Bhagwat Geeta Chapter 1 All 47 Shloka Explain In Hindi And English

byRuchika Pandey

Bhagwat Geeta

नमस्ते, प्रिय पाठकों

भगवद गीता के पहले अध्याय के श्लोक 1 से 47 तक में हम देखते हैं कि अर्जुन कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में खड़े होकर अपने परिवार, गुरुजनों और मित्रों को युद्ध के लिए तैयार देखता है। यह दृश्य देखकर अर्जुन का मन विचलित हो जाता है। वह युद्ध में अपने प्रियजनों को मारे जाने की कल्पना करके बहुत दुखी और असमर्थ महसूस करता है। इस दौरान अर्जुन अपने मन में उठ रहे संदेहों और द्वंद्व को श्रीकृष्ण से साझा करता है। अर्जुन के दिल में यह सवाल उठता है कि क्या इस युद्ध से कोई सही उद्देश्य हासिल होगा, जब इसके परिणामस्वरूप अपने ही लोग मर जाएंगे।

इन श्लोकों में अर्जुन की मानसिक स्थिति और संघर्ष का गहराई से वर्णन किया गया है। इस भाग में हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन में कठिन परिस्थितियों में हमें अपनी भावनाओं और संदेहों को समझने के बाद सही निर्णय लेने की जरूरत होती है। श्रीकृष्ण अर्जुन को सही मार्ग दिखाने के लिए तैयार हैं।

Bhagwat Geeta| भगवत गीता अध्याय 1 के श्लोक 1-10 हिंदी में

Popular Bhagwat Geeta Shlok With Meaning In Hindi

श्लोक 1

धृतराष्ट्र उवाच |
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः |
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय || 1.1 ||

अर्थ:
धृतराष्ट्र बोले: हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्र हुए मेरे पुत्र और पांडु के पुत्र, जो युद्ध की इच्छा रखते हैं, उन्होंने क्या किया?

व्याख्या:
इस श्लोक में धृतराष्ट्र ने संजय से कुरुक्षेत्र के युद्ध का वर्णन पूछते हुए अपनी चिंता और पक्षपात प्रकट किया है। वह अपने पुत्रों के प्रति विशेष लगाव रखते हैं और उनकी जीत की संभावना के बारे में चिंतित हैं। “धर्मक्षेत्र” का उल्लेख इस युद्ध के नैतिक और धार्मिक महत्व को दर्शाता है।

Explanation in Hindi:
धृतराष्ट्र इस श्लोक में संजय से पूछते हैं कि धर्मक्षेत्र, अर्थात् पवित्र कुरुक्षेत्र के मैदान में, उनके पुत्र (कौरव) और उनके भाई पांडु के पुत्र (पांडव), जो युद्ध के लिए तैयार हैं, ने क्या किया। यह प्रश्न न केवल उनकी जिज्ञासा, बल्कि उनकी मानसिक स्थिति को भी दर्शाता है, जिसमें वह अपने पुत्रों की सुरक्षा और जीत को लेकर चिंतित हैं।

Explanation in English:
In this verse, Dhritarashtra asks Sanjaya what his sons (Kauravas) and the sons of Pandu (Pandavas), assembled on the holy battlefield of Kurukshetra with the intent to fight, did. This question reflects not only his curiosity but also his emotional state, which is filled with anxiety about the outcome and his partiality towards his sons.

श्लोक 2

सञ्जय उवाच |
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा |
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् || 1.2 ||

अर्थ:
संजय ने कहा: तब, जब दुर्योधन ने पांडवों की सेना को युद्ध के लिए तैयार देखा, तो वह अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास गया और उनसे कुछ कहने लगा।

व्याख्या:
इस श्लोक में संजय बताते हैं कि दुर्योधन ने पांडवों की सेना की संरचना को देखा और तुरंत अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास गया। इसका उद्देश्य युद्ध की रणनीति पर चर्चा करना और अपनी चिंताओं को साझा करना था। दुर्योधन की यह प्रतिक्रिया उसकी मानसिक अस्थिरता और कूटनीति के प्रति सजगता को दर्शाती है।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में दुर्योधन के व्यक्तित्व का एक पक्ष सामने आता है। जब उसने पांडवों की सेना को अच्छी तरह संगठित देखा, तो वह घबराया और अपने गुरु द्रोणाचार्य से परामर्श लेने गया। यह उसकी चतुराई और नेतृत्व कौशल का प्रतीक है, लेकिन साथ ही उसकी असुरक्षा और भय भी प्रकट करता है।

Explanation in English:
In this verse, Sanjaya narrates that Duryodhana, upon observing the well-arranged military formation of the Pandavas, approached his teacher Dronacharya to speak. This highlights Duryodhana’s strategic thinking and leadership, while also revealing his inner insecurity and fear regarding the strength of the opposing side. Bhagwat Geeta

श्लोक 3

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् |
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता || 1.3 ||

अर्थ:
दुर्योधन ने कहा: हे आचार्य! इस महान पांडव सेना को देखो, जिसे तुम्हारे बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र (धृष्टद्युम्न) ने व्यवस्थित किया है।

व्याख्या:
दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य को पांडवों की सेना दिखाते हुए इस बात की ओर इशारा करता है कि इसे उनके ही शिष्य, धृष्टद्युम्न ने व्यवस्थित किया है। यह बात दुर्योधन के भीतर द्रोणाचार्य की निष्ठा को लेकर एक प्रकार का असंतोष और व्यंग्य प्रकट करती है।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को पांडवों की सेना का उल्लेख करते हुए कहा कि इसे उनके ही शिष्य धृष्टद्युम्न ने संगठित किया है। दुर्योधन का यह कथन उनकी चिंता के साथ-साथ द्रोणाचार्य की निष्ठा पर सवाल करने का संकेत भी है।

Explanation in English:
In this verse, Duryodhana points out to Dronacharya the well-arranged Pandava army, organized by his own intelligent disciple, Dhrishtadyumna. Duryodhana subtly hints at his dissatisfaction and possibly questions Dronacharya’s loyalty, as the Pandava commander was once his pupil.

