Radha Krishna Serial Quotes In Hindi | राधा कृष्ण | कृष्ण वाणी | Ye Srishti Ek Chakr Hai

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radha krishna serial quotes in hindi

Radha Krishna Serial Quotes In Hindi:- इस दुनिया में प्रेम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण यदि कोई है, तो वह है राधा और कृष्ण का प्रेम। भले ही वे दोनों पूरी तरह से मिल न पाए हों, लेकिन आज भी वे अधूरे होकर भी पूरे हैं। आज की यह पोस्ट Radha Krishna Serial Quotes In Hindi को पूरी तरह से समर्पित है।

राधा और कृष्ण का प्रेम इतना गहरा है कि इसे किसी भी तरह के कोट्स से परिभाषित नहीं किया जा सकता, फिर भी मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मैं अपने इन True Love Radha Krishna Quotes के माध्यम से आपको राधा और कृष्ण के प्रेम को थोड़ा बहुत समझा सकूं।

आशा है कि आप इन राधा कृष्णा कोट्स की सहायता से प्रेम का सही अर्थ समझ पाएंगे। और मेरी भी दुआ रहेगी कि यदि आप लड़के हैं तो आपको राधा रानी जैसी, और यदि आप लड़की हैं तो श्री कृष्ण जैसा प्यार मिले, और आपका प्रेम अधूरा न रहे, बल्कि पूर्ण और परिपूर्ण हो। जय श्री कृष्ण!!! राधे राधे!!!

Radha Krishna Serial Quotes In Hindi

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कृष्णा: “जब आप किसी की प्रशंसा करते हैं, तो सबसे पहले उस व्यक्ति का उत्साह बढ़ जाता है। एक बार जब यह माँ प्रसन्नता से भर जाए, तो फिर किसी की प्रशंसा करें या ना करें, कोई अंतर नहीं पड़ता।”

राधा: “सही कहा। इसलिए हमें हमेशा दूसरों की प्रशंसा करनी चाहिए। इससे वे जीवन में आगे बढ़ेंगे, और यह जीवन हमें कभी पीछे नहीं रहने देगा।”

कृष्णा: “हम सभी ने दर्पण देखा है और अपना प्रतिबिंब देखा है। यही जीवन का सत्य है। यदि हम अपनी राह पर चलते हैं, तो हम न केवल अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनते हैं।”

राधा: “क्या आप बनना चाहेंगे ऐसा व्यक्ति, जो चैन का पन और जीवन के अभिन्न हिस्से को समझता है?”

कृष्णा: “हम सब कुछ पाते हैं, कुछ कोट भी, कुछ अधूरे लक्ष्य भी। लेकिन हमें उन बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, जो हमने खोई हैं। जो आपके पास है, उसी की गिनती कीजिए।”

राधा: “बिल्कुल। हमें वर्तमान में जीना चाहिए। हमें अपने विचारों का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि वही विचार सत्य रूपी पौधे को जन्म देते हैं।”

कृष्णा: “यदि सोच बड़ी हो, तो वह समाधान भी दे सकती है। लेकिन जीवन जीने की कला को समझना सबके लिए आसान नहीं है।”

राधा: “जहाँ देखा जाता है, उसे पवित्र माना जाता है। मृत्यु सभी को आनी है, लेकिन जीवन जीना महत्वपूर्ण है।”

कृष्णा: “हमारा नाम आरंभ तो होता है, लेकिन क्या केवल नाम से सब कुछ ठीक हो जाता है? हमें अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।”

राधा: “जब हम कर्म करते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं, तो हमें प्रशंसा की आवश्यकता होती है। लेकिन जब हमें प्रशंसा नहीं मिलती, तो हमें दुख होता है।”

कृष्णा: “इसीलिए इस विचार को त्याग दो। पुष्प को अपनी सुगंध के लिए प्रशंसा की आवश्यकता नहीं होती। आपको भी शुभ भाव के साथ कर्म करते जाना चाहिए।”

