Bhagwat Geeta Chapter 5: कर्म संन्यास योग Exaplain in Hindi and English with Explanation

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Bhagwat Geeta

आपका स्वागत है भगवद गीता के पाँचवे अध्याय में, जिसे “कर्म संन्यास योग” के नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण कर्मयोग और संन्यास (त्याग) के बीच के संबंध को स्पष्ट करते हैं। अर्जुन के मन में यह प्रश्न था कि जीवन में मोक्ष प्राप्ति के लिए कर्म करना बेहतर है या कर्म का त्याग करना।

श्रीकृष्ण समझाते हैं कि दोनों मार्ग (कर्मयोग और संन्यास) मोक्ष की ओर ले जाते हैं, लेकिन निष्काम कर्मयोग अधिक व्यावहारिक और प्रभावी है। वे बताते हैं कि जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों को बिना किसी फल की इच्छा के करता है और मन को शांत रखते हुए हर कार्य को ईश्वर को समर्पित करता है, वही सच्चा संन्यासी है।

इस अध्याय में हमें कर्म और त्याग के गूढ़ अर्थ, जीवन में संतुलन, और सच्ची शांति के मार्ग को समझने का अवसर मिलता है।

आइए, श्रीकृष्ण के इन अद्भुत उपदेशों के साथ कर्म और संन्यास की गहराई को जानें।

धन्यवाद!

Bhagwat Geeta Chapter 5: कर्म संन्यास योग Exaplain in Hindi and English | श्लोक 1 – 10

Bhagwat Geeta

श्लोक 1

अर्जुन उवाच |
संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि |
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् || 5.1 ||

अर्थ:
अर्जुन ने कहा: हे कृष्ण! आप कर्मों के त्याग (संन्यास) और कर्मयोग, दोनों की प्रशंसा करते हैं। इनमें से कौन सा मार्ग श्रेष्ठ है? कृपया मुझे स्पष्ट रूप से बताएं।

व्याख्या:
अर्जुन भ्रमित हैं क्योंकि श्रीकृष्ण ने पहले कर्मों के त्याग (संन्यास) और फिर कर्मयोग की प्रशंसा की। वे जानना चाहते हैं कि इनमें से कौन सा मार्ग श्रेष्ठ है। यह श्लोक अर्जुन के संदेह को दर्शाता है और श्रीकृष्ण के अगले उपदेशों का आधार बनता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक अर्जुन की जिज्ञासा को दर्शाता है। वह भगवान से पूछते हैं कि कर्म त्यागना श्रेष्ठ है या कर्मयोग। यह अध्याय इन दोनों के बीच संतुलन समझाने के लिए है।

Explanation in English:
This verse reflects Arjuna’s curiosity as he seeks clarity from Krishna about which path is superior: renunciation of actions (Sannyasa) or the path of action (Karma Yoga). This chapter elaborates on balancing the two. Bhagwat Geeta

श्लोक 2

श्रीभगवानुवाच |
संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ |
तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते || 5.2 ||

अर्थ:
श्रीकृष्ण ने कहा: कर्म संन्यास और कर्मयोग दोनों ही मोक्ष के लिए उपयोगी हैं, लेकिन कर्म संन्यास की अपेक्षा कर्मयोग श्रेष्ठ है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि दोनों मार्ग मुक्ति की ओर ले जाते हैं, लेकिन कर्मयोग अधिक व्यावहारिक और श्रेष्ठ है क्योंकि यह संसार में रहते हुए आत्मज्ञान प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक कर्मयोग की महत्ता को दर्शाता है। भगवान कहते हैं कि कर्मयोग साधना के लिए एक सरल और श्रेष्ठ मार्ग है।

Explanation in English:
This verse emphasizes the importance of Karma Yoga. Krishna explains that while both paths lead to liberation, Karma Yoga is more practical and superior for achieving self-realization.