श्लोक 4

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि |
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः || 1.4 ||

अर्थ:
यहां इस सेना में भीम और अर्जुन के समान महान धनुर्धारी वीर उपस्थित हैं, जैसे युयुधान (सात्यकि), विराट और महारथी द्रुपद।

व्याख्या:
दुर्योधन पांडव सेना की ताकत को रेखांकित करते हुए उनके प्रमुख योद्धाओं का वर्णन करता है। वह बताता है कि इनमें भीम और अर्जुन के समान शक्तिशाली योद्धा हैं, जो युद्ध में अद्वितीय हैं। इस श्लोक में पांडव पक्ष के बल की प्रशंसा के पीछे दुर्योधन का भय छिपा हुआ है।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में दुर्योधन ने पांडवों की सेना में मौजूद प्रमुख योद्धाओं का उल्लेख किया है, जो भीम और अर्जुन के समान पराक्रमी हैं। यह दिखाता है कि दुर्योधन को पांडव पक्ष की शक्ति का आभास है और वह उनकी सेना की क्षमता को स्वीकार करता है।

Explanation in English:
In this verse, Duryodhana highlights the strength of the Pandava army by naming its key warriors, who are as powerful as Bhima and Arjuna. This acknowledgment reflects his awareness of the Pandava side’s capabilities and hints at his underlying anxiety about the forthcoming battle. Bhagwat Geeta

श्लोक 5

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् |
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः || 1.5 ||

अर्थ:
इस सेना में धृष्टकेतु, चेकितान, पराक्रमी काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और श्रेष्ठ योद्धा शैब्य भी सम्मिलित हैं।

व्याख्या:
दुर्योधन पांडव सेना के अन्य वीरों का उल्लेख करता है, जो युद्ध में अपनी अद्वितीय क्षमता और कौशल के लिए प्रसिद्ध हैं। यह दिखाता है कि दुर्योधन पांडव पक्ष की ताकत को गंभीरता से ले रहा है।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में दुर्योधन पांडव सेना के अन्य महत्वपूर्ण योद्धाओं का वर्णन करता है। यह उसकी चिंताओं और पांडव पक्ष की शक्ति को समझने का संकेत है।

Explanation in English:
In this verse, Duryodhana mentions other prominent warriors in the Pandava army, emphasizing their prowess and valor. This shows that he is taking the strength of the Pandava side seriously.

श्लोक 6

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् |
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः || 1.6 ||

अर्थ:
इस सेना में विक्रमी युधामन्यु, पराक्रमी उत्तमौजा, अभिमन्यु (सौभद्र), और द्रौपदी के पुत्र भी शामिल हैं। ये सभी महारथी हैं।

व्याख्या:
दुर्योधन पांडव सेना के अन्य योद्धाओं का वर्णन करता है। वह यह स्पष्ट करता है कि पांडव सेना में न केवल बड़े योद्धा, बल्कि नई पीढ़ी के वीर भी शामिल हैं। यह दुर्योधन के भीतर छिपे भय को उजागर करता है और युद्ध की कठिनाई का संकेत देता है।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में दुर्योधन ने युधामन्यु, उत्तमौजा, अभिमन्यु और द्रौपदी के पुत्रों का उल्लेख करते हुए पांडव सेना की विविधता और उनकी युद्ध शक्ति को स्वीकार किया है। यह दर्शाता है कि दुर्योधन इस सेना को हल्के में नहीं ले रहा।

Explanation in English:
In this verse, Duryodhana mentions other significant warriors from the Pandava side, including the young and valiant warriors like Abhimanyu and the sons of Draupadi. This highlights the diverse strength of the Pandava army and reflects Duryodhana’s apprehension about the upcoming battle.

श्लोक 7

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम |
नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते || 1.7 ||

अर्थ:
हे ब्राह्मणश्रेष्ठ (द्रोणाचार्य), अब हमारी ओर के विशिष्ट योद्धाओं को सुनो। मैं तुम्हें अपनी सेना के नायकों के बारे में बताता हूं।

व्याख्या:
दुर्योधन अब अपनी सेना के प्रमुख योद्धाओं का उल्लेख करने के लिए तैयार होता है। यह पांडवों की सेना का वर्णन करने के बाद अपनी सेना के प्रति आत्मविश्वास को दिखाने का प्रयास है। वह अपनी सेना की ताकत को द्रोणाचार्य के सामने प्रस्तुत करना चाहता है।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में दुर्योधन ने अपनी सेना के नायकों का उल्लेख करने की बात कही है। वह अपनी सेना की शक्ति और उनकी भूमिका को रेखांकित कर गुरु द्रोणाचार्य का ध्यान आकर्षित करना चाहता है।

Explanation in English:
In this verse, Duryodhana shifts focus to his own army, intending to highlight its key warriors. This attempt shows his confidence in the strength of his forces and aims to reassure Dronacharya about their preparation. Bhagwat Geeta

श्लोक 8

भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः |
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च || 1.8 ||

अर्थ:
आप (द्रोणाचार्य), भीष्म, कर्ण, युद्ध विजयी कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त ये सब प्रमुख योद्धा हैं।

व्याख्या:
दुर्योधन अपनी सेना के महान योद्धाओं का उल्लेख करता है, जो युद्ध में अपनी ताकत और कौशल के लिए प्रसिद्ध हैं। यह उनकी सेना की ताकत का प्रदर्शन है और इस बात को दर्शाता है कि वह अपने योद्धाओं पर गर्व करता है।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में दुर्योधन अपनी सेना के प्रमुख योद्धाओं जैसे भीष्म, कर्ण और कृपाचार्य का उल्लेख करता है। वह अपनी सेना की शक्ति को द्रोणाचार्य के सामने प्रस्तुत करता है ताकि उनका आत्मविश्वास बढ़ सके।

Explanation in English:
In this verse, Duryodhana lists the prominent warriors in his army, such as Bhishma, Karna, and Kripacharya. This highlights his pride in his forces and is intended to bolster Dronacharya’s confidence in their strength.

श्लोक 9

अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः |
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः || 1.9 ||

अर्थ:
इसके अलावा, कई अन्य वीर योद्धा हैं, जो मेरे लिए अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार हैं। वे विभिन्न प्रकार के शस्त्रों के प्रयोग में निपुण और युद्ध के विशेषज्ञ हैं।

व्याख्या:
दुर्योधन अपनी सेना की संख्या और विविधता पर जोर देते हुए बताता है कि उसके पास कई कुशल और समर्पित योद्धा हैं। वह अपनी सेना को संगठित और शक्तिशाली दिखाने का प्रयास कर रहा है।

Explanation in Hindi:
दुर्योधन इस श्लोक में अपनी सेना के अन्य सैनिकों का उल्लेख करता है, जो न केवल वीर हैं, बल्कि विभिन्न शस्त्रों के प्रयोग में माहिर और युद्ध कला में निपुण हैं। वह उनकी वफादारी और साहस पर भरोसा जताता है।

Explanation in English:
In this verse, Duryodhana emphasizes the size and diversity of his army, highlighting the many skilled and dedicated warriors ready to sacrifice their lives for his cause. This showcases his pride in the loyalty and expertise of his soldiers. Bhagwat Geeta

श्लोक 10

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् |
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् || 1.10 ||

अर्थ:
हमारी सेना, भीष्म द्वारा संरक्षित, अपरिमित और अजेय है; जबकि पांडवों की सेना, भीम द्वारा संरक्षित, सीमित है।

व्याख्या:
इस श्लोक में दुर्योधन अपनी सेना की शक्ति और भीष्म पर विश्वास व्यक्त करता है। वह अपनी सेना को असीमित और पांडवों की सेना को सीमित बताते हुए अपनी रणनीतिक बढ़त पर जोर देता है। हालांकि, यह भी संकेत करता है कि वह पांडव पक्ष को हल्के में नहीं ले रहा।