राधा: “सच में। कर्म ही आपकी पहचान हैं। इस माँ को सदैव शांति रखिए, साफ रखिए।”

Radha Krishna Serial Motivational Quotes In Hindi | राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी | Jeevan Ka Satya

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राधा: “कृष्णा, संसार में ऐसा कोई पर्वत नहीं है जो इतना ऊँचा हो कि मनुष्य उसके शिखर तक पहुँचने की कोशिश न करे। और देखते ही देखते, वह महानदी गंगा में परिवर्तित हो जाता है। कई बार मनुष्य अतीत को देखकर आज अहंकार में भर जाता है, और कभी वर्तमान को देखकर भविष्य के विषय में सोचता है। इस चक्र में वह मध्य में चर जाता है। क्यों नहीं समझ पाता कि यह सृष्टि एक चक्र है? कठिन से कठिन परीक्षाओं में आपको उतारने के लिए है, लेकिन आपको उत्तरण होना ही है। जो कल था, वो आज नहीं है। सभी को याद दिलाते हैं कि जो आज है, वह कदाचित कल नहीं होगा।”

कृष्णा: “बिल्कुल, राधा। इसे संतुलन मिला है। सभी पवित्र हो जाएंगे। स्थिति चाहे जो भी हो, वह लोग जिन्होंने ऐसे समय पर आपका त्याग किया, उनसे क्रोध से बाहर आकर अंत में आप और शक्तिशाली हो जाते हैं। यही तो आपके विषय में है। किसी के लिए कर्मों की इच्छा का कारण यह है कि मनुष्य सोचता है, ‘मेरे पास कुछ धन आ जाए तो मैं कुछ कर दिखाऊँ।’ लेकिन सोचता है कि वह कुछ कर दिखाए, इसलिए श्रेष्ठ कर्म कीजिए। धन स्वयं आपके पीछे भागेगा।”

राधा: “यदि आप धन के पीछे भागेंगे, तो आप अपना संतोष खो देंगे। यही धन आपके पीछे भागने का काम करता है। इसलिए कर्म कीजिए। क्या यह जीवन केवल कुछ पन है? यह जीवन कुछ खून आया है, जहाँ हमें परमात्मा के पीछे जाना है। एक शांत जल की भांति, एक दर्पण की बातें।”

कृष्णा: “दर्पण क्या करता है? जो आप करते हैं, आप मुस्कुराकर दर्पण में देखें। यह मत सोचिए कि इस जीवन में आपको क्या दिया है। सोचना यह है कि आपने इस जीवन को क्या दिया है। इस जीवन को सुख देते हैं, आनंद देते हैं, प्रेम देते हैं। जीवन भी आपको सुख, आनंद और प्रेम ही देगा।”

राधा: “यह जीवन जो ईश्वर ने हमें पृथ्वी पर जीने के लिए दिया है, सुधार सकता है। जीवन व्यतीत करने के लिए हमें प्रश्नों के उत्तर खोजना और शास्त्र समझना जरूरी है। लेकिन कई लोग फिर भी समझ नहीं पाते। चलिए, आज मैं आपको एक सरल सी बात बताती हूँ। जैसे आप इस जीवन को सुधार सकते हैं।”

कृष्णा: “जीव और जीवन दोनों की एक ही राशि है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से शत्रुता कर बैठता है। दो धनिष्ठा मित्र एक समय पर एक दूसरे के परम शत्रु बन सकते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन प्रमुख कारण है आलोचना।”

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राधा: “जी हाँ, यदि आप किसी के विषय में आलोचना करते हैं, तो हो सकता है। यह कैसे संभव है? आलोचना आवश्यक है। यदि मैं अपने मित्र के बुरे कर्मों के विषय में आलोचना नहीं करूंगा, तो वह कैसे सुधरेगा? आलोचना अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक स्थान पर होनी चाहिए।”

कृष्णा: “सभी को अच्छा लगता है। अगर आप किसी को सुधारना चाहते हैं और आपको लगता है कि आलोचना आवश्यक है, तो सर्वप्रथम समय, स्थिति और स्थान पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण है।”