श्लोक 3

ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति |
निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते || 5.3 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति न तो किसी से द्वेष करता है और न ही किसी वस्तु की कामना करता है, वह सच्चा संन्यासी है। द्वंद्व (सुख-दुःख) से मुक्त होकर, वह बंधन से सरलता से मुक्त हो जाता है।

व्याख्या:
यह श्लोक आंतरिक त्याग (मनोवृत्ति) पर बल देता है। बाहरी संन्यास से अधिक महत्वपूर्ण है मन का संतुलन और इच्छाओं का त्याग। यह सच्ची मुक्ति का मार्ग है।

Explanation in Hindi:
सच्चा संन्यास बाहरी त्याग नहीं, बल्कि मन की द्वेष और इच्छाओं से मुक्ति है। इस अवस्था में व्यक्ति सरलता से बंधनों से मुक्त हो सकता है।

Explanation in English:
True renunciation is not external but lies in the inner detachment from hatred and desires. In this state, one easily frees themselves from the bondage of life. Bhagwat Geeta

श्लोक 4

साङ्ख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः |
एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् || 5.4 ||

अर्थ:
सांख्य (ज्ञानयोग) और कर्मयोग को अलग-अलग केवल मूर्ख लोग कहते हैं। जो भी किसी एक मार्ग का सही रूप से पालन करता है, वह दोनों के फल को प्राप्त करता है।

व्याख्या:
भगवान कहते हैं कि ज्ञानयोग और कर्मयोग के बीच कोई अंतर नहीं है; दोनों ही आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं। यह व्यक्ति की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है कि वह किस मार्ग को अपनाता है।

Explanation in Hindi:
सांख्य और कर्मयोग दोनों एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं। जो व्यक्ति किसी एक का सही तरीके से पालन करता है, वह दूसरे का भी फल प्राप्त करता है।

Explanation in English:
Both Sankhya (knowledge yoga) and Karma Yoga lead to the same goal. One who follows either path sincerely reaps the benefits of both. Bhagwat Geeta

श्लोक 5

यत्साङ्ख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते |
एकं साङ्ख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति || 5.5 ||

अर्थ:
जो स्थान ज्ञानयोग से प्राप्त होता है, वही कर्मयोग से भी प्राप्त होता है। जो ज्ञानयोग और कर्मयोग को एक समान देखता है, वही सच्चा दृष्टा है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि ज्ञानयोग और कर्मयोग में कोई भिन्नता नहीं है। वे केवल अलग-अलग दृष्टिकोण हैं, लेकिन दोनों का उद्देश्य आत्मज्ञान और मुक्ति है।

Explanation in Hindi:
यह श्लोक दर्शाता है कि ज्ञानयोग और कर्मयोग एक ही लक्ष्य को प्राप्त करने के साधन हैं। दोनों में कोई विरोधाभास नहीं है।

Explanation in English:
This verse reveals that both Sankhya Yoga and Karma Yoga are means to the same ultimate goal of self-realization and liberation. There is no contradiction between them.

श्लोक 6

संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः |
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति || 5.6 ||

अर्थ:
हे महाबाहो (अर्जुन)! बिना योग के कर्म संन्यास (त्याग) दुःखदायक है। योगयुक्त मुनि शीघ्र ही ब्रह्म को प्राप्त करता है।

व्याख्या:
भगवान कहते हैं कि कर्मों का त्याग तभी संभव है जब व्यक्ति योग में स्थित हो। बिना योग के संन्यास कठिन और कष्टदायक होता है। जो व्यक्ति कर्मयोग में लगा रहता है, वह ब्रह्मज्ञान को शीघ्र ही प्राप्त कर लेता है।

Explanation in Hindi:
कर्मों का त्याग योग के बिना संभव नहीं है। योगयुक्त व्यक्ति ही ब्रह्म की प्राप्ति कर सकता है।

Explanation in English:
Renunciation of actions without yoga is challenging and full of suffering. A person established in yoga quickly attains the knowledge of Brahman. Bhagwat Geeta

श्लोक 7

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः |
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते || 5.7 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति योगयुक्त, शुद्ध हृदय वाला, आत्मा पर नियंत्रण रखने वाला, और इंद्रियों का स्वामी है, वह सभी प्राणियों को अपनी आत्मा के समान देखता है। ऐसे व्यक्ति के द्वारा कर्म करने पर भी वह कर्मों में नहीं फंसता।

