Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: पिछले ब्लॉग में हमने भगवद गीता के पहले अध्याय के श्लोक 1 से 27 तक का विस्तार से अध्ययन किया था। उसमें हमने देखा कि अर्जुन कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में अपने परिवार, गुरुजनों और मित्रों को युद्ध के लिए तैयार देखता है, जिससे उसका मन विचलित हो जाता है। अब, इस ब्लॉग में हम अध्याय 1 के श्लोक 28 से 47 तक की व्याख्या करेंगे, जहाँ अर्जुन के मन में उत्पन्न होने वाले संदेह और उसके मानसिक संघर्ष का वर्णन किया गया है।
श्लोक 28 से 47 का विश्लेषण:
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: इन श्लोकों में अर्जुन का मनोविज्ञान और गहन आत्ममंथन स्पष्ट होता है। वह श्रीकृष्ण से कहता है कि अपने प्रियजनों को युद्ध में मरते हुए देखने की कल्पना मात्र से उसका शरीर कांपने लगता है और उसे घोर विषाद महसूस होता है। अर्जुन युद्ध के परिणामस्वरूप होने वाले पारिवारिक विनाश और सामाजिक अव्यवस्था की चिंता करता है। वह यह सोचकर उदास हो जाता है कि इस युद्ध में अपने ही लोगों की हत्या से क्या लाभ होगा।
अर्जुन की इस मनोदशा को समझते हुए श्रीकृष्ण उसे अपने कर्तव्यों की याद दिलाने और सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करते हैं।
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi
श्लोक 25
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्।
उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति॥25॥
अर्थ: भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने, और सभी राजाओं के बीच, श्रीकृष्ण ने कहा: हे पार्थ, देखो इन कुरुओं को जो यहाँ एकत्र हुए हैं।
व्याख्या: श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वह अपने रथ को उन लोगों के सामने खड़ा करें जो उनके प्रियजन और गुरुओं में शामिल हैं, ताकि वह देख सके कि उसके सामने कौन-कौन युद्ध में खड़ा है Bhagwat Geeta Shlok In Hindi.
श्लोक 26
तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितॄन् अथ पितामहान्।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा॥26॥
अर्थ: वहाँ अर्जुन ने अपने पिता, पितामह, आचार्य, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों और सखाओं को खड़ा देखा।
व्याख्या: अर्जुन ने युद्धभूमि में अपने परिवार के सदस्यों, मित्रों और गुरुजनों को देखा, जो दोनों पक्षों में खड़े थे। यह दृश्य उसे अत्यंत चिंतित कर देता है।
श्लोक 27
श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्॥27॥
अर्थ: अपने श्वसुरों और मित्रों को दोनों सेनाओं में खड़ा देखकर कौन्तेय (अर्जुन) ने सभी अपने बंधुओं को युद्ध के लिए खड़ा देखा।
व्याख्या: अर्जुन ने युद्धभूमि में अपने निकट संबंधियों और मित्रों को खड़ा देखा। यह देखना उसके लिए अत्यंत पीड़ादायक था।
श्लोक 28
कृपया परयाऽऽविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत्।
अर्जुन उवाच:
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्॥28॥
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi
अर्थ: कृपया से अभिभूत होकर, अर्जुन विषाद में निमग्न होकर यह कहता है: हे कृष्ण, इन युद्ध के इच्छुक अपने स्वजनों को देखकर मेरा मन दुखी हो गया है।
व्याख्या: अर्जुन अपने संबंधियों को युद्ध के लिए तैयार देखकर अत्यंत द्रवित हो गया और उसने श्रीकृष्ण से अपनी भावना प्रकट की।
श्लोक 29
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते॥29॥
अर्थ: मेरे शरीर के अंग शिथिल हो रहे हैं, मेरा मुख सूख रहा है, मेरे शरीर में कंपन हो रहा है और मेरे रोमांच खड़े हो रहे हैं।
