत्मविश्वास को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi” इस लेख में हमने भगवद गीता के पहले दस श्लोकों का विश्लेषण किया है। ये श्लोक कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान की प्रारंभिक स्थिति को दर्शाते हैं, जहाँ महाभारत का प्रसिद्ध संवाद शुरू होता है। वे योद्धाओं के दृष्टिकोण और रणनीतियों को चित्रित करते हैं, साथ ही दोनों पक्षों के मुख्य योद्धाओं का परिचय भी देते हैं। राजा धृतराष्ट्र की जिज्ञासा, दुर्योधन की सेना का वर्णन और उनके अटूट आत्मविश्वास के माध्यम से, हम इस युद्ध के महत्व और रहस्यपूर्ण प्रकृति के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। ये श्लोक युद्ध की पृष्ठभूमि और इसके महान नायकों का व्यापक अवलोकन प्रदान करते हैं।
FAQs:
भगवद गीता के पहले दस श्लोकों में कौन-कौन से प्रमुख योद्धाओं का उल्लेख है?
पहले दस श्लोकों में, मुख्यतः भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण, सौमदत्त के पुत्र, और दुर्योधन की सेना के अन्य प्रमुख योद्धाओं का उल्लेख है। इसके अलावा, पांडवों की सेना में भीम का उल्लेख महत्वपूर्ण रूप से किया गया है।
धृतराष्ट्र का पहला प्रश्न क्या था और उसका क्या महत्व है?
धृतराष्ट्र का पहला प्रश्न था: “धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव: मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय?” इसका महत्व यह है कि यह प्रश्न कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि की पवित्रता और युद्ध के परिणामों के प्रति धृतराष्ट्र की चिंता और जिज्ञासा को दर्शाता है।
दुर्योधन ने भीष्म और भीम की सेनाओं की तुलना कैसे की?
दुर्योधन ने भीष्म द्वारा रक्षित अपनी सेना को अपर्याप्त (असीमित) और भीम द्वारा रक्षित पांडवों की सेना को पर्याप्त (सीमित) बताया। यह तुलना उसके आत्मविश्वास और अपनी सेना की श्रेष्ठता को दर्शाती है।
दुर्योधन ने अपनी सेना के योद्धाओं का वर्णन क्यों किया?
दुर्योधन ने अपनी सेना के प्रमुख योद्धाओं का वर्णन अपने गुरु द्रोणाचार्य को यह दिखाने के लिए किया कि उनकी सेना कितनी शक्तिशाली और सक्षम है। इसका उद्देश्य द्रोणाचार्य को आश्वस्त करना और युद्ध की तैयारी में उनकी आत्मविश्वास को बढ़ाना था।
पहले दस श्लोकों में पांडवों के प्रमुख योद्धाओं में से किसका उल्लेख किया गया है?
पहले दस श्लोकों में पांडवों के प्रमुख योद्धाओं में से विशेष रूप से भीम का उल्लेख किया गया है। भीम को पांडव सेना का मुख्य रक्षक माना गया है, जिसके संरक्षण में पांडवों की सेना युद्ध के लिए तैयार है।