Srimad Bhagwat Geeta In Hindi PDF: भगवद गीता के श्लोक अत्यंत महत्वपूर्ण और अनमोल हैं, जो अद्वितीय ज्ञान और आध्यात्मिक सत्य का संगम प्रस्तुत करते हैं। ये श्लोक हमारे आत्मा के आंतरिक आध्यात्मिक अन्वेषण को प्रेरित करते हैं और हमें अद्वितीय सत्य की ओर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इस 700 श्लोकों वाली भगवद गीता के PDF में न केवल संस्कृत श्लोक शामिल हैं, बल्कि उनके शब्दार्थ, हिंदी अनुवाद, और व्याख्या भी प्रस्तुत की गई है, जिससे यह एक संपूर्ण अध्ययन सामग्री बन जाती है।
भागवत गीता के 700 श्लोक हिंदी में: Srimad Bhagwat Geeta In Hindi PDF
धृतराष्ट्र उवाच:धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥ (1.1)
हिंदी में अर्थ: धृतराष्ट्र ने कहा: हे संजय! धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में एकत्रित होकर युद्ध की इच्छा रखने वाले, मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया? उन्होंने वहाँ पहुँच कर क्या कदम उठाए? इस पवित्र युद्धभूमि में उन्होंने क्या कार्य किया?
सञ्जय उवाच: दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्॥ (1.2)
हिंदी में अर्थ: संजय ने कहा: हे राजन, पांडवों की सेना को युद्ध के लिए सुसज्जित और व्यवस्थित देखकर, राजा दुर्योधन ने अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर यह कहा।
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥ (1.3)
हिंदी में अर्थ: दुर्योधन ने कहा: हे आचार्य! पांडु के पुत्रों की इस विशाल सेना को देखिए, जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने सुव्यवस्थित किया है। यह सेना कितनी संगठित और प्रभावशाली है।
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः॥ (1.4)
हिंदी में अर्थ: इस सेना में, भीम और अर्जुन के समान महान धनुर्धारी वीर उपस्थित हैं। यहाँ युयुधान, विराट, और महारथी द्रुपद भी हैं, जो युद्ध में निपुण और अद्वितीय योद्धा हैं।
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः॥ (1.5)
हिंदी में अर्थ: धृष्टकेतु, चेकितान, और वीर्यवान काशी के राजा, पुरुजित, कुन्तिभोज, और शैब्य, ये सभी महान योद्धा और श्रेष्ठ व्यक्ति हैं, जो पांडवों की सेना में शामिल हैं।
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥ (1.6)
हिंदी में अर्थ: युद्ध में निपुण युधामन्यु, वीर्यवान उत्तमौजा, सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु, और द्रौपदी के पाँचों पुत्र, ये सभी महारथी हैं, जो पांडवों की सेना की शोभा बढ़ा रहे हैं।
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अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते॥ (1.7)
हिंदी में अर्थ: अब, हे श्रेष्ठ ब्राह्मण, हमारे पक्ष में विशिष्ट योद्धा कौन-कौन हैं, उन्हें जानिए। मैं आपको अपनी सेना के प्रमुख योद्धाओं के बारे में बताने जा रहा हूँ, जो युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च॥ (1.8)
हिंदी में अर्थ: आप स्वयं, भीष्म, कर्ण, युद्ध में अजय कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और सौमदत्ति के पुत्र, ये सभी महान योद्धा हमारे पक्ष में हैं।
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अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः॥ (1.9)
हिंदी में अर्थ: इसके अतिरिक्त, कई और भी वीर योद्धा हमारे पक्ष में हैं, जो मेरे लिए अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार हैं। ये सभी विभिन्न प्रकार के शस्त्रों का प्रयोग करने में निपुण हैं और युद्ध कला में पारंगत हैं।
Srimad Bhagwat Geeta In Hindi PDF
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्॥ (1.10)
हिंदी में अर्थ: हमारी सेना, जिसे भीष्म पितामह द्वारा संरक्षित किया गया है, अपार्याप्त है (असीमित है)। जबकि पांडवों की सेना, जिसे भीम द्वारा संरक्षित किया गया है, पर्याप्त है (सीमित है)।
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि॥ (1.11)
हिंदी में अर्थ: हमारी सेना के सभी अंगों में अपने-अपने स्थान पर स्थित सभी योद्धाओं को भीष्म पितामह की रक्षा करनी चाहिए। वे सभी योद्धा अपने-अपने स्थानों पर भीष्म पितामह को सुरक्षित रखें।
तस्य संजनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्॥ (1.12)