व्याख्या:
यह श्लोक योगी की स्थिति को दर्शाता है। योगी अपनी आत्मा में स्थित होता है और सभी में समानता देखता है। उसके लिए कर्म बंधन का कारण नहीं बनते।

Explanation in Hindi:
योगी अपनी आत्मा में स्थित होकर सभी प्राणियों को समान देखता है। उसके कर्म उसे बंधन में नहीं डालते।

Explanation in English:
A yogi established in self-control and purity sees all beings as one with the self. Such a person remains unattached to actions even while performing them. Bhagwat Geeta

श्लोक 8-9 (संगठित):

नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित् |
पश्यञ्श्रृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपन्स्वसन् ||
प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि |
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् || 5.8-9 ||

अर्थ:
जो योग में स्थित और तत्व का ज्ञान रखने वाला है, वह सोचता है कि “मैं कुछ भी नहीं करता।” वह यह समझता है कि इंद्रियां ही इंद्रियों के विषयों में कार्य कर रही हैं, चाहे वह देखे, सुने, छुए, सूंघे, खाए, चले, सोए, सांस ले, बोले, त्यागे, ग्रहण करे, या पलकें झपकाए।

व्याख्या:
यहां श्रीकृष्ण ने स्पष्ट किया है कि आत्मा कर्म नहीं करती; केवल इंद्रियां अपने स्वाभाविक कर्तव्यों का पालन करती हैं। तत्वज्ञानी इस सत्य को समझकर कर्मों से अनासक्त रहता है।

Explanation in Hindi:
ज्ञानवान व्यक्ति यह समझता है कि आत्मा कुछ नहीं करती। इंद्रियां अपने-अपने विषयों में संलग्न रहती हैं। यह समझ कर्मों से मुक्ति का मार्ग है।

Explanation in English:
A wise person realizes that the self does nothing. It is the senses that act upon their objects. This understanding leads to liberation from attachment to actions. Bhagwat Geeta

श्लोक 10

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः |
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा || 5.10 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति अपने सभी कर्म ब्रह्म को अर्पित करता है और आसक्ति का त्याग करता है, वह पाप से उसी प्रकार मुक्त रहता है जैसे जल से कमलपत्र।

व्याख्या:
यह श्लोक सिखाता है कि अपने कर्म ब्रह्म को समर्पित करने और आसक्ति का त्याग करने से व्यक्ति पापों से बच सकता है। यह आंतरिक शुद्धता और कर्मों के प्रति समर्पण की महत्ता को उजागर करता है।

Explanation in Hindi:
कर्मों को ब्रह्म को अर्पित करके और आसक्ति छोड़कर, व्यक्ति पाप से मुक्त हो सकता है।

Explanation in English:
By dedicating actions to Brahman and giving up attachment, one remains unaffected by sins, just as a lotus leaf remains untouched by water. Bhagwat Geeta

Bhagwat Geeta Chapter 5: कर्म संन्यास योग Exaplain in Hindi and English | श्लोक 11 – 20

श्लोक 11

कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि |
योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये || 5.11 ||

अर्थ:
योगी आसक्ति का त्याग करके अपने शरीर, मन, बुद्धि और इंद्रियों के माध्यम से केवल आत्मा की शुद्धि के लिए कर्म करता है।

व्याख्या:
इस श्लोक में बताया गया है कि योगी अपने कर्मों को केवल आत्मिक शुद्धि के लिए करता है। वह कर्मों में फंसा नहीं होता क्योंकि उसका उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति है, न कि सांसारिक लाभ।

Explanation in Hindi:
योगी शरीर, मन, और इंद्रियों का उपयोग आत्मा की शुद्धि के लिए करता है। वह किसी भी सांसारिक आसक्ति से परे होता है।

Explanation in English:
A yogi performs actions using the body, mind, intellect, and senses solely for self-purification, free from any attachment.

