Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: भगवद गीता के पहले अध्याय की शुरुआत में हमें कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर ले जाया जाता है, जहां कौरव और पांडव सेनाएँ आमने-सामने खड़ी हैं। श्लोक 1 से 27 तक, हम देखते हैं कि धृतराष्ट्र अपने सारथी संजय से युद्ध के मैदान की स्थिति के बारे में जानना चाहते हैं। संजय, जो दिव्य दृष्टि से सम्पन्न हैं, धृतराष्ट्र को युद्ध के प्रारंभिक दृश्य का वर्णन करते हैं।
इन श्लोकों में, अर्जुन अपने सारथी श्रीकृष्ण से युद्धभूमि में दोनों पक्षों की सेना को देखने के लिए रथ को बीच में खड़ा करने का अनुरोध करते हैं। जब अर्जुन अपने परिवार, गुरुजनों और मित्रों को युद्ध के लिए तैयार देखता है, तो उसका मन व्याकुल हो उठता है। उसे अपने प्रियजनों के विरुद्ध युद्ध करने में संकोच और द्वंद्व का अनुभव होता है।
आइए, इस Bhagwat Geeta Shlok In Hindi के महत्वपूर्ण संवाद की गहराई को समझते हुए अर्जुन की मनःस्थिति का विश्लेषण करें और जानें कि युद्ध के मैदान में खड़े होकर उसके मन में क्या-क्या विचार उमड़ रहे थे।
श्लोक 1
धृतराष्ट्र उवाच:
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥1॥
अर्थ: धृतराष्ट्र ने कहा: हे संजय! धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्रित हुए मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
व्याख्या: धृतराष्ट्र, जो अंधे हैं और हस्तिनापुर के राजा हैं, अपने मंत्री संजय से पूछते हैं कि कुरुक्षेत्र में युद्ध के मैदान में उनके पुत्रों (कौरवों) और पाण्डु के पुत्रों (पाण्डवों) ने क्या किया।
श्लोक 2
सञ्जय उवाच:
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्॥2॥
अर्थ: संजय ने कहा: हे राजा! पाण्डवों की सेना को व्यूहबद्ध देखकर दुर्योधन अपने आचार्य द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन बोला।
व्याख्या: संजय, धृतराष्ट्र को युद्ध के मैदान का दृश्य बताते हुए कहता है कि जब दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना को व्यवस्थित देखा, तो वह अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास गया।
श्लोक 3
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥3॥
अर्थ: हे आचार्य! देखिए, पाण्डुपुत्रों की इस विशाल सेना को, जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने व्यवस्थित किया है।
व्याख्या: दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य से पाण्डवों की सेना की ओर ध्यान आकर्षित कराता है, जिसे द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने व्यवस्थित किया है।
श्लोक 4
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः॥4॥
अर्थ: इस सेना में महान धनुर्धर, युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर हैं, जैसे युयुत्सु, विराट, और महारथी द्रुपद।
व्याख्या: दुर्योधन द्रोणाचार्य को पाण्डवों की सेना के प्रमुख योद्धाओं के बारे में बताता है, जो भीम और अर्जुन के समान पराक्रमी हैं।
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: श्लोक 5
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुंगवः॥5॥
अर्थ: धृष्टकेतु, चेकितान, वीर्यवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और श्रेष्ठ नर शैब्य भी इस सेना में हैं।
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: दुर्योधन और भी प्रमुख योद्धाओं का उल्लेख करता है, जो पाण्डवों की सेना में हैं।
श्लोक 6
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥6॥
अर्थ: विक्रमशाली युधामन्यु, वीर्यवान उत्तमौजा, अभिमन्यु (सुभद्रा का पुत्र) और द्रौपदी के पुत्र भी इस सेना में महारथी हैं।
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: दुर्योधन पाण्डवों की सेना के और भी योद्धाओं का वर्णन करता है, जो सभी महारथी (महान योद्धा) हैं।