Radha Krishna Serial Love Quotes In Hindi राधा कृष्ण | कृष्ण वाणी | Ye Srishti Ek Chakr Hai

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कृष्ण: “कृष्णा, क्या आपके जीवन में भी समस्याएं हैं? अवश्य ही होंगी। हर एक के जीवन में समस्याएं होती हैं। हर एक मनुष्य पूछता भी होगा, ये समस्याएं क्या हैं और क्यों आती हैं? जीवन आपको एक बात बता देता हूँ: ये समस्याएं वो नहीं होतीं जो आपके मार्ग को रोकती हैं, बल्कि समस्याएं वो होती हैं जो आपको तब दिखने लगती हैं जब आपका ध्यान आपके मार्ग से, आपके लक्ष्य से हटने लगता है।”

राधा: “तो इन समस्याओं को दूर करने का एक ही साधन है। अपना सारा ध्यान पुनः एकाग्र कीजिए, अपने मार्ग पर, अपने लक्ष्य पर। आपका सारा ध्यान यदि केंद्रित होगा, तो ये समस्याएं दूर होंगी। यदि आपका ध्यान थोड़ा भी भटक गया, तो ये सारी समस्याएं दिखने लगेंगी और बढ़ने भी लगेंगी।”

कृष्ण: “जहाँ आपका निशाना है, बाण तो वही चलाना है। दृष्टि भी तो वही होनी चाहिए। तभी तो आप उस लक्ष्य को भेद पाएंगे। इसलिए स्मरण रखिए, सदैव ध्यान रखिए अपने मार्ग पर, उसी पर आगे बढ़ते जाइए। जैसे-जैसे आप आगे बढ़ेंगे, समस्याएं स्वयं पीछे छूट जाएंगी।”

राधा: “पंछी बड़े प्यारे होते हैं। आपने कभी सुना होगा कि कुछ ऐसे भी पंछी होते हैं जिनके पास पंख तो होते हैं, पर वे उड़ नहीं पाते। वे चाहते हैं कि आकाश की ऊँचाइयों में जाकर बादलों से बातें करें, पर नहीं कर पाते।”

कृष्ण: “अब इस संसार में होती हैं पतंगें। इनमें ना जीव है, ना प्राण, ना ही पंख, और ये अंबर से बातें करती हैं। पवन के वेग के साथ खेलती हैं, मचलती हैं, अंबर में जीवन के कुछ पल व्यतीत करती हैं। कारण क्या है? कारण है डोर। यदि डोर उचित व्यक्ति के हाथों में हो, तो एक कागज की बनी पतंग भी आसमान की ऊँचाइयों में तैर सकती है।”

राधा: “अब ये डोर क्या है? डोर होती है प्रेम की, डोर होती है विश्वास की। ये आप देते हैं उनके हाथों में, जिन पर आप विश्वास करते हैं, जिन्हें आप अपना सर्वस्व मानते हैं। सोचिए, यदि आपने प्रेम और विश्वास की डोर उचित व्यक्ति के हाथों में दे दी, तो आप कितनी ऊँची उड़ान भर सकते हैं।”

कृष्ण: “आसमान की ऊँचाई तक पहुंच सकते हैं, बादलों से बातें कर सकते हैं, पंछियों के बीच उड़ सकते हैं। बस, ये व्यक्ति उचित होना चाहिए। एक ऐसा व्यक्ति, जिसके मन में आपके प्रति प्रेम हो। एक ऐसा व्यक्ति, जिसके मन में स्वार्थ न हो, परमार्थ हो।”

राधा: “अब यह रोगों की बात करें। ऐसा कौन सा व्यक्ति है इस संसार में, जिसे रोग नहीं हो? हर एक व्यक्ति कभी न कभी इस रोग के सामने आया ही है। यह शरीर रोग से ग्रस्त हुआ ही है। रोग आते हैं, ये जाते हैं, किंतु क्यों ये हमें सताते हैं? कारण है स्वच्छता।”

