Popular bhagwat geeta shlok in hindi 🔥🔥 : भगवत गीता के 12 लोकप्रिय श्लोक भावार्थ के साथ: गीता श्लोक का महत्व महाभारत युद्ध से पहले ही सुनाया गया था, लेकिन उसका वास्तविक प्रचार भगवान श्री कृष्ण द्वारा महाभारत के क्षेत्र में किया गया था। उस समय भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म के बारे में शिक्षा दी और उसे गीता के 18 अध्यायों में बांटा।
इससे पहले भगवान विष्णु ने भगवान सूर्य को इसे सुनाया था, परंतु इसे गीता के रूप में अधिक लोगों तक पहुंचाने का कार्य भगवान श्री कृष्ण ने किया। इसे पढ़कर और सुनकर जीने-मरने का भय दिल से दूर हो जाता है और हमें कर्म करने की समझ मिलती है, जिससे कि हमारे उपाय व परिणाम हमें अपनी कर्म भूमिका को निभाना चाहिए।
जब महाभारत का महाविनाशकारी युद्ध होने वाला था और अर्जुन युद्ध करने से इनकार कर रहे थे, (Bhagwat Geeta Shlok In Hindi) तब भगवान श्री कृष्ण ने गीता श्लोक के माध्यम से अर्जुन को समझाया। गीता श्लोक को दुनिया के बड़े-बड़े विद्वान्स् ने पढ़ा और माना है। इसमें उस क्षमता है कि वह हमारी समस्याओं का समाधान बिना किसी जटिलता के कर सकता है।
Popular Bhagwat Geeta Shlok In Hindi : भगवत गीता के 15 लोकप्रिय श्लोक भावार्थ के साथ हिंदी में
अध्याय 2, श्लोक 19
संस्कृत: य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥ (भगवद गीता 2.19)
हिंदी: जो यह सोचता है कि आत्मा मारता है या मारा जाता है, वे दोनों ही अज्ञान में हैं। आत्मा न मारता है और न मारा जाता है।
English: He who thinks that the soul kills, and he who thinks of it as killed, are both ignorant. The soul kills not, nor is it killed.
अर्थ: भगवान कृष्ण इस श्लोक में बताते हैं कि आत्मा अजर-अमर है। इसे न तो मारा जा सकता है और न ही यह किसी को मारता है। यह श्लोक हमें आत्मा की अमरता और अनन्तता को समझने की प्रेरणा देता है।
अध्याय 2, श्लोक 47
संस्कृत: कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (भगवद गीता 2.47)
हिंदी: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, कभी उसके फलों में नहीं। इसलिए तुम कर्मफल का कारण मत बनो और न ही कर्म करने में आसक्ति रखो।
English: You have a right to perform your prescribed duties, but you are not entitled to the fruits of your actions. Never consider yourself to be the cause of the results of your activities, nor be attached to inaction.
अर्थ: भगवान कृष्ण कहते हैं कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, लेकिन उसके परिणामों के प्रति आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। यह श्लोक हमें निष्काम कर्म की प्रेरणा देता है।
अध्याय 4, श्लोक 7-8
संस्कृत: यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ (भगवद गीता 4.7)
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥ (भगवद गीता 4.8)
हिंदी: हे भारत, जब-जब धर्म की ग्लानि होती है और अधर्म का उत्थान होता है, तब-तब मैं अपने-आपको प्रकट करता हूँ।
साधुओं की रक्षा और दुष्टों का विनाश करने के लिए, धर्म की स्थापना के लिए, मैं युग-युग में अवतरित होता हूँ।
English: Whenever there is a decline in righteousness and an increase in unrighteousness, O Bharata, at that time I manifest myself on earth.
To protect the righteous, to annihilate the wicked, and to reestablish the principles of dharma, I appear millennium after millennium.
अर्थ: भगवान कृष्ण बताते हैं कि जब भी धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब वे संसार में अवतरित होते हैं। यह श्लोक हमें यह विश्वास दिलाता है कि भगवान सदा धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने के लिए हमारे साथ हैं।
अध्याय 6, श्लोक 5
संस्कृत: उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥ (भगवद गीता 6.5)
हिंदी: मनुष्य को स्वयं अपने द्वारा ही उठाना चाहिए, स्वयं को नीचे नहीं गिराना चाहिए। क्योंकि आत्मा ही उसका मित्र है और आत्मा ही उसका शत्रु है।
English: One must elevate, not degrade, oneself by one’s own mind. The mind is the friend of the conditioned soul, and his enemy as well.