Explanation in Hindi:
दुर्योधन ने भीष्म के नेतृत्व में अपनी सेना को अजेय बताया है और पांडवों की सेना को भीम के नेतृत्व में कमजोर करार दिया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वह अपनी सेना की ताकत पर भरोसा जताने का प्रयास कर रहा है।

Explanation in English:
In this verse, Duryodhana expresses his confidence in his army, led by Bhishma, describing it as limitless and invincible. At the same time, he acknowledges the Pandava army, led by Bhima, as comparatively limited. This reflects his strategic emphasis on his perceived advantage. Bhagwat Geeta

Bhagwat Geeta| भगवत गीता अध्याय 1 के श्लोक 11-20 हिंदी में

11

श्लोक 11

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः |
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि || 1.11 ||

अर्थ:
आप सभी अपने-अपने स्थान पर तैनात रहें और सभी मिलकर भीष्म की सुरक्षा सुनिश्चित करें।

व्याख्या:
दुर्योधन अपनी सेना को संगठित करने के लिए यह आदेश देता है कि सभी योद्धा अपनी-अपनी जगह पर रहें और भीष्म की रक्षा करें। वह जानते हैं कि भीष्म उनकी सेना के प्रमुख योद्धा और प्रेरणा स्रोत हैं।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में दुर्योधन अपनी सेना को निर्देश देता है कि वे संगठित रहें और भीष्म को किसी भी प्रकार की हानि से बचाएं, क्योंकि भीष्म उनके पक्ष की सबसे बड़ी ताकत हैं।

Explanation in English:
In this verse, Duryodhana instructs his army to stay stationed in their respective positions and protect Bhishma at all costs, recognizing Bhishma as the key strength and moral support of his side. Bhagwat Geeta

श्लोक 12

तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः |
सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान् || 1.12 ||

अर्थ:
उस समय, कौरवों के वयोवृद्ध पितामह भीष्म ने दुर्योधन को उत्साहित करते हुए जोरदार सिंहनाद किया और अपना शंख बजाया।

व्याख्या:
भीष्म ने दुर्योधन को प्रोत्साहित करने के लिए शंखनाद किया, जो युद्ध की शुरुआत का प्रतीक है। उनका सिंहनाद सेना के मनोबल को बढ़ाने और कौरव पक्ष को संगठित करने का कार्य करता है।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में भीष्म ने अपने शंख की ध्वनि से युद्ध का उद्घाटन किया। उनका शंखनाद दुर्योधन और कौरव सेना को प्रेरित करने और उनका साहस बढ़ाने का संकेत है।

Explanation in English:
In this verse, Bhishma blows his conch, producing a loud lion-like roar to signal the start of the battle. This act was meant to boost Duryodhana’s morale and energize the Kaurava army.

श्लोक 13

ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः |
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् || 1.13 ||

अर्थ:
इसके बाद, शंख, नगाड़े, ढोल, और बिगुल एक साथ बजने लगे, जिससे एक गगनभेदी ध्वनि उत्पन्न हुई।

व्याख्या:
इस श्लोक में कौरव सेना की युद्ध तैयारियों का वर्णन है। विभिन्न वाद्ययंत्रों की ध्वनि से युद्ध का माहौल और सेना का जोश प्रदर्शित होता है। यह कौरव पक्ष की शक्ति और उनकी युद्ध भावना का प्रतीक है।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में कौरव सेना की भव्यता और उनके वाद्ययंत्रों की जोरदार ध्वनि का वर्णन किया गया है, जो युद्ध के लिए उनके उत्साह और तत्परता को दर्शाता है।

Explanation in English:
This verse describes the grandeur of the Kaurava army as conches, drums, cymbals, and other instruments are played simultaneously, creating a deafening sound. This signifies the enthusiasm and readiness of the Kaurava forces for battle. Bhagwat Geeta

श्लोक 14

ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ |
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः || 1.14 ||

अर्थ:
उसके बाद, सफेद घोड़ों से जुते भव्य रथ पर खड़े भगवान श्रीकृष्ण (माधव) और अर्जुन (पार्थ) ने अपने दिव्य शंख बजाए।

व्याख्या:
इस श्लोक में श्रीकृष्ण और अर्जुन के दिव्य शंखनाद का वर्णन है, जो पांडव सेना का आत्मविश्वास और उनके धर्म के प्रति संकल्प को दर्शाता है। यह युद्ध की शुरुआत का एक पवित्र संकेत भी है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण और अर्जुन का शंखनाद उनके अद्वितीय व्यक्तित्व और पांडव सेना के दृढ़ संकल्प को प्रदर्शित करता है। सफेद घोड़ों से जुता रथ उनकी दिव्यता और शुभता को दर्शाता है।

Explanation in English:
This verse describes the divine conches blown by Lord Krishna (Madhava) and Arjuna (Partha) as they stood on their grand chariot yoked with white horses. Their act symbolizes the Pandavas’ confidence and righteous resolve in the battle. Bhagwat Geeta

श्लोक 15

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः |
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः || 1.15 ||

अर्थ:
हृषीकेश (श्रीकृष्ण) ने पाञ्चजन्य शंख बजाया, धनंजय (अर्जुन) ने देवदत्त और भीमकर्मा (भीम) ने महान शंख पौण्ड्र बजाया।

व्याख्या:
शंखनाद के माध्यम से पांडव पक्ष की ताकत और वीरता का प्रदर्शन होता है। हर योद्धा का शंख उनके विशेष गुणों और भूमिका का प्रतीक है। भीम का पौण्ड्र शंख उसकी प्रचंडता को दर्शाता है।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में पांडव सेना के मुख्य योद्धाओं द्वारा बजाए गए शंखों का वर्णन है, जो उनकी अलग-अलग विशेषताओं और उनके युद्ध के लिए तैयार रहने को दर्शाता है।

Explanation in English:
This verse highlights the unique conches blown by the Pandava leaders: Krishna’s Panchajanya, Arjuna’s Devadatta, and Bhima’s Paundra. Each conch represents the individual strengths and readiness of these warriors. Bhagwat Geeta

श्लोक 16

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः |
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ || 1.16 ||

अर्थ:
राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय शंख बजाया, और नकुल तथा सहदेव ने क्रमशः सुघोष और मणिपुष्पक शंख बजाए।

व्याख्या:
इस श्लोक में धर्मराज युधिष्ठिर और उनके भाइयों नकुल-सहदेव के शंखनाद का उल्लेख है। यह उनकी शांति, सौम्यता, और युद्ध के लिए दृढ़ निश्चय को प्रकट करता है।

Explanation in Hindi:
युधिष्ठिर का अनन्तविजय शंख उनकी अजेयता का प्रतीक है, जबकि नकुल और सहदेव के शंख उनकी संयमित और संतुलित प्रवृत्ति का प्रतीक हैं। यह पांडव सेना की एकता को भी दिखाता है।

Explanation in English:
This verse mentions the conches blown by King Yudhishthira (Anantavijaya) and his brothers Nakula (Sughosha) and Sahadeva (Manipushpaka). These signify their unique qualities—Yudhishthira’s invincibility and Nakula-Sahadeva’s balanced nature—and highlight the unity of the Pandava army.