कृष्ण: “स्वच्छता सिर्फ तन में नहीं, बल्कि मन में भी होनी चाहिए। यदि स्वच्छता मन में न हो, तो व्यक्ति चारित्रिक रूप से पीड़ा सहता है। इसका निवारण क्या है? यह बड़ा ही सरल है। यदि रोग तन में है, तो सर्वप्रथम स्वच्छता रखें।”

राधा: “शारीरिक रूप से पीड़ा सहे। अब यदि यह रोग मन में हो, तो क्या करें? सर्वप्रथम अपने आधार पर ध्यान दें। आपका आधार है आपका आहार। जो आप खाएँगे, वही आप बनेंगे। उसी प्रकार, जो आप सोचते हैं, वही आप बनते हैं। इसलिए इस सोच को सकारात्मक बनाएँ। अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाएँ।”

कृष्ण: “सर्व कुछ ठीक होगा। आपके, मेरे, हर एक के भीतर एक राक्षस रहता है। उसका सामना करें, उसे परास्त करें। यदि यह रोग तन का हो या मन का, यदि उचित समय पर इसे न रोका गया, तो अनुचित समय पर यह महामारी बन सकता है। इसलिए सावधान रहें।”

राधा: “स्वास्थ्य, भगवान और भूख, तीनों एक ही अक्षर से आरंभ होते हैं। अब आप कहेंगे, भगवान और भूख में क्या समानता हो सकती है? बहुत बड़ी समानता है। ना केवल ये एक अक्षर से आरंभ होते हैं, बल्कि इनका विजय मंत्र भी एक ही है।”

कृष्ण: “भगवान को मानो, उन पर विश्वास करो, उन्हें स्वीकार करो। ये करोगे तो मन की दृष्टि से भगवान देखे जाएंगे और वह आपको संपन्न कर देंगे। यही भूलों के साथ भी है। अपनी स्वयं की भूलों को मानो, स्वीकार करो। सब कुछ अपने आप ही स्पष्ट रूप से दिखने लगता है।”

राधा: “जिस दिन आप अपनी भूल स्वीकार करना सीख जाते हैं, उसी दिन से प्रक्रिया आरंभ होती है। अपनी भूलों को स्वीकार करना आवश्यक है। इस जीवन में शांति लाने के लिए ईश्वर को स्वीकार करना आवश्यक है।”

कृष्ण: “आपके गुण और अपने दोष स्मरण रखिए। आजीवन सुखी रहोगे। हम सदैव चाहते हैं कि यह संसार हमें ज्ञानी, बुद्धिमान और समझदार कहे, किंतु मूर्ख इस शब्द से सभी कतराते हैं।”

राधा: “मूर्ख बनने का पहला कदम होता है। आप बड़े से बड़े ज्ञानी के साथ बैठ जाइए, कितनी भी बातें कर लीजिए। अनुभव मूर्ख बनने के पश्चात ही प्राप्त होता है। मूर्ख बनने के पश्चात आपको समझ में आता है कि क्या नहीं करना चाहिए।”

कृष्ण: “ज्ञानी आपको यह बताते हैं कि क्या करना चाहिए, और इस संसार में क्या करना चाहिए, उससे कहीं बड़ा ज्ञान होता है कि क्या नहीं करना चाहिए। इसलिए सदैव स्मरण रखिएगा, यदि आपसे कुछ भूलें होती हैं, तो आपको मूर्ख बनाती हैं, या आपके साथ छल-कपट करती हैं, तो कोई बात नहीं।”

राधा: “यह अंत में आपको और बुद्धिमान ही बनाएगा। इस समय सकारात्मक रहें। यह संसार आपको ज्ञान अवश्य कहेगा।”

कृष्ण: “राधे राधे, राधा कृष्ण, कृष्ण कृष्ण।”

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कृष्ण: “यदि मन रूपी पत्र को समय रूपी कुम्हार ने उचित रूप से भिगोया नहीं, तो वह सुप्रीम में नहीं ठहर सकता।”