अर्थ: भगवान कृष्ण बताते हैं कि हमें अपने मन और आत्मा को उन्नत करने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य का मन ही उसका सबसे बड़ा मित्र और सबसे बड़ा शत्रु है। यह श्लोक हमें आत्म-संयम और आत्म-विकास की प्रेरणा देता है।
अध्याय 6, श्लोक 16-17
संस्कृत: नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन॥ (भगवद गीता 6.16)
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥ (भगवद गीता 6.17)
हिंदी: जो व्यक्ति अत्यधिक खाता है या बिल्कुल नहीं खाता, जो बहुत सोता है या बिल्कुल नहीं सोता, वह योग में सफल नहीं हो सकता।
योग, जो नियमित आहार और विहार, कर्मों में संतुलित प्रयास, और सोने और जागने में उचित संतुलन रखने वाले व्यक्ति के लिए होता है, दुःख का नाश करता है।
English: There is no possibility of one’s becoming a yogi if one eats too much or eats too little, sleeps too much or does not sleep enough.
He who is temperate in his habits of eating, sleeping, working, and recreation can mitigate all material pains by practicing the yoga system.
अर्थ: भगवान कृष्ण बताते हैं कि योग का अभ्यास संतुलित जीवनशैली से ही संभव है। हमें खाने, सोने, कार्य करने और आराम करने में संतुलन बनाए रखना चाहिए। यह श्लोक हमें संयमित और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi and popular shlok with meaning in English
अध्याय 9, श्लोक 22
संस्कृत: अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥ (भगवद गीता 9.22)
हिंदी: जो अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते हैं, मैं उनके योगक्षेम का वहन करता हूँ।
English: To those who are constantly devoted and who worship Me with love, I carry what they lack and preserve what they have.
अर्थ: भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो भक्त उन्हें अनन्य प्रेम और भक्ति से पूजते हैं, उनकी सभी आवश्यकताओं का ध्यान भगवान स्वयं रखते हैं। यह श्लोक हमें भगवान की भक्ति में समर्पित होने की प्रेरणा देता है।
अध्याय 12, श्लोक 13-14
संस्कृत: अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी॥ (भगवद गीता 12.13)
सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥ (भगवद गीता 12.14)
हिंदी: जो सब प्राणियों से द्वेष नहीं करता, जो सबका मित्र और करुणाशील है, जो ममता और अहंकार से रहित है, जो सुख-दुःख में सम रहता है और जो क्षमाशील है।
जो सदा संतुष्ट है, जो योगी है, जिसने आत्मा को वश में किया है, जो दृढ़ निश्चयी है, जिसने मन और बुद्धि को मुझमें अर्पण किया है, ऐसा मेरा भक्त मुझे प्रिय है।
English: He who is free from malice towards all beings, friendly and compassionate, free from possessiveness and ego, equal in joy and sorrow, and forgiving.
Ever content, mentally disciplined, self-controlled, and firm in his determination, with mind and intellect dedicated to Me, such a devotee is dear to Me.
अर्थ: भगवान कृष्ण बताते हैं कि सच्चा भक्त वह है जो सभी जीवों से द्वेष नहीं करता, सभी का मित्र और करुणाशील होता है, अहंकार और ममता से मुक्त रहता है, सुख-दुःख में समान रहता है और क्षमाशील होता है। ऐसा व्यक्ति सदा संतुष्ट रहता है और भगवान को प्रिय होता है।
अध्याय 13, श्लोक 27
संस्कृत: समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति॥ (भगवद गीता 13.27)
हिंदी: जो व्यक्ति सभी जीवों में समान रूप से स्थित परमेश्वर को देखता है, वह वास्तव में देखता है।
English: One who sees the Supreme Lord present equally in all beings, the imperishable among the perishable, truly sees.