हिंदी में अर्थ: उस समय, कुरुवंश के वृद्ध पितामह भीष्म ने, दुर्योधन को उत्साहित करते हुए, जोर से सिंहनाद किया और अपने शंख को प्रचंड ध्वनि से बजाया।
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्॥ (1.13)
हिंदी में अर्थ: फिर, शंख, भेरी, नगाड़े, और तुरही एक साथ बज उठे, जिससे एक प्रचंड ध्वनि उत्पन्न हुई जो आकाश को गुँजाने लगी।
Srimad Bhagwat Geeta In Hindi PDF
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः॥ (1.14)
हिंदी में अर्थ: उस समय, सफेद घोड़ों से युक्त रथ में स्थित भगवान कृष्ण और अर्जुन ने भी अपने दिव्य शंख बजाए।
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः॥ (1.15)
हिंदी में अर्थ: भगवान कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख बजाया, और महान योद्धा भीम ने पौण्ड्र नामक विशाल शंख बजाया।
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अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ॥ (1.16)
हिंदी में अर्थ: कुंतीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक शंख बजाया, जबकि नकुल और सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए।
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥ (1.17)
हिंदी में अर्थ: काशीराज, जो महान धनुर्धर हैं, शिखंडी, महारथी धृष्टद्युम्न, विराट, और अपराजित योद्धा सात्यकि, इन सभी ने अपने-अपने शंख बजाए।
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक्॥ (1.18)
हिंदी में अर्थ: द्रुपद और द्रौपदी के पाँचों पुत्र, और महान बलशाली अभिमन्यु, जिन्होंने विभिन्न दिशाओं में अपने शंख बजाए।
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन्॥ (1.19)
हिंदी में अर्थ: उस शंखध्वनि ने, जो आकाश और पृथ्वी को गुँजाने लगी थी, धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदयों को कंपा दिया और उनकी आत्माओं को भयभीत कर दिया।
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः॥ (1.20)
हिंदी में अर्थ: इसके बाद, कपिध्वज (हनुमान का ध्वज लिए हुए) अर्जुन ने, जब युद्ध शुरू होते देखा और धृतराष्ट्र के पुत्रों की सेना को व्यवस्थित देखा, तो अपना धनुष उठाया।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपतिः।
अर्जुन उवाच।
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत॥ (1.21)
हिंदी में अर्थ: उस समय, अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा: हे अच्युत! कृपया मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले चलो।
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे॥ (1.22)
हिंदी में अर्थ: ताकि मैं इन योद्धाओं को देख सकूँ, जो युद्ध के लिए यहाँ एकत्रित हुए हैं, और यह जान सकूँ कि मुझे इस महान युद्ध में किनके साथ लड़ना होगा।
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योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्धर्षे युद्धे प्रियचिकीर्षवः॥ (1.23)
हिंदी में अर्थ: मैं उन योद्धाओं को देखना चाहता हूँ जो धृतराष्ट्र के दुष्ट पुत्र दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए युद्ध में शामिल हुए हैं और यहाँ युद्ध करने के लिए एकत्रित हुए हैं।
सञ्जय उवाच।
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्॥ (1.24)
हिंदी में अर्थ: संजय ने कहा: हे भारत, गुडाकेश (अर्जुन) द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर, हृषीकेश (श्रीकृष्ण) ने दोनों सेनाओं के बीच में उत्तम रथ को स्थिर कर दिया। Srimad Bhagwat Geeta In Hindi PDF
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्।
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति॥ (1.25)
हिंदी में अर्थ: भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे महान योद्धाओं के समक्ष और सभी राजाओं के सामने, हृषीकेश ने कहा: हे पार्थ, देखो इन कुरुओं को जो यहाँ एकत्रित हुए हैं।
तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितॄनथ पितामहान्।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा॥ (1.26)
हिंदी में अर्थ: वहाँ अर्जुन ने अपने खड़े हुए पितामहों, गुरुओं, मामा, भाई, पुत्र, पौत्र और मित्रों को देखा।
श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्॥ (1.27)
हिंदी में अर्थ: अपने श्वसुरों और सुहृदों (मित्रों) को दोनों सेनाओं में देख कर, अर्जुन ने उन सभी को अपने रिश्तेदारों के रूप में खड़ा देखा।