राधा: “देखिए, मेरे आस-पास यह वृक्ष हैं। जब प्रेम की बात आती है, लोग किसी का मोक्षमारण कर लेते हैं। वैसी आँखें और वैसी मुस्कान नहीं, यह सिर्फ शरीर का अस्तित्व है जिसे हमने देखा और स्वीकार कर लिया। लेकिन प्रेम तो भिन्न है। प्रेम वायु की भांति है, जो हमें दिखाई नहीं देता, किंतु वही हमें जीवन देता है।”

कृष्ण: “संसार किसी स्त्री को कुरूप कह सकता है, लेकिन सबसे सुंदर वही समझेगा जो भाव से जुड़े। इसलिए, यदि प्रेम को समझना है, तो मन की आँखें रस्सी की तरह होनी चाहिए। लेकिन इस रस्सी को बंधन की शक्ति कौन देता है? प्रेम बनता है विश्वास से, और विश्वास की डोरी सत्य के धागे से।”

राधा: “अब प्रश्न यह उठता है कि सत्य क्या है? हमने जिसे देखा नहीं, लेकिन जिस पर विश्वास कर लिया। विश्वास वही है जिसे हमने सत्य समझ लिया। वास्तविकता में, सत्य और विश्वास दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जहाँ सत्य नहीं है, वहाँ विश्वास की नींद नहीं। और जहाँ विश्वास नहीं है, वहाँ सत्य अपना धरातल खो देता है।”

कृष्ण: “प्रेम का धरातल बन जाएगा। हम सबसे पहले अपने मन में प्रेम को कर लेते हैं। क्या प्रेम केवल नायक-नायिका के आकर्षण का बंधन है? नहीं, प्रेम तो परिवार से, माता-पिता, भाई-बहन, सखा, मित्रों, मानवता, किसी कला और इस प्रकृति के लिए भी हो सकता है।”

राधा: “प्रेम को पाना है, तो मन को खाली करना होगा। अपनी इच्छाएं, अपना सुख सब त्यागकर समर्पण करना होगा। अपने मन से व्यापार हटा दो, तभी प्यार मिलेगा।”

कृष्ण: “प्रेम विधाता की सबसे सुंदर कृति है। परंतु हर कृति को संभालना पड़ता है। केवल देने से प्रेम नहीं हो जाता, इसके लिए आपको अपने कर्तव्यों को पूर्ण करना होगा। देश की रक्षा, परिवार और संबंधियों की सुरक्षा, संतान को संस्कार देना, और जीवनसाथी का आभार।”

राधा: “यदि आप प्रेम से दूर होते जाओगे, तो कर्तव्य की अंजलि बनानी होगी। प्रेम संसार का सबसे पवित्र बंधन है, लेकिन सच पूछो, तो यह बंधन से मुक्ति नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता है।”

कृष्ण: “यदि कोई आपका प्रेम ठुकरा दे या समझ ही न पाए, तो क्या हो गया? प्रेम पर अधिकार करना चाहिए, लेकिन यह आवश्यक नहीं कि जिससे आप प्रेम करते हैं, वह भी आपसे प्रेम करे। प्रेम वो शक्ति है जो आपके लिए हर बंधन तोड़ सकती है।”

राधा: “यदि प्रेम सच्चा होगा, तो वह अवश्य समझेगा। भाव से प्रेम कीजिए, स्वर से जाएगा। मनुष्य वास्तविकता में अपने भाई को अपने साथ लेकर ही जन्म लेता है। यह भाई तब बुरा हो जाता है, जब आप इसे अपने ऊपर हावी होने देते हैं।”

कृष्ण: “आपको स्वयं इस भाई के ऊपर हावी हो जाना होगा। तोड़ दीजिए भाई की सीमाएं। आत्मा को छोड़कर किसी और के समक्ष जाने से डरना छोड़ दें, तभी दीपक बनकर प्रकाश दे पाएंगे।”