श्लोक 7
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते॥7॥
अर्थ: हे श्रेष्ठ ब्राह्मण! अब आप मेरी सेना के उन विशिष्ट योद्धाओं को भी जान लीजिए, जो इस युद्ध में मेरी सेना के मुख्य नायक हैं।
व्याख्या: दुर्योधन अब अपने गुरु द्रोणाचार्य को कौरवों की सेना के प्रमुख योद्धाओं के बारे में बताने लगता है।
श्लोक 8
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च॥8॥
अर्थ: आप, भीष्म, कर्ण, युद्ध में विजयशील कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा।
व्याख्या: दुर्योधन अपने सेना के प्रमुख योद्धाओं का नाम लेते हुए द्रोणाचार्य, भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और भूरिश्रवा का उल्लेख करता है।
श्लोक 9
अन्न्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः॥9॥
अर्थ: और भी कई शूरवीर, जो मेरे लिए अपने प्राणों को त्यागने के लिए तैयार हैं, विभिन्न प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित और युद्ध में निपुण हैं।
व्याख्या: दुर्योधन यह बताता है कि उसकी सेना में कई ऐसे योद्धा हैं जो विभिन्न शस्त्रों में कुशल और युद्ध के लिए समर्पित हैं।
श्लोक 10
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्॥10॥
अर्थ: हमारी सेना, जो भीष्म द्वारा रक्षित है, असीमित शक्ति वाली है, जबकि पाण्डवों की सेना, जो भीम द्वारा रक्षित है, सीमित शक्ति वाली है।
व्याख्या: दुर्योधन अपनी सेना की शक्ति को उच्च मानता है क्योंकि उसकी सेना को भीष्म जैसे महान योद्धा का संरक्षण प्राप्त है, जबकि पाण्डवों की सेना को भीम का संरक्षण प्राप्त है।
श्लोक 11
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि॥11॥
अर्थ: आप सभी अपने-अपने स्थानों पर स्थित रहकर सभी मोर्चों पर भीष्म पितामह की रक्षा करें।
व्याख्या: दुर्योधन अपने योद्धाओं को निर्देश देता है कि वे सभी अपने-अपने स्थानों पर मजबूती से तैनात रहें और भीष्म पितामह की रक्षा करें, ताकि वे युद्ध की रणनीति में कमजोर न पड़ें।
श्लोक 12
तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शंखं दध्मौ प्रतापवान्॥12॥
अर्थ: कौरवों के वृद्ध पितामह भीष्म ने, जो प्रतापी थे, दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए उच्च स्वर में सिंह के गर्जना के समान शंखध्वनि की।
व्याख्या: भीष्म पितामह ने दुर्योधन को उत्साहित करने और अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए जोर से शंख बजाया, जिससे युद्ध भूमि में उत्साह और ऊर्जा का संचार हुआ।
श्लोक 13
ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्॥13॥
अर्थ: इसके बाद, शंख, भेरी, नगाड़े, तुरही और सींग एक साथ बज उठे और उनकी आवाजें बहुत ही प्रचंड हो गईं।
व्याख्या: भीष्म के शंख बजाने के बाद, युद्ध भूमि में विभिन्न प्रकार के युद्ध वाद्य यंत्रों की आवाजें गूंज उठीं, जो युद्ध के आरंभ का संकेत था और वातावरण में उत्साह और भय का संचार कर रही थीं।
श्लोक 14
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतुः॥14॥
अर्थ: तब, सफेद घोड़ों से युक्त महान रथ में खड़े हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन ने अपने दिव्य शंख बजाए।
व्याख्या: पाण्डवों की ओर से, श्रीकृष्ण और अर्जुन, जो सफेद घोड़ों से युक्त रथ में सवार थे, ने अपने दिव्य शंख (श्रीकृष्ण का पाञ्चजन्य और अर्जुन का देवदत्त) बजाए, जो उनके अद्वितीय साहस और संकल्प का प्रतीक था।
श्लोक 15
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदरः॥15॥
अर्थ: श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य, अर्जुन ने देवदत्त और भीम, जो विशाल पराक्रम वाले थे, ने महाशंख पौण्ड्र को बजाया।