श्लोक 17

काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः |
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः || 1.17 ||

अर्थ:
काशिराज, महान धनुर्धारी; शिखंडी, महारथी; धृष्टद्युम्न, विराट और अपराजेय सात्यकि ने भी शंखनाद किया।

व्याख्या:
पांडव सेना के अन्य योद्धाओं का वर्णन उनके शंखनाद के माध्यम से किया गया है। यह उनकी अदम्य ऊर्जा, साहस और युद्ध में योगदान का प्रतीक है।

Explanation in Hindi:
इस श्लोक में पांडव पक्ष के अन्य वीर योद्धाओं के शंखनाद का वर्णन है, जो उनके अजेय साहस और युद्ध की तैयारी को दर्शाता है।

Explanation in English:
This verse describes the conches blown by other prominent warriors of the Pandava side, symbolizing their indomitable courage and readiness for battle.

श्लोक 18

ध्वनितं सर्वतः शृण्वं दीनं रणविशारदः |
माधवः पाण्डवश्चैव तदा शङ्खं दध्मतुः || 1.18 ||

अर्थ:
सम्पूर्ण क्षेत्र में शंखों की ध्वनि गूंज रही थी, जिसे सुनकर युद्ध के विशेषज्ञों के दिल दहल गए। इस समय, माधव (श्रीकृष्ण) और पाण्डव (अर्जुन) ने भी शंख बजाए।

व्याख्या:
यह श्लोक युद्ध के माहौल को और अधिक स्पष्ट करता है, जहाँ शंखों की गूंज से युद्ध का वातावरण गंभीर हो गया है। श्रीकृष्ण और अर्जुन का शंख बजाना, पांडवों के पक्ष में आशीर्वाद और विजय का संकेत है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक शंखों की ध्वनि को पूरे युद्ध भूमि में फैलते हुए दिखाता है, जिससे युद्ध की गंभीरता और प्रभाव को महसूस किया जा सकता है। माधव और अर्जुन का शंखनाद पांडवों के विजय का संकेत है।

Explanation in English:
This verse illustrates the reverberating sound of conches across the battlefield, heightening the intensity of the atmosphere. The conches blown by Madhava (Krishna) and Pandava (Arjuna) signify the blessing and impending victory of the Pandavas.

श्लोक 19

हर्षेण च महात्मानं पाण्डवेषु नरपुङ्गवम् |
आचार्यं पाण्डवश्रेष्ठं धर्मात्मानं द्विजोत्तमम् || 1.19 ||

अर्थ:
पाण्डवों के महान और धर्मात्मा आचार्य द्रोणाचार्य के प्रति अत्यधिक हर्ष और श्रद्धा का अनुभव हो रहा था।

व्याख्या:
यह श्लोक द्रोणाचार्य के प्रति दुर्योधन की श्रद्धा और सम्मान को दर्शाता है। वह उन्हें पाण्डवों के श्रेष्ठ गुरु मानते हैं, लेकिन साथ ही उनका यह सम्मान द्रोणाचार्य के साथ अपने रिश्ते की स्थिति को स्पष्ट करता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक दुर्योधन द्वारा गुरु द्रोणाचार्य के प्रति श्रद्धा और सम्मान को व्यक्त करता है, जो पाण्डवों के श्रेष्ठ गुरु हैं। यह उनकी आध्यात्मिकता और पांडवों के साथ उनके रिश्ते की गहराई को भी दर्शाता है।

Explanation in English:
This verse expresses Duryodhana’s respect and admiration for Dronacharya, the revered teacher of the Pandavas. It reflects the depth of Dronacharya’s spiritual stature and his relationship with the Pandavas.

श्लोक 20

ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः |
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् || 1.20 ||

अर्थ:
इसके बाद, शंख, नगाड़े, ढोल, और बिगुल एक साथ बजने लगे, जिससे एक गगनभेदी ध्वनि उत्पन्न हुई।

व्याख्या:
यह श्लोक युद्ध की उद्घोषणा का प्रतीक है। जब शंख और अन्य वाद्ययंत्र बजने लगे, तो युद्ध का माहौल बन गया और दोनों पक्षों की सेनाओं की ध्वनियाँ एक दूसरे को चुनौती देने लगीं। यह श्लोक युद्ध के आरंभ के समय का चित्रण करता है, जहां युद्ध के प्रमुख वाद्ययंत्र एक साथ बज रहे थे।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक शंखों और अन्य वाद्ययंत्रों के द्वारा युद्ध के उद्घाटन को दर्शाता है। इसकी ध्वनि से युद्ध का माहौल बनता है, और दोनों पक्षों की सेनाएँ एक-दूसरे से मुकाबले के लिए तैयार हो जाती हैं।

Explanation in English:
This verse symbolizes the declaration of war. As conches, drums, and other instruments sounded simultaneously, the atmosphere of battle was set, and the sounds of both armies signaled their readiness to confront each other. Bhagwat Geeta

Bhagwat Geeta| भगवत गीता अध्याय 1 के श्लोक 21-30 हिंदी में

21 2

श्लोक 21

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः |
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम || 1.21 ||

अर्थ:
जहाँ भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन (धनुर्धर) हैं, वहाँ निश्चित रूप से विजय, समृद्धि, स्थिरता, और नीति होती है। यही मेरा मत है।

व्याख्या:
सञ्जय द्वारा यह श्लोक बताया जा रहा है, जिसमें वह अपने दृष्टिकोण से युद्ध के परिणाम की भविष्यवाणी कर रहे हैं। वह यह मानते हैं कि जहाँ भगवान कृष्ण और अर्जुन होंगे, वहाँ निश्चित रूप से विजय होगी। यह श्लोक धर्म, नीति और विजय के प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक सञ्जय द्वारा युद्ध के परिणाम को दर्शाता है। उनका यह मानना है कि भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन का साथ पाकर पांडवों को विजय प्राप्त होगी, क्योंकि दोनों के पास दिव्य शक्ति और नीति है।

Explanation in English:
In this verse, Sanjaya is giving his perspective on the outcome of the battle. He believes that wherever Lord Krishna and Arjuna are, victory, prosperity, stability, and righteousness will prevail, as they possess divine strength and moral guidance.