राधा: “मनुष्य का स्वभाव है कामना संग्रह करना, फिर चाहे वह धन हो, नाते-रिश्ते हों या प्रसन्नता। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि नियति ने यह संग्रह करने की प्रकृति मनुष्य को क्यों दी? भोजन से फल संग्रहित होता है, ताकि वह भूखे जीवन में बांट सके।”

कृष्ण: “अब आप पूछेंगे कि इसमें वृक्ष का क्या लाभ है। वह मिटाता नहीं, उसकी जाती का गुड़ अमीर होने पर, किंतु अमर बनने के लिए बांटना पड़ता है। संसार में सबसे बड़ी शक्ति है प्रेम। यह अधूरे संसार में सबसे बड़ी शक्ति बनकर सहारा दे सकता है।”

राधा: “यदि आप मार्ग भटक जाएं, तो मित्रता शास्त्र बनकर आपको राह दिखाएगी। शत्द्रष्ट में फंस जाएं, तो बुद्धि बनकर बाहर निकालेगी। अकेले हो जाएं, तो ममता बनकर साथ निभाएगी। इस संसार में कुछ कामना है, तो मित्रता को सहेजें।”

कृष्ण: “जब से मनुष्य जाति का अस्तित्व बना है, तभी से युद्ध भी अस्तित्व में आया है। यदि आपको आगे बढ़ाना है, तो युद्ध करना होगा। सबसे सफल युद्ध वही होता है जो कभी लड़ा ही नहीं जाता।”

राधा: “आप युद्ध में विजय प्राप्त करके स्वयं का मान तो बढ़ा लें, किंतु अपने बाल खो दें। इसलिए जहां तक मन बड़े संपूर्ण शरीर की इच्छा सरकार करने के लिए प्रयास करता रहता है।”

कृष्ण: “अब यदि मन कुछ खाने का करें, तो व्यक्ति हम ढूंढता रहता है। लेकिन यदि मन किसी को शत्रु समझ ले, तो व्यक्ति उसे नष्ट करने का प्रयास करता है। और यदि मन किसी से प्रेम करें, तो उसकी प्रसन्नता के लिए हर सीमा पार कर जाता है।”

राधा: “लेकिन जीवन सुखद हो इसके लिए आवश्यक है कि मन खाली हो। इस बांसुरी पर स्वर्ग निकलता है, इसी प्रकार मन को भी भावनाओं से मुक्त रखना आवश्यक है। यदि मन में कुछ भर के जिएंगे, तो मन भर के जी नहीं पाएंगे।”

कृष्ण: “इसका कारण क्या है? मेरा रूप सुंदर है, किंतु यह स्थिर नहीं है। शांत नहीं है। इसी कारण मैं अपना प्रतिबिंब इसमें नहीं देख पा रहा। क्रोध के साथ भी यही होता है। यदि आप स्थिर हैं, शांत हैं, तो अपनी आत्मा को देख और समझ पाएंगे।”

राधा: “लेकिन क्रोध अंत तक ले जाता है। एक पिता के लिए उसकी संतान गर्व है, अहंकार है। बिना कहे पिता संतान की हर इच्छा समझ जाता है और उसे पूरी करने की चेष्टा करता है। दूसरी ओर, संतान सदैव प्रयास करती है कि अपने माता-पिता को गर्वित करे।”

कृष्ण: “यह बंधन एक स्थान पर आकर टूट जाता है। तब जब संतान स्वयं की इच्छा से अपना जीवन साथी चुनना चाहती है। कारण है संवाद की कमी। माता-पिता सोचते हैं कि इसमें संतान से क्या पूछना, और संतान का मानना होता है कि उसका भविष्य चुनना उसका अधिकार है।”

राधा: “दोनों आपस में दुखी रहते हैं। होना यह चाहिए कि माता-पिता को उसी स्नेह के साथ संतान की इच्छा समझ लेनी चाहिए और संतान को उसी विश्वास के साथ माता-पिता को विश्वास में ले लेना चाहिए। एक बार संवाद करके देखिए, वर्तमान और भविष्य दोनों ठीक हो जाएंगे।”