व्याख्या: अर्जुन को युद्ध की स्थिति देखकर अत्यधिक मानसिक और शारीरिक तनाव हो रहा है। उसे भय और चिंता से जकड़न महसूस हो रही है।
श्लोक 30
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते।
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः॥30॥
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi
अर्थ: गाण्डीव (धनुष) मेरे हाथ से गिर रहा है, मेरी त्वचा जल रही है, मैं खड़ा नहीं रह पा रहा हूँ और मेरा मन चक्कर खा रहा है।
व्याख्या: अर्जुन की मानसिक और शारीरिक स्थिति युद्ध के दबाव में बिगड़ रही है। वह अपने धनुष को भी संभाल नहीं पा रहा है और उसे चक्कर आ रहे हैं।
श्लोक 31
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे॥31॥
अर्थ: हे केशव, मैं विपरीत शकुन देख रहा हूँ और अपने स्वजनों को युद्ध में मारकर कोई भलाई नहीं देखता हूँ।
व्याख्या: अर्जुन अपने प्रियजनों के विनाश के बाद संभावित दुखद परिणामों को देखकर आशंकित हो रहा है और उसे युद्ध में कोई भलाई नजर नहीं आ रही है Bhagwat Geeta Shlok In Hindi.
श्लोक 32
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा॥32॥
अर्थ: Bhagwat Geeta Shlok In Hindi – हे कृष्ण, मैं न विजय की इच्छा करता हूँ, न राज्य की और न ही सुखों की। हे गोविन्द, हमें राज्य, भोग या जीवन से क्या लाभ होगा?
व्याख्या: अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है कि उसे विजय, राज्य और सुखों में कोई रुचि नहीं है, क्योंकि इन सभी का मूल्य उसके प्रियजनों के जीवन से कम है।
श्लोक 33
येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च।
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च॥33॥
अर्थ: जिनके लिए हम राज्य, भोग और सुखों की कामना करते हैं, वे ही हमारे प्रियजन यहाँ युद्ध में अपने प्राण और धन त्यागने के लिए खड़े हैं।
व्याख्या: अर्जुन कहता है कि जिन प्रियजनों के लिए वह राज्य और सुखों की कामना करता था, वे ही इस युद्ध में अपने प्राण देने के लिए खड़े हैं।
श्लोक 34
आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः।
मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा॥34॥
अर्थ: आचार्य, पिताजी, पुत्र, पितामह, मामा, श्वसुर, पौत्र, साले और अन्य संबंधी सभी इस युद्ध में खड़े हैं।
व्याख्या: अर्जुन अपने परिवार और गुरुजनों की लंबी सूची प्रस्तुत करता है जो इस युद्ध में भाग ले रहे हैं, जिससे उसकी दुविधा और भी बढ़ जाती है Bhagwat Geeta Shlok In Hindi.
श्लोक 35
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन।
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते॥35॥
अर्थ: हे मधुसूदन, मैं इन्हें मारना नहीं चाहता, भले ही ये मुझे मारने की इच्छा रखते हों। तीनों लोकों के राज्य के लिए भी नहीं, फिर इस पृथ्वी के राज्य के लिए तो कतई नहीं।
व्याख्या: अर्जुन कहता है कि वह अपने प्रियजनों को मारना नहीं चाहता, चाहे उन्हें तीनों लोकों का राज्य भी क्यों न मिल जाए, पृथ्वी के राज्य के लिए तो बिल्कुल नहीं।
श्लोक 36
निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन।
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः॥36॥
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi
अर्थ: हे जनार्दन, धार्तराष्ट्रों को मारकर हमें क्या सुख मिलेगा? इन्हें मारने से हमें केवल पाप ही लगेगा।
व्याख्या: अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है कि कौरवों को मारकर कोई सुख नहीं मिलेगा, बल्कि इसके बदले पाप ही लगेगा।
श्लोक 37
स्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव॥37॥
अर्थ: इसलिए, हम धार्तराष्ट्रों और अपने स्वजनों को मारने के योग्य नहीं हैं। हे माधव, अपने स्वजनों को मारकर हम कैसे सुखी हो सकते हैं?