श्लोक 22

सञ्जय उवाच |
एवं व्यवस्थितं दृष्ट्वा धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे |
समवेतं सर्वशः पाण्डवाः और राजमहिमा ||

अर्थ:
सञ्जय ने कहा: इस प्रकार युद्ध की भूमि कुरुक्षेत्र में पांडवों की सेना ने एकत्रित होकर विशाल आकार लिया।

व्याख्या:
यह श्लोक सञ्जय द्वारा कुरुक्षेत्र के युद्ध के स्थान पर पांडवों के इकट्ठा होने का उल्लेख है, जिसमें उन्होंने सर्वशक्तिमान पांडवों के शक्ति का संदेश दिया।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक स्थिति का चित्रण करता है जब पांडवों की सेना कुरुक्षेत्र में संगठित हो गई थी और युद्ध के पहले इसे धर्मक्षेत्र के रूप में सम्मानित किया जाता है।

Explanation in English:
This verse describes how the Pandavas gathered in Kurukshetra, the sacred battlefield, with great might. The battlefield is considered “Dharmakshetra” as it is the place of righteousness. Bhagwat Geeta

श्लोक 23

न चैतद्विद्मः कतरन्नोगि यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः |
यानेव हत्वा न जीवेम जीवन्ते येऽवस्थिता: || 1.23 ||

अर्थ:
हम यह नहीं जानते कि हमें क्या करना चाहिए, हम यह भी नहीं जानते कि अगर हम विजय प्राप्त करें तो अच्छा होगा या अगर हम हारें तो अच्छा होगा। जो लोग इस युद्ध में स्थित हैं, उनके द्वारा मारे जाने के बाद हम जीवित नहीं रह सकते।

व्याख्या:
यह श्लोक अर्जुन के मन के भ्रम और अनिश्चितता को दर्शाता है। उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि युद्ध में भाग लेना सही है या नहीं, और यह द्वंद्व उन्हें मानसिक रूप से परेशान कर रहा है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक अर्जुन की दुविधा और संघर्ष को दिखाता है। वह यह नहीं समझ पा रहे हैं कि युद्ध में विजय प्राप्त करना अच्छा होगा या हारने से ही शांति मिलेगी। यह उनके मानसिक संघर्ष को व्यक्त करता है।

Explanation in English:
This verse expresses Arjuna’s confusion and internal struggle. He is unsure whether it would be better to win the battle or to accept defeat, and this mental conflict is causing him distress.

श्लोक 24

सञ्जय उवाच |
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत |
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् || 1.24 ||

अर्थ:
संजय ने कहा: हे भारत (धृतराष्ट्र)! गुडाकेश (अर्जुन) के इस प्रकार कहने पर हृषीकेश (कृष्ण) ने दोनों सेनाओं के मध्य में उत्तम रथ को खड़ा कर दिया।

व्याख्या:
इस श्लोक में संजय ने धृतराष्ट्र को अर्जुन और कृष्ण के संवाद का वर्णन किया है। अर्जुन के अनुरोध पर कृष्ण ने युद्ध के मध्य में रथ खड़ा किया, जिससे अर्जुन योद्धाओं का निरीक्षण कर सके।

Explanation in Hindi:
संजय ने धृतराष्ट्र को अर्जुन की गंभीरता और कृष्ण के उनके प्रति समर्पण का वर्णन किया। रथ को युद्ध के केंद्र में लाना अर्जुन की मानसिक स्थिति को और उजागर करता है।

Explanation in English:
Sanjaya narrates how Krishna placed the chariot in the middle of the battlefield as per Arjuna’s request. This act symbolizes Krishna’s role as Arjuna’s guide and the unfolding of the epic battle.

श्लोक 25

भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् |
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति || 1.25 ||

अर्थ:
(कृष्ण ने) अर्जुन से कहा: हे पार्थ! देखो इन सभी कुरुओं को, जो यहां युद्ध के लिए एकत्र हुए हैं, जिनमें भीष्म, द्रोणाचार्य और अन्य राजागण प्रमुख हैं।

व्याख्या:
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उन सभी योद्धाओं को देखने के लिए प्रेरित करते हैं जो कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए एकत्र हुए हैं। यह क्षण अर्जुन के भीतर एक गहरे भावनात्मक और मानसिक संघर्ष की शुरुआत का संकेत देता है।

Explanation in Hindi:
श्रीकृष्ण अर्जुन का ध्यान उन प्रमुख योद्धाओं की ओर आकर्षित कर रहे हैं जो युद्ध में भाग लेने के लिए खड़े हैं। यह क्षण अर्जुन के लिए आत्मनिरीक्षण और निर्णय का है।

Explanation in English:
Krishna points out the assembled warriors, including Bhishma and Drona, encouraging Arjuna to observe the magnitude of the battlefield and prepare himself mentally.

श्लोक 26

तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितॄनथ पितामहान् |
आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा || 1.26 ||

अर्थ:
वहां अर्जुन ने अपने पितामहों, आचार्यों, चाचाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों और मित्रों को खड़ा देखा।

व्याख्या:
इस श्लोक में अर्जुन के भावनात्मक जुड़ाव को दिखाया गया है। युद्धभूमि में अपने प्रियजनों को देखकर उनके मन में कर्तव्य और मोह के बीच द्वंद्व उत्पन्न होता है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन ने युद्धभूमि में अपने परिवार और प्रियजनों को देखा, जिससे उनकी मानसिक स्थिति में भारी परिवर्तन आया और वे युद्ध के प्रति संशय में पड़ गए।

Explanation in English:
Arjuna notices his relatives, teachers, and loved ones on the battlefield. This observation stirs deep emotional turmoil within him, leading to his moral dilemma.

श्लोक 27

श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि |
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् || 1.27 ||

अर्थ:
अर्जुन ने अपने ससुरों और मित्रों को भी दोनों पक्षों की सेनाओं में खड़ा देखा।

व्याख्या:
इस श्लोक में अर्जुन का मोह और मानसिक संघर्ष और गहराता है। युद्धभूमि में अपने निकट संबंधियों को देखकर वह युद्ध करने के लिए तैयार नहीं हो पाते।

Explanation in Hindi:
यह दृश्य अर्जुन के लिए अत्यंत भावुक क्षण था, जब उन्होंने अपने ससुराल और मित्रों को भी युद्ध के लिए तैयार देखा। यह स्थिति उनके लिए कर्तव्य और मोह के बीच की जंग बन गई।

Explanation in English:
Arjuna also sees his in-laws and friends ready for battle. This deepens his emotional conflict as he struggles to reconcile his duty as a warrior with his love for his family. Bhagwat Geeta

श्लोक 28

कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् |
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् || 1.28 ||

अर्थ:
अपने स्वजनों को युद्ध के लिए तैयार देखकर अर्जुन अत्यंत करुणा से भर गए और विषादयुक्त होकर यह बोले।

व्याख्या:
यहां से अर्जुन के मानसिक संकट की शुरुआत होती है। अपने परिवार और मित्रों के खिलाफ युद्ध लड़ने की सोच ने उन्हें गहरे दुःख और करुणा से भर दिया।

Explanation in Hindi:
अर्जुन के भीतर की दया और मोह उन्हें कर्तव्य से विचलित कर देते हैं। अपने स्वजनों के प्रति लगाव उन्हें धर्म और कर्म की राह से दूर कर रहा है।

Explanation in English:
Seeing his own family ready to fight, Arjuna becomes overwhelmed with compassion and sorrow, marking the onset of his emotional and moral dilemma.