कृष्ण: “हमने ऐसा कोई नहीं देखा, जिसने वर्षों को न देखा हो। इन पक्षियों को, जो अपने छोटे-छोटे बच्चों को भोजन करते हैं। चिड़िया दूर से अपने सोच में दाना भरकर लाती है, स्वयं भोजन करने में संतान की सोच में डालती है।”

राधा: “संसार का सबसे महत्वपूर्ण दृश्य यही है। जब संतान के पंख निकल आते हैं, तो वह पक्षी उसे स्वतंत्र कर देती है। लेकिन हम मनुष्य क्या करते हैं? जिस संतान को हम पंछी की भांति पालते हैं, उसके पंख निकलते ही हम उसे बंद कर देते हैं।”

कृष्ण: “इस सोच के पीछे माता-पिता का प्रेम है, किंतु इसमें प्रेम पर मोह भारी पड़ जाता है। यह मोह स्वयं अपने और संतान के भविष्य के बीच में बढ़ा बन जाता है। हम यह भूल जाते हैं कि हम केवल जन्मदाता हैं, भाग्य विधाता नहीं।”

राधा: “तो जब प्रेम में मोह आ जाए, तो वह प्रेम नहीं, स्वार्थ बन जाता है। इसलिए प्रेम को पास रखिए और मोह को दूर। क्योंकि जिससे प्रेम करते हैं, उसका विकास नहीं रोका करते।”

कृष्ण: “राधे राधे।”

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Conclusion

राधा और कृष्ण का प्रेम सदियों से मानवता को प्रेरित करता आया है। यह प्रेम न केवल एक संबंध है, बल्कि यह जीवन की गहराइयों को समझने का माध्यम भी है। इनकी कहानी हमें सिखाती है कि प्रेम केवल भौतिक मिलने का नाम नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जहां आत्मा की गहराई में जाकर हम पूर्णता की ओर बढ़ते हैं। जब हम राधा-कृष्ण के प्रेम को अपने जीवन में उतारते हैं, तो हम सच्चे प्रेम का अनुभव करते हैं। उम्मीद है कि Radha Krishna motivational quotes in Hindi के माध्यम से आपको प्रेम का सही अर्थ समझने में मदद मिली होगी।

FAQs

राधा और कृष्ण का प्रेम क्या दर्शाता है?

राधा और कृष्ण का प्रेम भक्ति, समर्पण और आत्मा की गहराई का प्रतीक है। यह प्रेम न केवल शारीरिक जुड़ाव का है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक बंधन भी है।

क्या राधा और कृष्ण का प्रेम अधूरा है?

जी हां, राधा और कृष्ण का प्रेम अधूरा माना जाता है, क्योंकि वे शारीरिक रूप से कभी एक नहीं हो सके। लेकिन उनका प्रेम इतना गहरा है कि वह सम्पूर्णता की मिसाल है।

राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी से हमें क्या सीखने को मिलता है?

इस प्रेम कहानी से हमें सिखने को मिलता है कि सच्चा प्रेम निस्वार्थ होता है, और यह आत्मा की गहराइयों को छूता है। प्रेम का असली अर्थ भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि एक-दूसरे के प्रति सच्चे समर्पण में है।

क्या राधा-कृष्ण के प्रेम का कोई धार्मिक महत्व है?

जी हां, राधा-कृष्ण का प्रेम हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है। इसे भक्ति आंदोलन का आधार माना जाता है और यह भक्तों के लिए एक आदर्श उदाहरण है।

क्या राधा और कृष्ण का प्रेम आज के युग में प्रासंगिक है?

बिल्कुल। राधा और कृष्ण का प्रेम आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह हमें सिखाता है कि सच्चे प्रेम में समर्पण और विश्वास कितना महत्वपूर्ण है। यह प्रेम हमें जटिलताओं से ऊपर उठकर जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देता है।

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