अर्थ: भगवान कृष्ण बताते हैं कि जो व्यक्ति सभी जीवों में एक समान परमेश्वर को देखता है, वही सच्चे अर्थों में देखता है। यह श्लोक हमें सभी जीवों में ईश्वर की समान उपस्थिति को समझने और सम्मान देने की प्रेरणा देता है।
अध्याय 14, श्लोक 22-23
संस्कृत: प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।
न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति॥ (भगवद गीता 14.22)
उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचाल्यते।
गुणा वर्तन्त इत्येवं योऽवतिष्ठति नेङ्गते॥ (भगवद गीता 14.23)
हिंदी: हे पाण्डव, जो प्रकाश, प्रवृत्ति और मोह को न तो द्वेष करता है और न ही जब वे नहीं होते तो उन्हें चाहता है।
जो व्यक्ति गुणों से विचलित नहीं होता और जो यह जानता है कि गुण ही कार्य कर रहे हैं, वह अचल रहता है।
English: O son of Pandu, he who does not hate illumination, attachment, and delusion when they are present, nor longs for them when they disappear.
He who remains undisturbed, knowing that the modes of nature alone are active, who is ever established and never wavers.
अर्थ: भगवान कृष्ण बताते हैं कि सच्चा ज्ञानी व्यक्ति वह है जो प्रकृति के गुणों से प्रभावित नहीं होता और न ही उनसे द्वेष करता है। वह व्यक्ति स्थिर रहता है और जानता है कि ये सभी गुण ही कार्य कर रहे हैं। यह श्लोक हमें स्थिरता और प्रकृति के गुणों से प्रभावित न होने की प्रेरणा देता है।
भगवत गीता के फेमस श्लोक: Bhagwat Geeta Shlok In Hindi
अध्याय 15, श्लोक 7
संस्कृत: ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति॥ (भगवद गीता 15.7)
हिंदी: इस संसार में जीव मेरी सनातन अंश हैं। वे प्रकृति में स्थित मन और छह इंद्रियों को खींचते हैं।
English: The living entities in this conditioned world are My eternal fragmental parts. Due to conditioned life, they are struggling very hard with the six senses, which include the mind.
अर्थ: भगवान कृष्ण बताते हैं कि सभी जीव उनके सनातन अंश हैं और वे प्रकृति में स्थित मन और इंद्रियों से संघर्ष कर रहे हैं। यह श्लोक हमें हमारे ईश्वर के साथ संबंध (Bhagwat Geeta Shlok In Hindi) और इस संसार में हमारे संघर्ष को समझने की प्रेरणा देता है।
अध्याय 18, श्लोक 20
संस्कृत: सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते।
अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम्॥ (भगवद गीता 18.20)
हिंदी: जो ज्ञान सभी प्राणियों में एक अविनाशी तत्व को देखता है, जो अविभाजित होते हुए भी विभाजित है, उसे सात्त्विक ज्ञान कहा जाता है।
English: That knowledge by which one undivided spiritual nature is seen in all living entities, though they are divided into innumerable forms, is said to be in the mode of goodness.
अर्थ: भगवान कृष्ण बताते हैं कि सात्त्विक ज्ञान वह है जो सभी जीवों में एक अविनाशी आत्मा को देखता है। यह श्लोक हमें सभी जीवों में आत्मा की समानता और अविभाजितता को समझने की प्रेरणा देता है।
भगवद गीता श्लोक और उनका हिंदी में अर्थ
अध्याय 18, श्लोक 66
संस्कृत: सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥ (भगवद गीता 18.66)
हिंदी: सभी धर्मों को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, चिंता मत करो।
English: Abandon all varieties of dharma and just surrender unto Me. I shall deliver you from all sinful reactions; Bhagwat Geeta Shlok In Hindi – do not fear.
अर्थ: भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि सभी धर्मों को त्याग कर केवल उनकी शरण में आना चाहिए। भगवान सभी पापों से मुक्ति प्रदान करेंगे। यह श्लोक हमें पूर्ण समर्पण और भगवान पर विश्वास रखने की प्रेरणा देता है।
अध्याय 11, श्लोक 55
संस्कृत: मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्गवर्जितः।
निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव॥ (भगवद गीता 11.55)
हिंदी: जो मेरे कर्म करता है, जो मुझे सर्वोच्च मानता है, जो मुझसे प्रेम करता है, जो सभी जीवों से द्वेष रहित है, वह मुझे प्राप्त करता है, हे पाण्डव।
English: He who performs My tasks, who looks upon Me as the supreme goal, who is devoted to Me, free from attachment, and without enmity towards any creature, O son of Pandu, he attains Me.