श्लोक 29

सिदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति |
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते || 1.29 ||

अर्थ:
मेरे अंग कांप रहे हैं, मुख सूख रहा है, शरीर में कंपन हो रहा है, और रोंगटे खड़े हो रहे हैं।

व्याख्या:
अर्जुन की शारीरिक प्रतिक्रिया उनके आंतरिक संघर्ष और मानसिक तनाव को दर्शाती है। युद्ध के भय और मोह ने उनके शरीर को कमजोर कर दिया है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन अपने मानसिक तनाव और मोह के कारण शारीरिक रूप से अस्वस्थ अनुभव करते हैं। यह उनके अंदर की करुणा और युद्ध के प्रति संकोच को दर्शाता है।

Explanation in English:
Arjuna’s physical symptoms, such as trembling and dryness of the mouth, reflect his internal conflict and the overwhelming emotional burden he feels in the face of the impending war.

श्लोक 30

गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते |
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः || 1.30 ||

अर्थ:
मेरा गांडीव (धनुष) हाथ से गिर रहा है, त्वचा जलने जैसी प्रतीत हो रही है, मैं खड़ा रहने में असमर्थ हूं, और मेरा मन चकरा रहा है।

व्याख्या:
अर्जुन अपने मोह और मानसिक संघर्ष के कारण शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह विचलित हो चुके हैं। युद्ध के विचार ने उनके आत्मबल को कमजोर कर दिया है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन की यह स्थिति उनकी मनोवैज्ञानिक पीड़ा को दर्शाती है। युद्ध करने के विचार मात्र से उनके मन और शरीर दोनों पर प्रभाव पड़ा है।

Explanation in English:
Arjuna feels completely disoriented, both physically and mentally, as the thought of fighting against his loved ones overwhelms him. His strength and focus seem to abandon him.

Bhagwat Geeta| भगवत गीता अध्याय 1 के श्लोक 31-40 हिंदी में

31 2

श्लोक 31

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव |
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे || 1.31 ||

अर्थ:
हे केशव! मैं केवल अशुभ संकेत देख रहा हूं और अपने स्वजनों को मारकर किसी प्रकार का लाभ नहीं देख पा रहा हूं।

व्याख्या:
अर्जुन इस श्लोक में अपनी मानसिक स्थिति और धर्मसंकट को प्रकट करते हैं। वह युद्ध को अशुभ मानते हुए इसमें शामिल होने से स्वयं को रोकना चाहते हैं।

Explanation in Hindi:
अर्जुन का यह विचार युद्ध के प्रति उनकी गहरी आशंका और करुणा को दर्शाता है। वह अपने परिवार के विनाश में किसी भी प्रकार का लाभ नहीं देख पाते।

Explanation in English:
Arjuna perceives inauspicious omens and expresses his inability to see any good coming from the war, as it involves killing his own kith and kin.

श्लोक 32

न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च |
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा || 1.32 ||

अर्थ:
हे कृष्ण! मुझे न तो विजय की इच्छा है, न राज्य की, और न ही सुखों की। हे गोविंद! हमें राज्य, भोग या जीवन का क्या करना है?

व्याख्या:
अर्जुन युद्ध के फलस्वरूप मिलने वाले लाभों को व्यर्थ मानते हैं। उन्हें लगता है कि अपने परिवार और प्रियजनों को खोकर प्राप्त राज्य और सुख बेकार होंगे।

Explanation in Hindi:
अर्जुन के विचार उनकी मानसिक दुविधा और मोह को प्रकट करते हैं। वह अपने आत्मीयजनों के बिना किसी भी प्रकार की भौतिक उपलब्धि को व्यर्थ समझते हैं।

Explanation in English:
Arjuna expresses his lack of desire for victory, kingdom, or pleasures, as he sees no value in these gains without his loved ones by his side.

श्लोक 33

येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च |
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च || 1.33 ||

अर्थ:
जिनके लिए हम राज्य, भोग, और सुखों की कामना करते थे, वे सभी लोग यहां युद्धभूमि में अपने प्राणों और संपत्ति का त्याग करने के लिए खड़े हैं।

व्याख्या:
अर्जुन यह कह रहे हैं कि जिन स्वजनों के लिए युद्ध किया जा रहा है, उन्हीं का विनाश युद्ध के कारण होगा। इससे अर्जुन के मन में युद्ध की निरर्थकता का बोध हो रहा है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन को युद्ध में भाग लेने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता, क्योंकि जिन लोगों के लिए राज्य और सुख चाहिए, वे ही युद्ध में मर जाएंगे।

Explanation in English:
Arjuna questions the purpose of the war, as those for whom he desires victory and enjoyment are the very ones who will perish in the battle.

श्लोक 34

आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः |
मातुलाः श्वशुराः पौत्राः स्यालाः सम्बन्धिनस्तथा || 1.34 ||

अर्थ:
इस युद्ध में आचार्य, पिता, पुत्र, पितामह, चाचा, ससुर, पौत्र, साले और अन्य संबंधी खड़े हुए हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक अर्जुन के मोह को गहराई से प्रकट करता है। अपने प्रियजनों और संबंधियों को युद्धभूमि में देखकर उनकी करुणा और मानसिक पीड़ा बढ़ जाती है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन के लिए यह युद्ध उनके परिवार और संबंधियों के विनाश का कारण बनेगा। यह सोच उन्हें युद्ध के प्रति और अधिक अनिच्छुक बना रही है।

Explanation in English:
Arjuna lists the various relatives and loved ones assembled on the battlefield, highlighting his deep emotional struggle and reluctance to fight.

श्लोक 35

एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन |
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते || 1.35 ||

अर्थ:
हे मधुसूदन! मैं इन्हें मारना नहीं चाहता, भले ही ये मुझे मारने के लिए तैयार हों। त्रिलोकी का राज्य मिलने के लिए भी मैं इन्हें मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिए तो और भी नहीं।

व्याख्या:
अर्जुन युद्ध के प्रति अपनी अनिच्छा प्रकट करते हुए कहते हैं कि उन्हें न तो राज्य की लालसा है, न ही भौतिक लाभ की। अपने प्रियजनों को मारने के विचार ने उनके भीतर करुणा और मोह को और गहरा कर दिया है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन का यह विचार दर्शाता है कि वे न केवल अपने परिवार के प्रति, बल्कि मानवता के प्रति गहरी करुणा रखते हैं। उनके लिए नैतिकता और प्रेम, भौतिक सुखों से अधिक महत्वपूर्ण हैं।

Explanation in English:
Arjuna expresses his deep aversion to killing his relatives, valuing love and compassion over material gains, even if it meant ruling the three worlds.