श्लोक 12

युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् |
अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते || 5.12 ||

अर्थ:
जो योगी अपने कर्मों के फल का त्याग करता है, वह परम शांति प्राप्त करता है। लेकिन जो व्यक्ति आसक्त है, वह फल की कामना से बंधन में फंस जाता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यहां सिखाते हैं कि कर्म का फल त्यागने वाला व्यक्ति शांति प्राप्त करता है। फल की इच्छा रखने वाला व्यक्ति सांसारिक बंधनों में जकड़ा रहता है।

Explanation in Hindi:
कर्मफल का त्याग करने से व्यक्ति शांति प्राप्त करता है। लेकिन जो फल की कामना करता है, वह मोह और बंधन में फंस जाता है।

Explanation in English:
By renouncing the fruits of actions, a person attains supreme peace. However, one who is attached to the results becomes bound by desires Bhagwat Geeta

श्लोक 13

सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी |
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् || 5.13 ||

अर्थ:
आत्मा, नौ द्वारों वाले शरीर में रहते हुए, सभी कर्मों को मन से त्यागकर सुखपूर्वक रहता है। वह न स्वयं कर्म करता है और न किसी से करवाता है।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्मा और शरीर के बीच भेद को स्पष्ट करता है। आत्मा अकर्ता है और केवल साक्षी है। शरीर कर्म करता है, लेकिन योगी इस साक्षी भाव में स्थित रहता है।

Explanation in Hindi:
आत्मा केवल साक्षी है। शरीर के कर्म करने पर भी योगी सुखपूर्वक रहता है और कर्मों में लिप्त नहीं होता।

Explanation in English:
The self remains as a witness within the body of nine gates, unaffected by actions, while the body performs tasks. The yogi stays in this state of detachment.

श्लोक 14

न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः |
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते || 5.14 ||

अर्थ:
भगवान न तो किसी को कर्ता बनाते हैं, न कर्मों को उत्पन्न करते हैं, और न ही कर्मफल से जोड़ते हैं। यह सब मनुष्य के स्वभाव से होता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यह स्पष्ट करते हैं कि कर्मों का जन्म और उनका फल, सब मनुष्य के स्वभाव और प्रवृत्तियों के कारण होता है। भगवान केवल साक्षी हैं।

Explanation in Hindi:
भगवान कर्मों और उनके फल में हस्तक्षेप नहीं करते। यह सब मनुष्य के स्वभाव और प्रवृत्तियों का परिणाम है।

Explanation in English:
The Lord neither assigns doership nor creates actions or their fruits. These arise naturally from the inherent tendencies of beings.

श्लोक 15

नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः |
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः || 5.15 ||

अर्थ:
परमात्मा न तो किसी के पाप को ग्रहण करते हैं और न ही पुण्य को। अज्ञान से ज्ञान ढक जाता है, जिससे प्राणी भ्रमित हो जाते हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक अज्ञान के प्रभाव को दर्शाता है। भगवान किसी के पाप-पुण्य के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। अज्ञान ही मनुष्य को भ्रम में डालता है।

Explanation in Hindi:
अज्ञान मनुष्य के ज्ञान को ढक देता है। भगवान किसी के पाप-पुण्य के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।

Explanation in English:
Ignorance veils true knowledge, leading beings into delusion. The Lord neither accepts sin nor virtue of anyone.

श्लोक 16

ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः |
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् || 5.16 ||

अर्थ:
जिन लोगों का अज्ञान आत्मज्ञान द्वारा नष्ट हो गया है, उनके लिए यह ज्ञान सूर्य की तरह परमात्मा को प्रकट करता है।

व्याख्या:
यह श्लोक ज्ञान की महिमा का वर्णन करता है। जब अज्ञान का नाश होता है, तो आत्मज्ञान व्यक्ति के भीतर पूर्ण रूप से प्रकाशित हो जाता है और उसे परमात्मा का साक्षात्कार कराता है।

Explanation in Hindi:
आत्मज्ञान अज्ञान को समाप्त करके व्यक्ति के भीतर प्रकाश भर देता है। यह ज्ञान सूर्य की तरह परमात्मा का अनुभव कराता है।

Explanation in English:
When ignorance is destroyed by self-knowledge, that knowledge shines like the sun, revealing the ultimate truth of the Supreme Self.