व्याख्या: श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख, अर्जुन ने देवदत्त शंख और भीम ने पौण्ड्र नामक विशाल शंख बजाया। ये शंख पाण्डवों की ओर से युद्ध की घोषणा कर रहे थे।
श्लोक 16
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ॥16॥
अर्थ: कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय शंख, नकुल ने सुघोष और सहदेव ने मणिपुष्पक शंख बजाए।
व्याख्या: राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय शंख बजाया, नकुल ने सुघोष और सहदेव ने मणिपुष्पक शंख बजाए, जो उनके साहस और युद्ध के लिए उनकी तत्परता का प्रतीक थे।
श्लोक 17
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥17॥
अर्थ: महान धनुर्धर काशीराज, महारथी शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, विराट और अपराजित सात्यकि ने भी शंख बजाए।
व्याख्या: काशीराज, शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, विराट और सात्यकि, जो पाण्डवों के प्रमुख योद्धा थे, ने भी अपने-अपने शंख बजाए, जो उनकी युद्ध में भागीदारी और साहस का प्रतीक था।
श्लोक 18
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्॥18॥
अर्थ: हे राजन! द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र, और महाबाहु अभिमन्यु ने भी अपने-अपने शंख बजाए।
व्याख्या: द्रुपद, द्रौपदी के पाँच पुत्र और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने भी अपने-अपने शंख बजाए, जो उनकी युद्ध में सहभागिता और पाण्डवों के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता था।
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श्लोक 19
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्॥19॥
अर्थ: वह घोष (ध्वनि) आकाश और पृथ्वी को गूँजते हुए धार्तराष्ट्रों (कौरवों) के हृदयों को विदीर्ण कर देने वाला था।
व्याख्या: शंखध्वनि इतनी तीव्र और प्रभावशाली थी कि उसने आकाश और पृथ्वी को गुँजायमान कर दिया और कौरवों के हृदयों में भय और अशांति उत्पन्न कर दी।
श्लोक 20
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः॥20॥
अर्थ: उस समय कपिध्वज (हनुमान का ध्वज) अर्जुन ने, जब उन्होंने धार्तराष्ट्रों (कौरवों) को युद्ध के लिए व्यवस्थित देखा, तो अपना धनुष उठाया।
व्याख्या: अर्जुन, जिनके रथ पर हनुमान का ध्वज था, ने जब कौरवों को युद्ध के लिए तैयार देखा, तो उन्होंने अपने धनुष को उठाया और युद्ध के लिए तैयार हो गए।
श्लोक 21
अर्जुन उवाच:
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत।
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्॥21॥
अर्थ: अर्जुन बोले: हे अच्युत! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में स्थापित करें, ताकि मैं उन योद्धाओं को देख सकूं जो युद्ध के लिए एकत्रित हुए हैं।
व्याख्या: अर्जुन, जो श्रीकृष्ण के रथ पर सवार हैं, उनसे अनुरोध करते हैं कि वे उनके रथ को दोनों सेनाओं के बीच में लाएँ, ताकि वे उन योद्धाओं को देख सकें जो उनके विरुद्ध युद्ध करने के लिए तैयार खड़े हैं। अर्जुन को जानना है कि वे किनके खिलाफ युद्ध करने जा रहे हैं।
श्लोक 22
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे।
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः॥22॥
अर्थ: इन युद्ध की तैयारियों में मुझे किनके साथ लड़ना है, मैं उन योद्धाओं को देखना चाहता हूँ जो यहाँ एकत्रित हुए हैं।
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: अर्जुन युद्ध के मैदान में खड़े हुए योद्धाओं का निरीक्षण करना चाहते हैं ताकि वे यह जान सकें कि उन्हें किन-किन योद्धाओं से मुकाबला करना है। वे यह देखना चाहते हैं कि उनके समक्ष कौन-कौन से योद्धा युद्ध के लिए खड़े हैं।
श्लोक 23
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत॥23॥