श्लोक 36

निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन |
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः || 1.36 ||

अर्थ:
हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी? इससे तो हमें केवल पाप ही प्राप्त होगा।

व्याख्या:
अर्जुन यहां युद्ध को धर्म के विपरीत मानते हैं। उनका मानना है कि अपने स्वजनों को मारना न केवल अनैतिक है, बल्कि इसके परिणामस्वरूप केवल पाप और दुःख ही मिलेगा।

Explanation in Hindi:
अर्जुन का यह तर्क युद्ध की नैतिकता पर सवाल उठाता है। वे इसे अधर्म मानते हैं और अपने परिवार के खिलाफ युद्ध लड़ने से स्वयं को रोकने का प्रयास करते हैं।

Explanation in English:
Arjuna questions the morality of the war, believing that killing his relatives, even if they are aggressors, will lead to sin rather than joy or righteousness.

श्लोक 37

तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान् |
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव || 1.37 ||

अर्थ:
इसलिए हमें धृतराष्ट्र के पुत्रों और अपने बंधुओं को मारना उचित नहीं है। हे माधव! अपने स्वजनों को मारकर हम कैसे सुखी हो सकते हैं?

व्याख्या:
अर्जुन के भीतर मोह और करुणा इतनी बढ़ जाती है कि वह युद्ध करने की नैतिकता को ही अस्वीकार करने लगते हैं। अपने प्रियजनों के विरुद्ध युद्ध उन्हें आत्मघाती प्रतीत होता है।

Explanation in Hindi:
यहां अर्जुन अपने स्वजनों के प्रति अपने मोह को प्रकट करते हैं। उनके अनुसार, अपने परिवार के विनाश के बाद कोई भी भौतिक उपलब्धि अर्थहीन है।

Explanation in English:
Arjuna expresses his inability to find happiness or justification in killing his own relatives, viewing the war as a source of endless grief rather than success.

श्लोक 38

यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः |
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् || 1.38 ||

अर्थ:
यद्यपि लोभ से अंधे हुए ये लोग कुल के विनाश और मित्रद्रोह के दोष को नहीं समझ रहे हैं।

व्याख्या:
अर्जुन धृतराष्ट्र के पुत्रों की स्वार्थपूर्ण प्रवृत्ति और उनके गलत कार्यों को इंगित करते हैं। लेकिन स्वयं इस बात को मानते हैं कि नैतिकता का पालन करना उनकी जिम्मेदारी है।

Explanation in Hindi:
अर्जुन मानते हैं कि धृतराष्ट्र के पुत्र लोभ में अंधे होकर कुल के विनाश और पाप को नहीं देख पा रहे हैं। फिर भी, उन्हें धर्म और नैतिकता का पालन करना चाहिए।

Explanation in English:
Arjuna criticizes the greed-driven actions of Dhritarashtra’s sons, acknowledging their blindness to the consequences of family destruction and betrayal.

श्लोक 39

कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् |
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन || 1.39 ||

अर्थ:
हे जनार्दन! जो लोग कुल के विनाश से होने वाले दोष को जानते हैं, उनके लिए इस पाप से बचना कैसे संभव नहीं है?

व्याख्या:
अर्जुन का यह कथन दिखाता है कि वह कुल के विनाश के दुष्परिणामों से भलीभांति परिचित हैं। इसलिए वे चाहते हैं कि वे इस पापपूर्ण कार्य से बचें।

Explanation in Hindi:
यहां अर्जुन कुल के विनाश के प्रति अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हैं। वे मानते हैं कि इस पाप से बचना नैतिकता का पालन करना है।

Explanation in English:
Arjuna emphasizes the importance of avoiding the sin of family destruction, reflecting his awareness of its severe consequences.

श्लोक 40

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः |
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत || 1.40 ||

अर्थ:
कुल के विनाश से उसके सनातन धर्म नष्ट हो जाते हैं, और धर्म के नष्ट होने पर पूरा कुल अधर्म से भर जाता है।

व्याख्या:
अर्जुन इस श्लोक में कुल धर्म और परंपराओं के महत्व को उजागर करते हैं। वे मानते हैं कि धर्म के नष्ट होने पर समाज में अधर्म और अराजकता बढ़ेगी।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक यह स्पष्ट करता है कि परिवार और समाज के स्थायित्व के लिए परंपराएं और धर्म आवश्यक हैं। उनका विनाश सामाजिक पतन का कारण बनता है।

Explanation in English:
This verse highlights the importance of family traditions and religious duties, emphasizing that their destruction leads to the rise of unrighteousness and societal chaos.

Bhagwat Geeta| भगवत गीता अध्याय 1 के श्लोक 41-47 हिंदी में

41

श्लोक 41

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः |
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः || 1.41 ||

अर्थ:
हे कृष्ण! अधर्म के प्रभाव से कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं, और जब स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं, तब वर्णसंकर (अशुद्ध संतति) उत्पन्न होती है।

व्याख्या:
अर्जुन का तर्क है कि स्त्रियों की शुद्धता और पवित्रता कुल के धर्म और संस्कृति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अधर्म के कारण इनकी स्थिति बिगड़ने से सामाजिक व्यवस्था में गिरावट आएगी।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक सामाजिक संरचना और स्त्रियों की पवित्रता के महत्व को रेखांकित करता है। यह स्पष्ट करता है कि स्त्रियों के पतन से समाज में वर्ण और जातीय संतुलन बिगड़ जाता है।

Explanation in English:
This verse stresses the importance of women’s purity and its role in maintaining social and cultural stability, warning that their corruption leads to a breakdown of social harmony.

श्लोक 42

सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च |
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः || 1.42 ||

अर्थ:
वर्णसंकर कुल का और कुलघातियों का नाश करता है। पिंडदान और जल तर्पण की परंपराओं के नष्ट हो जाने से उनके पितर (पूर्वज) भी गिर जाते हैं।

व्याख्या:
अर्जुन के अनुसार, वर्णसंकर (अशुद्ध संतति) के कारण न केवल समाज का विनाश होता है, बल्कि पूर्वजों के लिए किए जाने वाले धार्मिक कृत्य भी समाप्त हो जाते हैं, जिससे उनके मोक्ष में बाधा उत्पन्न होती है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक बताता है कि वर्णसंकर न केवल वर्तमान पीढ़ी को बल्कि पूर्वजों की आत्माओं को भी प्रभावित करता है, क्योंकि धार्मिक परंपराएं बाधित हो जाती हैं।

Explanation in English:
This verse explains how intermixing of castes leads to the destruction of family and rituals, disrupting ancestral offerings and hindering their spiritual liberation.

श्लोक 43

दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः |
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः || 1.43 ||

अर्थ:
कुल के विनाश और वर्णसंकर के कारण जाति धर्म और कुल धर्म नष्ट हो जाते हैं।

व्याख्या:
अर्जुन यहां धर्म और परंपराओं के महत्व को स्पष्ट करते हैं। वे मानते हैं कि यदि परिवार और समाज में वर्णसंकर होता है, तो यह सदियों से स्थापित धार्मिक परंपराओं का विनाश करेगा।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक सामाजिक और धार्मिक परंपराओं के पतन का उल्लेख करता है, जो परिवारों और समाज में अराजकता का कारण बनता है।

Explanation in English:
This verse highlights the destruction of caste and family traditions due to the rise of intermixing, leading to the downfall of social and religious practices.