श्लोक 17

तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः |
गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः || 5.17 ||

अर्थ:
जिनकी बुद्धि, आत्मा, और निष्ठा उस परमात्मा में स्थिर हो गई है, और जो उसे ही अपना अंतिम उद्देश्य मानते हैं, वे ज्ञान के द्वारा पापों से मुक्त होकर पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक परमात्मा में स्थिर रहने वाले योगियों की स्थिति को दर्शाता है। ऐसे लोग ज्ञान के प्रकाश में अपने सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं और मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

Explanation in Hindi:
परमात्मा में स्थिर योगी पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं। वे पुनर्जन्म के चक्र से बाहर निकल जाते हैं।

Explanation in English:
Those whose intellect, self, and faith are firmly established in the Supreme and who have purified themselves with knowledge are liberated from sins and attain freedom from rebirth.

श्लोक 18

विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि |
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः || 5.18 ||

अर्थ:
जो विद्या और विनय से संपन्न ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ते, और चांडाल (नीच व्यक्ति) में समानता देखते हैं, वे सच्चे ज्ञानी होते हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक समभाव की शिक्षा देता है। ज्ञानी व्यक्ति सभी जीवों को समान दृष्टि से देखता है, क्योंकि वह जानता है कि आत्मा सभी में समान है।

Explanation in Hindi:
ज्ञानी व्यक्ति सभी प्राणियों को एक समान देखता है। उसके लिए ऊँच-नीच, जाति-पाति, और भेदभाव का कोई अस्तित्व नहीं होता।

Explanation in English:
The wise see all beings equally, whether it is a learned Brahmin, a cow, an elephant, a dog, or an outcast, as they perceive the same soul in everyone.

श्लोक 19

इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः |
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः || 5.19 ||

अर्थ:
जिनका मन समभाव में स्थित है, उन्होंने इसी जीवन में संसार को जीत लिया है। ब्रह्म निर्दोष और समान है; इसलिए वे ब्रह्म में स्थित हो जाते हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि समभाव (समानता की भावना) से व्यक्ति संसार के सभी बंधनों से मुक्त हो सकता है। समता में स्थित व्यक्ति ब्रह्म को प्राप्त करता है।

Explanation in Hindi:
समभाव से संसार के बंधन समाप्त हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति ब्रह्म में स्थित होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं।

Explanation in English:
Those who are established in equanimity have already conquered the world. Since Brahman is faultless and impartial, they are established in Brahman.

श्लोक 20

न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् |
स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः || 5.20 ||

अर्थ:
जो प्रिय वस्तु मिलने पर प्रसन्न नहीं होता और अप्रिय वस्तु मिलने पर विचलित नहीं होता, जिसकी बुद्धि स्थिर है और जो मोह से रहित है, वह ब्रह्म में स्थित होता है।

व्याख्या:
यह श्लोक भावनाओं पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता को उजागर करता है। ब्रह्मज्ञानी प्रिय और अप्रिय स्थितियों में समान रहता है और सदैव स्थिर बुद्धि से कार्य करता है।

Explanation in Hindi:
प्रिय-अप्रिय परिस्थितियों में समान भाव रखने वाला व्यक्ति ब्रह्म में स्थित होता है। उसकी बुद्धि स्थिर और मोह से मुक्त होती है।

Explanation in English:
A person who is neither elated by desirable outcomes nor disturbed by undesirable ones, and whose intellect is steady and free from delusion, is situated in Brahman.

Bhagwat Geeta Chapter 5: कर्म संन्यास योग Exaplain in Hindi and English | श्लोक 21 – 29

श्लोक 21

बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् |
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते || 5.21 ||

अर्थ:
जिसका मन बाह्य विषयों में आसक्त नहीं है और जो आत्मा में स्थित है, वह ब्रह्म से जुड़कर अक्षय सुख का अनुभव करता है।

व्याख्या:
यह श्लोक बाहरी सुख और आंतरिक शांति के बीच के अंतर को स्पष्ट करता है। बाहरी सुख अस्थायी होता है, जबकि ब्रह्म से जुड़ने वाला सुख शाश्वत और अमिट होता है।

Explanation in Hindi:
जो व्यक्ति बाहरी सुखों में आसक्त नहीं होता और आत्मा में स्थित रहता है, वह ब्रह्म योग से शाश्वत सुख प्राप्त करता है।

Explanation in English:
One who is unattached to external pleasures and is centered in the self enjoys eternal bliss through union with Brahman.