अर्थ: धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र दुर्योधन के हित में युद्ध की इच्छा रखने वाले जो योद्धा यहाँ एकत्र हुए हैं, उन्हें देखने के लिए रथ को स्थापित करें।
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: अर्जुन यह स्पष्ट करते हैं कि वे उन योद्धाओं को देखना चाहते हैं जिन्होंने दुर्योधन का समर्थन किया है और जो युद्ध के लिए तत्पर हैं। वे जानना चाहते हैं कि उनके विरोधी कौन-कौन हैं।
श्लोक 24
सञ्जय उवाच:
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्॥24॥
अर्थ: संजय ने कहा: हे भरतवंशी! गुडाकेश (अर्जुन) द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हृषीकेश (श्रीकृष्ण) ने दोनों सेनाओं के मध्य में उत्तम रथ को स्थापित किया।
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: संजय, धृतराष्ट्र को बताते हैं कि जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण से रथ को दोनों सेनाओं के बीच में लाने का अनुरोध किया, तो श्रीकृष्ण ने तुरंत उनके अनुरोध का पालन किया और रथ को दोनों सेनाओं के मध्य में ले आए।
निष्कर्ष
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi श्लोक 1 से 27 तक के इस भाग में हमने देखा कि अर्जुन की मनःस्थिति कैसे धीरे-धीरे बदलती है। युद्ध के प्रारंभिक दृश्य ने उसे गहन आत्ममंथन और संदेह की स्थिति में ला खड़ा किया। अर्जुन के मन में उठ रहे इन विचारों और भावनाओं ने उसे कर्तव्य और धर्म के बीच द्वंद्व की स्थिति में डाल दिया। यह भाग हमें यह सिखाता है कि जब हम अपने जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना करते हैं, Bhagwat Geeta Shlok In Hindi तब हमारे भीतर भी ऐसे ही संदेह और द्वंद्व उत्पन्न हो सकते हैं।
अगले ब्लॉग में हम देखेंगे कि अर्जुन के इस मानसिक संघर्ष का समाधान श्रीकृष्ण कैसे करते हैं और उन्हें सही मार्ग पर कैसे ले जाते हैं। इस यात्रा में हमारे साथ बने रहें और गीता के गहन संदेशों को समझने का प्रयास करें। धन्यवाद |
FAQ : Bhagwat Geeta Shlok In Hindi (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. प्रश्न: धृतराष्ट्र ने संजय से क्या पूछा और क्यों?
उत्तर: धृतराष्ट्र ने संजय से कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में हो रही घटनाओं का वर्णन करने को कहा क्योंकि वह स्वयं नेत्रहीन थे और युद्ध की स्थिति को जानने के लिए उत्सुक थे।
2. प्रश्न: अर्जुन ने श्रीकृष्ण से क्या अनुरोध किया और क्यों?
उत्तर: अर्जुन ने श्रीकृष्ण से अनुरोध किया कि वे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा करें ताकि वह अपने युद्ध में शामिल होने वाले योद्धाओं को देख सके। यह अनुरोध अर्जुन के मन में युद्ध के प्रति संकोच और द्वंद्व की भावना के कारण किया गया था।
3. प्रश्न: अर्जुन की मानसिक स्थिति श्लोक 1 से 27 के दौरान कैसे बदलती है?
उत्तर: प्रारंभ में अर्जुन युद्ध के लिए तैयार था, लेकिन जब उसने अपने परिवार, गुरुजनों और मित्रों को युद्ध के लिए तैयार देखा, तो उसका मन व्याकुल हो गया और उसे युद्ध करने में संकोच और द्वंद्व का अनुभव होने लगा।
4. प्रश्न: अर्जुन के इस संकोच और द्वंद्व का कारण क्या था?
उत्तर: अर्जुन का संकोच और द्वंद्व इस विचार से उत्पन्न हुआ कि उसे अपने ही परिवार और प्रियजनों के विरुद्ध युद्ध करना है, जिससे परिवारों का विनाश और समाज में अधर्म फैलने का खतरा है।
5. प्रश्न: इन श्लोकों का हमारे जीवन में क्या महत्व है?
उत्तर: इन श्लोकों का हमारे जीवन में महत्व यह है कि यह हमें सिखाते हैं कि कठिन परिस्थितियों में हमें आत्ममंथन करना चाहिए और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए सही मार्ग पर चलना चाहिए। यह भाग हमें यह भी सिखाता है कि संकट के समय में हमारे मन में उत्पन्न होने वाले संदेह और द्वंद्व का समाधान हमें ज्ञान और सही मार्गदर्शन से मिल सकता है।