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत्।
अर्जुन उवाच।
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्॥ (1.28)
हिंदी में अर्थ: कृपा (करुणा) से अभिभूत होकर, अर्जुन ने विषाद (दुःख) से भरकर यह कहा: हे कृष्ण, इन अपने स्वजनों को युद्ध की इच्छा से यहाँ खड़ा देख, मैं अत्यंत दुःखी हो गया हूँ।
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते॥ (1.29)
हिंदी में अर्थ: मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं, मेरा मुख सूख रहा है, मेरा शरीर कांप रहा है, और मेरे रोएं खड़े हो रहे हैं।
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते।
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः॥ (1.30)
हिंदी में अर्थ: मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से गिर रहा है, मेरी त्वचा जल रही है, मैं खड़ा नहीं रह पा रहा हूँ, और मेरा मन चक्कर खा रहा है। Srimad Bhagwat Geeta In Hindi PDF
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे॥ (1.31)
हिंदी में अर्थ: हे केशव, मैं अनिष्ट संकेत देख रहा हूँ, और अपने स्वजनों को युद्ध में मारकर मुझे कोई कल्याण दिखाई नहीं दे रहा है।
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा॥ (1.32)
हिंदी में अर्थ: हे कृष्ण, मैं विजय, राज्य और सुख की इच्छा नहीं करता हूँ। हे गोविन्द, हमें राज्य, भोग और जीवन की क्या आवश्यकता है?
येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च।
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च॥ (1.33)
हिंदी में अर्थ: जिनके लिए हम राज्य, भोग और सुख की कामना करते हैं, वे सभी यहाँ युद्ध में अपने प्राण और धन त्याग कर खड़े हुए हैं। Srimad Bhagwat Geeta In Hindi PDF
आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः।
मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा॥ (1.34)
हिंदी में अर्थ: गुरुजन, पिता, पुत्र, पितामह, मामा, श्वसुर, पौत्र, साले और अन्य संबंधी यहाँ युद्ध में उपस्थित हैं।
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन।
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते॥ (1.35
हिंदी में अर्थ: हे मधुसूदन, मैं इन्हें मारना नहीं चाहता, भले ही वे मुझे मार डालें। तीनों लोकों के राज्य के लिए भी, मैं इन्हें नहीं मारना चाहता, तो पृथ्वी के राज्य के लिए तो बिल्कुल नहीं।
निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन।
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः॥ (1.36)
हिंदी में अर्थ: हे जनार्दन, धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या सुख मिलेगा? इन आक्रमणकारियों को मारकर हम पर पाप ही तो आएगा।
तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव॥ (1.37)
हिंदी में अर्थ: इसलिए, हमें अपने ही बंधुओं, धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारना उचित नहीं है। हे माधव, अपने स्वजनों को मारकर हम कैसे सुखी हो सकते हैं?
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्॥ (1.38)
हिंदी में अर्थ: यद्यपि ये लोभ से अंधे हो चुके हैं और कुल के विनाश में दोष नहीं देख पा रहे हैं, और मित्रों के साथ धोखा करने में पाप नहीं देख रहे हैं।
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन॥ (1.39)
हिंदी में अर्थ: तो भी, हे जनार्दन, हमें यह जानकर भी, कुल के विनाश के दोष से कैसे नहीं बचना चाहिए, जो इस पाप को समझते हैं?
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत॥ (1.40)
हिंदी में अर्थ: कुल के विनाश में, कुल के शाश्वत धर्म नष्ट हो जाते हैं। धर्म के नष्ट होने पर, पूरा कुल अधर्म से भर जाता है।
गीता के श्लोकों को याद करने के लिए 5 सरल तरीके:
- अर्थ समझें: श्लोकों के अर्थ को गहराई से समझने से उन्हें याद करना आसान हो जाता है।
- दोहराना: प्रतिदिन श्लोकों को दोहराने से उनकी याददाश्त मजबूत होती है।
- दृश्य सामग्री: श्लोकों को चित्र या दृश्य के रूप में देखने और समझने से याद रखना सरल हो जाता है।
- दूसरों को सिखाना: दूसरों को भगवद गीता के श्लोक सिखाने से आपको भी उन्हें याद रखने में मदद मिलती है।
- अनुष्ठान में शामिल करें: श्लोकों को अपने दैनिक पूजा-पाठ या अनुष्ठान में शामिल करने से उन्हें याद करना आसान हो जाता है।