श्लोक 44

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन |
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम || 1.44 ||

अर्थ:
हे जनार्दन! जिन मनुष्यों के कुल धर्म नष्ट हो जाते हैं, उनका अनिश्चितकाल तक नरक में वास होता है—ऐसा हमने सुना है।

व्याख्या:
अर्जुन के अनुसार, धर्म और परंपराओं का नष्ट होना मनुष्यों को अधर्म की ओर ले जाता है, जिससे उन्हें नरक में स्थान प्राप्त होता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक धर्म के महत्व को स्पष्ट करता है, और यह बताता है कि परंपराओं के विनाश से मनुष्यों को अनंत पीड़ा सहनी पड़ती है।

Explanation in English:
This verse emphasizes the importance of traditions and warns of eternal suffering in hell due to the destruction of family values and religious duties.

श्लोक 45

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् |
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः || 1.45 ||

अर्थ:
हाय! हम महान पाप करने का निश्चय कर बैठे हैं, जो राज्य और सुख के लोभ में अपने ही स्वजनों को मारने का प्रयास कर रहे हैं।

व्याख्या:
अर्जुन अपने निर्णय पर पश्चाताप करते हैं और युद्ध को पापपूर्ण कृत्य मानते हैं। उन्हें लगता है कि राज्य और सुख की लालसा ने उन्हें अधर्म की ओर प्रेरित किया है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक अर्जुन के गहरे आत्मनिरीक्षण और उनके धर्म संकट को व्यक्त करता है। वह अपने कर्मों को पापमय समझते हैं।

Explanation in English:
This verse conveys Arjuna’s deep self-reflection, as he perceives his actions to be sinful, driven by greed for power and pleasures.

श्लोक 46

यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः |
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युः तन्मे क्षेमतरं भवेत् || 1.46 ||

अर्थ:
यदि युद्ध में शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र मुझे शस्त्ररहित और बिना प्रतिकार किए मार दें, तो वह मेरे लिए अधिक शुभ होगा।

व्याख्या:
अर्जुन पूरी तरह से अपने कर्तव्य को लेकर भ्रमित और हताश हो चुके हैं। वे यह मानते हैं कि अपने प्रियजनों के खिलाफ युद्ध करने से बेहतर है कि बिना प्रतिकार किए मृत्यु को स्वीकार कर लिया जाए।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक अर्जुन की गहरी मानसिक दुविधा को दर्शाता है। वे युद्ध के पाप से बचने के लिए मृत्यु को भी स्वीकार करने को तैयार हैं।

Explanation in English:
This verse reflects Arjuna’s inner turmoil and his readiness to accept death without resistance, as he sees it as a better alternative to engaging in a sinful war.

श्लोक 47

सञ्जय उवाच |
एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् |
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः || 1.47 ||

अर्थ:
संजय ने कहा: ऐसा कहकर अर्जुन ने अपने धनुष-बाण त्याग दिए और युद्धभूमि में रथ के भीतर शोक से व्याकुल होकर बैठ गए।

व्याख्या:
यह श्लोक अर्जुन की मानसिक स्थिति का वर्णन करता है। उनकी करुणा, मोह और धर्म संकट ने उन्हें युद्ध के लिए अयोग्य बना दिया है। यह दर्शाता है कि उनके मन में अपने कर्तव्य और भावनाओं के बीच गहरा संघर्ष चल रहा है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक युद्ध आरंभ से पहले अर्जुन की भावनात्मक कमजोरी और उनके मनोविज्ञान को चित्रित करता है। वे अपने कर्तव्यों के प्रति संशयग्रस्त और शोकाकुल हैं।

Explanation in English:
This verse depicts Arjuna’s emotional breakdown before the war. Overcome with sorrow and confusion, he relinquishes his weapons and sits in despair, symbolizing his inner conflict.

निष्कर्ष

अध्याय 1 के श्लोकों में अर्जुन के मानसिक द्वंद्व, उनकी भावनात्मक स्थिति और धर्म के प्रति उनके कर्तव्य के संघर्ष को प्रमुख रूप से दर्शाया गया है। अर्जुन का शोक और भ्रम उनके आंतरिक संघर्ष को व्यक्त करते हैं, जो इस युद्ध के बारे में उनके विचारों को उलझा देता है। वे अपने परिवार, गुरु और प्रियजनों के खिलाफ युद्ध करने के बजाय मृत्यु को स्वीकार करने का मन बना रहे थे।

यह अध्याय न केवल अर्जुन के व्यक्तिगत संघर्ष को दिखाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कब कोई व्यक्ति अपने कर्तव्यों के बारे में भ्रमित और पराजित महसूस करता है। इसके माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि कभी-कभी हम जीवन में ऐसे मोड़ों पर पहुँचते हैं, जहाँ हमें अपने कर्तव्यों और निर्णयों के बीच सही मार्ग चुनने के लिए आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता होती है।

सामान्य प्रश्न (FAQs)

अर्जुन ने श्लोक 1.23 में क्या कहा?

अर्जुन ने श्लोक 1.23 में यह कहा कि वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि युद्ध में विजय प्राप्त करना सही होगा या हारने से शांति मिलेगी। उनका यह द्वंद्व उनकी मानसिक स्थिति को दर्शाता है।

अर्जुन युद्ध में क्यों भाग लेने से हिचकिचा रहे थे?

अर्जुन युद्ध में भाग लेने से हिचकिचा रहे थे क्योंकि वे अपने परिवार, गुरु और प्रियजनों को मारने के कृत्य के पाप को लेकर शोकित थे। उन्हें यह महसूस हो रहा था कि उनके लिए युद्ध में शामिल होना धर्म के खिलाफ होगा।

अर्जुन ने अपने शस्त्रों को क्यों छोड़ दिया था?

अर्जुन ने अपने शस्त्रों को छोड़ दिया था क्योंकि उनका मन युद्ध में शामिल होने के बजाय शांति की ओर आकर्षित हो रहा था। वह युद्ध को एक पापपूर्ण कार्य मान रहे थे और यह सोच रहे थे कि बिना संघर्ष के मृत्यु उन्हें अधिक सम्मानजनक होगी।

इस श्लोक का क्या महत्व है?

यह श्लोक अर्जुन के मानसिक और भावनात्मक द्वंद्व को दर्शाता है। यह हमें यह समझाता है कि कभी-कभी जीवन में निर्णय लेना कठिन हो सकता है, और हमें अपने कर्तव्यों को लेकर स्पष्टता प्राप्त करने के लिए आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता होती है।

अर्जुन के शोक और भ्रम के कारण क्या थे?

अर्जुन का शोक और भ्रम उनके प्रियजनों के खिलाफ युद्ध करने के विचार से उत्पन्न हो रहा था। वे यह समझ नहीं पा रहे थे कि युद्ध में शामिल होकर क्या सही है और क्या गलत। उनका यह मनोबल गिरा हुआ था, जो उन्हें अपने कर्तव्यों में संशय पैदा कर रहा था।

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