अर्थ: भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति भगवान के कार्य करता है, उन्हें सर्वोच्च मानता है और सभी जीवों से द्वेष रहित है, वह भगवान को प्राप्त करता है। यह श्लोक हमें भगवान की सेवा और प्रेम में समर्पित होने की प्रेरणा देता है।
अध्याय 3, श्लोक 35
संस्कृत: श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥ (भगवद गीता 3.35)
हिंदी: अपने धर्म का पालन करना, चाहे वह दोषपूर्ण हो, दूसरे के धर्म को अच्छी तरह से निभाने से बेहतर है। अपने धर्म में मरना बेहतर है, क्योंकि दूसरे के धर्म में भय है।
English: It is better to perform one’s own duties imperfectly than to master the duties of another. By fulfilling the obligations one is born with, a person never comes to grief.
अर्थ: भगवान कृष्ण बताते हैं (Bhagwat Geeta Shlok In Hindi) कि अपने धर्म का पालन करना, चाहे वह दोषपूर्ण हो, दूसरे के धर्म को अच्छी तरह से निभाने से बेहतर है। अपने धर्म में मरना बेहतर है, क्योंकि दूसरे के धर्म में भय है। यह श्लोक हमें अपने कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा देता है।
अध्याय 4, श्लोक 9
संस्कृत: जन्म कर्म च मे दिव्यं एवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥ (भगवद गीता 4.9)
हिंदी: जो मेरे दिव्य जन्म और कर्म को सत्य रूप में जानता है, वह शरीर त्यागने के बाद पुनर्जन्म नहीं लेता, बल्कि मुझे प्राप्त करता है, हे अर्जुन।
English: One who knows the transcendental nature of My appearance and activities does not, upon leaving the body, take his birth again in this material world, but attains My eternal abode, O Arjuna.
अर्थ: भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति उनके दिव्य जन्म और कर्म को सत्य रूप में जानता है, वह मृत्यु के बाद पुनर्जन्म नहीं लेता, बल्कि भगवान को प्राप्त करता है। यह श्लोक हमें भगवान के दिव्य स्वरूप और उनके कर्मों को समझने की प्रेरणा देता है- Bhagwat Geeta Shlok In Hindi।
Conclusion
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: भगवद् गीता एक ऐसी अमूल्य धरोहर है जिसने अपने अद्वितीय उपदेशों से मानवता को दिशा दी है। इसमें भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म, कर्म और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर शिक्षा दी है, जिससे हमें सच्चे जीवन के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। गीता के श्लोक आज भी हमें जीवन में सही मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और हमें जीवन के हर क्षण में साहस, समर्थन और समझने की शक्ति प्रदान करते हैं।
FAQ
प्रश्न: भगवद् गीता क्या है?
उत्तर: भगवद् गीता महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। इसमें धर्म, कर्म और भक्ति के सिद्धांत हैं।
प्रश्न: गीता श्लोकों की संख्या क्या है?
उत्तर: भगवद् गीता में कुल 700 श्लोक हैं, जो 18 अध्यायों में विभाजित हैं।
प्रश्न: गीता श्लोक का महत्व क्या है?
उत्तर: गीता श्लोक हमें जीवन के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं और धर्म, कर्म और ज्ञान के सिद्धांतों को समझाते हैं।
प्रश्न: भगवद् गीता का अनुशासन किसने किया?
उत्तर: भगवद् गीता का अनुशासन भगवान श्री कृष्ण ने किया था, जब उन्होंने महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध के समय अर्जुन को उसके धर्म और कर्म के बारे में बोध दिया।
प्रश्न: गीता श्लोक किसे समर्पित है?
उत्तर: गीता श्लोक महाभारत के समय भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को समर्पित हैं, जिनमें उन्होंने धर्म, कर्म और जीवन के तत्वों का विवेचन किया।