श्लोक 22

ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते |
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः || 5.22 ||

अर्थ:
हे कौन्तेय! इंद्रियों के संपर्क से उत्पन्न होने वाले भोग दुःख का कारण होते हैं, क्योंकि उनका आदि और अंत है। बुद्धिमान व्यक्ति इनमें आनंद नहीं लेता।

व्याख्या:
यह श्लोक अस्थायी सुख की सीमाओं को समझाता है। इंद्रियों के सुख क्षणिक होते हैं और उनके परिणामस्वरूप दुःख उत्पन्न होता है। बुद्धिमान व्यक्ति इस सच्चाई को समझता है और इनसे बचता है।

Explanation in Hindi:
इंद्रिय भोग क्षणिक होते हैं और अंततः दुःख का कारण बनते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति इनसे दूरी बनाए रखता है।

Explanation in English:
Sensual pleasures born of contact with external objects are temporary and lead to misery. The wise do not delight in them.

श्लोक 23

शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् |
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः || 5.23 ||

अर्थ:
जो मनुष्य शरीर छोड़ने से पहले ही काम और क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन कर सकता है, वही योगी और सुखी है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यहां बताते हैं कि आत्म-संयम ही सच्चे सुख का मार्ग है। जो व्यक्ति अपने काम और क्रोध पर नियंत्रण रखता है, वही शांति और स्थायी सुख का अनुभव करता है।

Explanation in Hindi:
काम और क्रोध के वेग को सहन करना आत्म-संयम का प्रतीक है। ऐसा व्यक्ति सच्चे सुख का अनुभव करता है।

Explanation in English:
A person who is able to endure the impulses of desire and anger before shedding the body is a true yogi and attains happiness.

श्लोक 24

योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः |
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति || 5.24 ||

अर्थ:
जो व्यक्ति आंतरिक सुख में स्थित है, आत्मा में रमण करता है और भीतर की ज्योति से प्रबुद्ध है, वही योगी ब्रह्म को प्राप्त करता है।

व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि सच्चा सुख बाहरी संसार में नहीं, बल्कि आत्मा के भीतर है। योगी अपने भीतर ब्रह्म की ज्योति को देखकर शाश्वत शांति और मोक्ष प्राप्त करता है।

Explanation in Hindi:
आंतरिक सुख में रमण करने वाला योगी ब्रह्म का अनुभव करता है और मोक्ष प्राप्त करता है।

Explanation in English:
A yogi who is inwardly content, enjoys within, and is illuminated by inner light attains Brahman and liberation.

श्लोक 25

लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः |
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः || 5.25 ||

अर्थ:
पाप रहित, संदेह से मुक्त, आत्मसंयमी और सभी प्राणियों के हित में रत व्यक्ति ब्रह्म को प्राप्त करता है।

व्याख्या:
यह श्लोक ब्रह्म को प्राप्त करने के गुणों का वर्णन करता है। जो व्यक्ति पापरहित, निःस्वार्थ और शांतचित्त है, वही ब्रह्म के निकट पहुंच सकता है।

Explanation in Hindi:
पवित्र, संदेह-रहित और सभी के हित में लगे हुए व्यक्ति ब्रह्मनिर्वाण प्राप्त करते हैं।

Explanation in English:
Those who are free from sin, doubtless, self-disciplined, and dedicated to the welfare of all beings attain Brahman.