व्याख्या: अर्जुन कहता है कि वह अपने संबंधियों को मारने में सक्षम नहीं है, और यदि उसने ऐसा किया तो वह कभी सुखी नहीं रह सकेगा।
श्लोक 38
द्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्॥38॥
अर्थ: भले ही ये लोभ से अंधे होकर कुल के विनाश के दोष और मित्रों के साथ विश्वासघात के पाप को नहीं देख रहे हैं।
व्याख्या: अर्जुन कहता है कि कौरव लोभ में अंधे हो गए हैं और उन्हें कुल के विनाश और मित्रों के साथ विश्वासघात के पाप का बोध नहीं हो रहा है।
श्लोक 39
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन॥39॥
अर्थ: हे जनार्दन, हम कुल के विनाश के दोष को जानते हुए इस पाप से क्यों नहीं बच सकते?
व्याख्या: अर्जुन कहता है कि कुल के विनाश के दोष को जानते हुए, हमें इस पाप से बचने का प्रयास करना चाहिए।
श्लोक 40
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत॥40॥
अर्थ: कुल के विनाश से सनातन कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं। धर्म के नष्ट होने पर कुल में सारा अधर्म व्याप्त हो जाता है।
व्याख्या: अर्जुन कहता है कि यदि कुल नष्ट हो जाता है, तो पारंपरिक धार्मिक कर्तव्य भी नष्ट हो जाते हैं, जिससे कुल में अधर्म फैल जाता है।
श्लोक 41
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः॥41॥
अर्थ: अधर्म के प्रभाव से कुल की स्त्रियाँ भ्रष्ट हो जाती हैं, और हे वृष्णिवंशीय (कृष्ण), स्त्रियों के भ्रष्ट होने से वर्णसंकर संतति उत्पन्न होती है।
व्याख्या: अर्जुन कहता है कि अधर्म के फैलने से कुल की स्त्रियाँ भ्रष्ट हो जाती हैं, जिससे वर्णसंकर (मिश्रित जाति) संतति उत्पन्न होती है।
श्लोक 42
सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः॥42॥
अर्थ: वर्णसंकर कुलघातियों और कुल के लिए नरक का कारण होता है। इनके कारण पितर (पूर्वज) लुप्त पिंड और जल के कारण गिर जाते हैं।
व्याख्या: Bhagwat Geeta Shlok In Hindi – अर्जुन कहता है कि वर्णसंकर संतति कुल के विनाश और नरक का कारण बनती है। इससे पूर्वजों को श्राद्ध और तर्पण नहीं मिलता, जिससे उनका उद्धार नहीं हो पाता।
श्लोक 43
दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः॥43॥
अर्थ: इन कुलघातियों के द्वारा उत्पन्न वर्णसंकर के दोषों से जाति और कुल के शाश्वत धर्म नष्ट हो जाते हैं।
व्याख्या: अर्जुन कहता है कि वर्णसंकर संतति के दोषों के कारण जाति और कुल के पारंपरिक धर्म नष्ट हो जाते हैं।
श्लोक 44
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम॥44॥
अर्थ: हे जनार्दन, जिनके कुल धर्म नष्ट हो गए हैं, उन मनुष्यों को नरक में अनिश्चित काल तक रहना पड़ता है, ऐसा हमने सुना है।
व्याख्या: अर्जुन कहता है कि जिनके कुल धर्म नष्ट हो गए हैं, उन्हें नरक में अनिश्चित काल तक रहना पड़ता है। यह उसने शास्त्रों में सुना है।
श्लोक 45
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः॥45॥
अर्थ: हाय, हम बड़े पाप करने के लिए उद्यत हो गए हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से अपने स्वजनों को मारने के लिए तैयार हो गए हैं।
व्याख्या: अर्जुन कहता है कि राज्य और सुख के लोभ में पड़कर हम अपने ही स्वजनों को मारने का बड़ा पाप करने जा रहे हैं।