श्लोक 26

कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् |
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् || 5.26 ||

अर्थ:
जिन यति (संन्यासी) काम और क्रोध से मुक्त हैं, जिनका मन संयमित है और जिन्होंने आत्मा को जान लिया है, उनके लिए ब्रह्मनिर्वाण चारों ओर उपस्थित रहता है।

व्याख्या:
यह श्लोक आत्म-संयम और काम-क्रोध से मुक्ति की महिमा को दर्शाता है। जो व्यक्ति इनसे मुक्त होकर आत्मा का साक्षात्कार करता है, वह ब्रह्म को अपने चारों ओर अनुभव करता है।

Explanation in Hindi:
काम और क्रोध से मुक्त आत्म-संयमी व्यक्ति ब्रह्म को हर जगह अनुभव करता है।

Explanation in English:
Those ascetics who are free from desire and anger, self-controlled, and have realized the self attain Brahman, which surrounds them everywhere.

श्लोक 27-28:

स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः |
प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ||
यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः |
विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः || 5.27-28 ||

अर्थ:
बाहरी विषयों से दूर होकर, दृष्टि को भौंहों के बीच स्थिर करते हुए, प्राण और अपान को सम करने वाला, और इंद्रियों, मन, तथा बुद्धि को संयमित करने वाला, जो भय, क्रोध और इच्छा से मुक्त है, वह सदा के लिए मुक्त हो जाता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण ध्यान और संयम का महत्व समझाते हैं। आत्म-संयम और ध्यान से व्यक्ति भय, क्रोध, और इच्छाओं से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।

Explanation in Hindi:
ध्यान और संयम से इच्छाओं और भय से मुक्त व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है। यह श्लोक ध्यान की सही विधि का वर्णन करता है।

Explanation in English:
By practicing focus, controlling the senses, mind, and intellect, and by becoming free from desires, fear, and anger, one attains liberation. These verses describe the path of meditation.

श्लोक 29

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् |
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति || 5.29 ||

अर्थ:
जो मुझे यज्ञ और तप का भोक्ता, समस्त लोकों का स्वामी, और सभी प्राणियों का मित्र जानता है, वह शांति प्राप्त करता है।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण यहाँ बताते हैं कि सभी यज्ञ और तप मुझे अर्पित किए जाते हैं। जो व्यक्ति मुझे परमस्वामी और सभी का सच्चा मित्र मानता है, वह स्थायी शांति का अनुभव करता है।

Explanation in Hindi:
जो भगवान को यज्ञों का भोक्ता, लोकों का स्वामी, और सभी प्राणियों का सच्चा मित्र मानता है, वही सच्ची शांति प्राप्त करता है।

Explanation in English:
One who knows me as the enjoyer of sacrifices and austerities, the Supreme Lord of all worlds, and the benefactor of all beings attains true peace.

अध्याय 5: निष्कर्ष

कर्म संन्यास योग अध्याय बताता है कि कर्म और ज्ञान का संतुलन मोक्ष का मार्ग है। बाहरी सुखों से विरक्त होकर, आत्मा में स्थित रहकर, और ध्यान व आत्म-संयम द्वारा इच्छाओं और क्रोध पर विजय पाकर ही ब्रह्म को प्राप्त किया जा सकता है। यह अध्याय समभाव, आत्म-संयम, और भगवान में पूर्ण विश्वास की महिमा को स्पष्ट करता है।

5 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. अध्याय 5 का मुख्य संदेश क्या है?

अध्याय 5 कर्म और संन्यास का समन्वय सिखाता है और आत्म-संयम, समभाव, और ध्यान के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।

2. ब्रह्मनिर्वाण का क्या अर्थ है?

ब्रह्मनिर्वाण का अर्थ है भगवान से एकाकार होना और संसार के चक्र से मुक्त होकर शाश्वत शांति प्राप्त करना।

3. काम और क्रोध पर विजय का क्या महत्व है?

काम और क्रोध पर विजय व्यक्ति को आत्म-संयम और स्थायी शांति की ओर ले जाती है, जो मोक्ष का मार्ग है।

4. ध्यान का क्या महत्व बताया गया है?

ध्यान से व्यक्ति मन और इंद्रियों को नियंत्रित करता है, जिससे वह बाहरी सुखों से विरक्त होकर आत्मा में स्थित हो पाता है।

5. भगवान को सभी प्राणियों का मित्र क्यों कहा गया है?

भगवान सभी प्राणियों के हितैषी और उनकी रक्षा करने वाले हैं। वे सभी के लिए शांति और सुख का स्रोत हैं।

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