श्लोक 46
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युः तन्मे क्षेमतरं भवेत्॥46॥
अर्थ: यदि धार्तराष्ट्र मुझे युद्ध में शस्त्र रहित और बिना प्रतिकार करने वाले को मार डालें, तो वह मेरे लिए अधिक कल्याणकारी होगा।
व्याख्या: अर्जुन कहता है कि अगर कौरव उसे निहत्था और प्रतिकार रहित अवस्था में मार डालें, तो यह उसके लिए अधिक कल्याणकारी होगा, बजाय इसके कि वह अपने स्वजनों को मारे।
श्लोक 47
सञ्जय उवाच:
एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥47॥
अर्थ: संजय ने कहा: इस प्रकार कहकर अर्जुन ने शोक और विषाद से विव्हल मन से अपना धनुष और बाण छोड़ दिया और रथ के पिछले भाग में बैठ गया।
व्याख्या: संजय, धृतराष्ट्र को बताता है कि अर्जुन, अत्यधिक शोक और विषाद में डूबा हुआ, अपने धनुष और बाणों को छोड़कर रथ में बैठ गया। इस प्रकार, अर्जुन का विषाद और युद्ध के प्रति उसकी नैतिक दुविधा प्रकट होती है।
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निष्कर्ष:
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: श्लोक 28 से 47 तक के इस भाग में अर्जुन के गहन आत्ममंथन और मानसिक संघर्ष का चित्रण किया गया है। यह भाग हमें यह सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए। अर्जुन के इस द्वंद्व से हम यह सीख सकते हैं कि जीवन में आने वाले संदेह और मानसिक संघर्ष को ज्ञान और सही मार्गदर्शन से ही सुलझाया जा सकता है।
FAQs
प्रश्न: अर्जुन के मन में किस प्रकार का संकोच और द्वंद्व उत्पन्न हुआ?
उत्तर: अर्जुन के मन में अपने परिवार, गुरुजनों और मित्रों के विरुद्ध युद्ध करने से उत्पन्न होने वाले पारिवारिक विनाश और सामाजिक अव्यवस्था की चिंता से संकोच और द्वंद्व उत्पन्न हुआ।
प्रश्न: अर्जुन ने श्रीकृष्ण से अपनी क्या भावनाएं प्रकट की?
उत्तर: अर्जुन ने श्रीकृष्ण से अपने शरीर में हो रहे कम्पन, घोर विषाद और अपने प्रियजनों को मरते हुए देखने की कल्पना से उत्पन्न होने वाली व्याकुलता की भावनाएं प्रकट कीं।
प्रश्न: अर्जुन के संकोच का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर: अर्जुन का संकोच इस विचार से उत्पन्न हुआ कि इस युद्ध में अपने ही परिवार और प्रियजनों की हत्या से कोई वास्तविक लाभ नहीं होगा, बल्कि इसका परिणाम पारिवारिक विनाश और सामाजिक अव्यवस्था होगा।
प्रश्न: इन श्लोकों का आध्यात्मिक महत्व क्या है?
उत्तर: इन श्लोकों का आध्यात्मिक महत्व यह है कि यह हमें सिखाते हैं कि मानसिक संघर्ष और संदेह के समय में हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए। सही मार्गदर्शन से हम अपने संदेहों को सुलझा सकते हैं।
प्रश्न: अर्जुन के इस मानसिक संघर्ष से हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तर: अर्जुन के इस मानसिक संघर्ष से हमें यह सीख मिलती है कि कठिन परिस्थितियों में भी हमें आत्ममंथन करना चाहिए और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए सही मार्ग पर चलना चाहिए। संदेह और द्वंद्व को सुलझाने के लिए ज्ञान और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।